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आखिर सिटी ब्युटीफुल चंडीगढ़ में अगले पांच साल बाद भी कोई मौजूदा मुद्दों पर बहस करना पसंद करेगा?

शहर में तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जोकि इस शहर की स्थापना के साथ ही शुरू हो गए थे, प्रत्येक चुनाव में राजनीतिक दल उन मुद्दों के समाधान का दावा करते हैं, लेकिन पांच साल पूरे होने पर भी उनका समाधान नहीं करा पाते। इस बार फिर ऐसे ही मुद्दे सामने हैं और उम्मीदवार उनके संबंध में सिर्फ दावे कर रहे हैं।

20 मई, 2024 02:55 PM
चंडीगढ़ में कांग्रेस के उम्मीदवार मनीष तिवारी प्रचार के दौरान। फोटो एक्स

Loksabha election 2024 चंडीगढ़ : चंडीगढ़ में लोकसभा चुनाव का मुकाबला भाजपा और इंडिया गठबंधन के बीच है। सिटी ब्युटीफुल ऐसा शहर है, जहां पर अभी तक कांग्रेस और भाजपा की बतौर सांसद व नगर निगम के गठन के बाद यहां बतौर मेयर एवं अन्य पदों पर काबिज रही है। निश्चित रूप से दोनों पार्टियों के नेता जानते हैं, कि इस शहर की जरूरतें क्या हैं, बीते दस वर्षों में भाजपा सांसद किरण खेर ने अपनी तरफ से तमाम प्रयास किए हैं, लेकिन इसके बावजूद इस छोटे से शहर की समस्याएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही।

 

वहीं अब कांग्रेस के उम्मीदवार जोकि पंजाब से यहां आए हैं, अब शहर की परेशानियों का समाधान कराने का वादा कर रहे हैं, अगर वे जीत गए तो। प्रश्न यह है कि चंडीगढ़ की समस्याओं को किसने सही से समझा है और अगर समझा है तो फिर हर पांच साल बाद नेताओं को यह क्यों कहना पड़ रहा है कि अगले पांच साल में उन समस्याओं का निराकरण करा दिया जाएगा। चंडीगढ़ में तो कोई विधानसभा भी नहीं है, कि जनता अपने विधायक के समक्ष ही अपनी परेशानियों को रख दे। यहां सिर्फ सांसद है और फिर नगर निगम।

 

दोनाें पार्टियाें के उम्मीदवारों के बयान कुटनीतिक

दरअसल, बीते दिनों चंडीगढ़ रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन फेडरेशन की ओर से कांग्रेस एवं भाजपा के उम्मीदवार को बहस के लिए आमंत्रित किया गया। इस दौरान तमाम ऐसे मामले दोनों उम्मीदवारों के समक्ष रखते हुए चुनाव जीतने के बाद उनके समाधान के लिए उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी मांगी गई। इस दौरान दोनों उम्मीदवारों की ओर से काफी कुटनीतिक जवाब दिए गए। उन जवाबों को सुन कर कहीं ऐसा नहीं लगता कि प्रशासन या फिर केंद्र सरकार के समक्ष उन मामलों का एक बार में ही समाधान सुनिश्चित करा दिया जाएगा। इसके पीछे गहरी राजनीति है। इससे कौन इनकार कर सकता है कि चंडीगढ़ में कदम-कदम पर अफसरशाही का रोड़ा अटकता है और दिल्ली के दरवाजे तक वह बात या समस्या पहुंचते-पहुंचते समाप्तप्राय: हो जाती है।

 

हाउसिंग बोर्ड के मकानों में नीड बेस्ड चेंजेज 

चंडीगढ़ हाउसिंग बोर्ड के मकानों में नीड बेस्ड चैंजेज का मामला इस शहर के बसने के साथ ही शुरू हो गया था, लेकिन हर चुनाव में यह मुद्दा बन रहा है। अब भाजपा के उम्मीदवार संजय टंडन कहते हैं कि दिल्ली में भी भाजपा सरकार ने इस मुद्दे को हल करवाया था, अब चंडीगढ़ में भी भाजपा ही कराएगी। हालांकि बीते दस वर्षों में इस मुद्दे को लेकर कुछ किया गया होता तो क्या आज भी यह मुद्दा चुनाव की शोभा बढ़ा रहा होता। वहीं कांग्रेस के उम्म्मीदवार मनीष तिवारी कहते हैं कि नीड बेस्ड चैंजेज की मंजूरी मिलनी ही चाहिए। हालांकि कांग्रेस सांसद ने इस मुद्दे का क्या समाधान कराया था जबकि कांग्रेस के सांसद तो केंद्र में मंत्री भी रहे। क्या जनता को वादों का लॉलीपॉप देते रहने की यह प्रथा कभी खत्म होगी। शहर में प्रॉपर्टी ट्रांसफर और शेयर वाइज प्रॉपर्टी ट्रांसफर का मुद्दा भी बेहद विकराल है। आजकल इसकी व्यवस्था बंद है। अब भाजपा उम्मीदवार इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू पिटीशन की बात कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस उम्मीदवार दोष लगा रहे हैं कि चंडीगढ़ प्रशासन ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सही से पक्ष नहीं रखा। अब पता नहीं सच क्या है, लेकिन जनता बेहाल है।

 

शहर में ट्रैफिक के समाधान पर क्या 
चंडीगढ़ में आजकल ट्रैफिक जी का जंजाल बन चुका है। निवर्तमान सांसद किरण खेर ने तत्कालीन प्रशासक की मौजूदगी में ट्रिब्यून चौक पर फ्लाईओवर के निर्माण का शिलान्यास भी करवा दिया था, लेकिन करीब तीन साल बीतने के बावजूद इस पर एक ईंट तक नहीं लगी है। अब भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार मेट्रो ट्रेन के जरिये इस समस्या का समाधान करवाने की बात कह रहे हैं। भाजपा उम्मीदवार संजय टंडन तो संभावित प्रधानमंत्री से इस प्रोजेक्ट का उद्घाटन करवाने का भी वादा कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस उम्मीदवार नवीन विकल्पों पर काम करने की जरूरत बता रहे हैं। कच्चे कर्मचारियों को पक्का करने का मुद्दा भी कानूनी पेचीदगियों में घिरा होने की दुहाई दी जा रही है। दूसरे राज्यों की पॉलिसी को देखने की बात हो रही है। डोमिसाइल की जरूरत दोनों ही उम्मीदवार बता रहे हैं। इसी प्रकार लीज होल्ड से फ्री होल्ड प्रॉपर्टी कराने के मुद्दे पर भाजपा उम्मीदवार साफ-साफ केंद्र से बात की दुहाई दे रहे हैं वहीं कांग्रेस उम्मीदवार इसके लिए भाजपा पर नाकामी का आरोप लगाते हुए इसकी फीस कम कराने का वादा कर रहे हैं।

 

आखिर जनता किस उम्मीद में फिर करे वोट
वास्तव में शहर में और भी तमाम ऐसे मुद्दे हैं, जोकि बीच हवा में हैं। इन मुद्दों के समाधान के लिए किसको कहा जाए। एक निर्वाचित प्रतिनिधि भी जब इस प्रकार असहाय नजर आए और उन दावों पर संशय हो जोकि उस मुद्दे के शतप्रतिशत समाधान की बात कह रहे हैं, तब जनता किसके पास जाए। चंडीगढ़ में नौकरशाही का डंका बजा बजता है। एक बार फिर जनता मतदान के मुहाने पर है, क्या किसी दल ने यह मुद्दा बनाया है कि चंडीगढ़ को बाबूशाही के नियंत्रण से भी मुक्ति दिलाई जाएगी। काश! ऐसा हो और जनता को उन सभी मुद्दों से एक बार में निजात मिले जोकि बरसों से उसकी जिंदगी मेंं दर्द बने हुए हैं। शहर किसी को भी चुने लेकिन भविष्य के उस सांसद को यहां के मुद्दों का समाधान कराने के लिए जी जान लगानी होगी। अगले पांच साल बाद इन्हीं मुद्दों पर बहस करना कौन पसंद करेगा?

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