Literature

बैंकिंग सेक्टर में सफलता के 25 साल पूरे कर चुके सुनील मोंगिया कहते हैं- जीवन में प्रयास करना मत छोड़िए, मंजिल जरूर मिलेगी

मोंगिया कहते हैं, उनकी पहली पोस्टिंग मोरिंडा में हुई। वहां स्टाफ अच्छा था, सीखने को बहुत कुछ था। मन में जोश होता था और पब्लिक से जुड़ कर उसके काम पूरे करने का अनूठा उत्साह था। वह समय बैंकिंग सेक्टर के लिए भी चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही थी, सरकार नए सुधार ला रही थी।

समय एक जैसा नहीं रहता... इंतजार करें, धैर्य रखें, अवश्य ही तूफान गुजर जाएगा और वसंत आएगा

मेरी तमाम ऐसे लोगों से बात होती रही है, जोकि किन्हीं मुश्किल हालात से गुजर रहे थे। यह ईश्वर की अनुकंपा है कि मुझे जीवन में सकारात्मक रूख अपनाए रखने का साहस मिला है और ऐसे दोस्त भी। 

राम जी की टोली की आध्यात्मिक यात्रा अनवरत जारी, लगातार 25वें मंगलवार किया हनुमान चालीसा का पाठ

आज के परिवेश में अलग-थलग पड़े समाज के कई वर्ग एक दूसरे से मिलने-जुलने में संकोच करने लगे हैं। ऊंच-नीच का भेदभाव इस हद तक बढ़ चुका है कि समाज में रहन-सहन के साथ-साथ सौहार्द खत्म हो चुका है। 

‘इतनी किताबों में कोई मेरा ही अटपट काम पढ़ने के लिए क्यों चुने इसके लिए मैं कोई दलील नहीं पाती’

पढ़ते रहें, सब तरह का साहित्य, हर माध्यम में, जब फ़ुर्सत मिले तब और जब फ़ुर्सत ना हो तब भी. समय से नोक भर समय कुरेद कर, थकन से जड़ मन संभाल कर, नींद से बंद होती आंखें खोल कर.

ग्रेट इंडियन सर्कस का एक रंगीला हूं। हंसाता हूं, रुलाता हूं...

हाथ में लंबा ब्रश है तो रंगों की पोटली है, गंगा किनारे नहाती गांव की छोरी है तो पास से साइकिल चलाता, सीटी बजाता, शहर का छोरा है। गांव और शहर के बीच पुलिस चौकी है तो अमन है, शांति ओम शांति संगीत है, हाउसफुल है, क्योंकि दीवार पर शाहरुख का बहुत बड़ा पोस्टर चिपका है।

संगीत के रचयिता हैं शंकर जी और साधक मां सरस्वती

 नारद जी से किसी ने एक बार संध्या के समय भैरवी गाने को कहा तो उन्होंने दिया कि इस समय भैरवी आराम में हैं,यदि मैंने उन्हें बुलाया तो वे कुरूप और खंडित होकर आएंगी।

अंग्रेजी की प्राध्यापिका कमलेश, जो साहित्य में पिरो रहीं हरियाणवी संस्कृति, संस्कार

कमलेश गोयत की रचनाओं में शहरी तड़क-भड़क पर व्यंग्य होता है, जिससे समाज को संस्कारों से जुड़े रहने की सीख मिलती है। उन्होंने हरियाणवी भाषा के माध्यम से साहित्यिक क्षेत्र में ऐसे अनूठे प्रयोग किए हैं, जिनकी कई जाने-माने साहित्यकारों ने मुक्त-कंठ से प्रशंसा की है।

बादल मेरे गांव भी आओ, पगड़ी टांगो....पीपल नीचे ऊंट बिठाओ

जब इंदिरा गांधी ने कहा था, मुझे तो चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा है...

बात अदालतों की भी चलती रही, उलझे हुए कानूनों की भी, बिकाऊ लोगों की भी.. और फिर जब उनके गिर्द मंडराते जा़ती खतरे की बात चली, सिक्योरिटी को ठीक अर्थों में सिक्योरिटी बनाने की, खासकर 13 नवम्बर तक के वक्त को बहुत हिफाजत के साथ गुजारने की, तो उनके मुंह से निकला- मुझे तो चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा है...

अब मां हो गई मौन...अब नहीं होती मां से बात

पानी नहीं आता हर रोज
लाना पड़ता है, दूर से बाल्टी भर-भरकर
गैस खत्म हो गई थी, खरीदा नया सेलेंडर....

श्रीकृष्ण संपूर्ण हैं, तेजोमय हैं, ब्रह्म हैं, ज्ञान हैं, सुविचार के साथ हैं

हर युग का समाज हमारे सामने कुछ सवाल रखता है। श्रीकृष्ण ने उन्हीं सवालों के जवाब दिए और तारनहार बने। आज भी लगभग वही सवाल हमारे सामने मुंह खोले हैं। श्रीकृष्ण के चकाचौंध वाले वंदनीय पक्ष की जगह अनुकरणीय पक्ष पर दियाा जाए ध्यान। 

उस समय बच्चों के पैर ऐसे चलते थे कि उन्हें पकड़ कर घर में बैठाना पड़ता था

विशेषज्ञों के अनुसार घर से बाहर जाकर खेलने का शौक बच्चों को अकादमिक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है। इसी दौरान उनमें प्रकृति के प्रति प्रेम पनपता है। 

कमरे में धूप

हवा और दरवाजों में बहस होती रही, दीवारें सुनती रहीं।
धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही।

सहसा किसी बात पर बिगडक़र हवा ने दरवाजे को तड़ से एक थप्पड़ जड़ दिया !

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