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कांग्रेस को इस समय खुद को 'पीजीआई' पहुंचने से रोकने की जरूरत है, 'घर' पर ही चिकित्सा कर ले गनीमत होगी

आखिर कांग्रेस का ढांचा बीमार है या पूरी पार्टी को ही गहन चिकित्सा की जरूरत है। दरअसल, ऐसी बातें कहने में तीखी लग सकती हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए यह आवश्यक है कि वह कथित लोकतांत्रिक होने के नाम पर अनुशासनहीनता का यह सार्वजनिक प्रदर्शन बंद करे

12 अक्टूबर, 2024 02:42 PM
हरियाणा मेें चुनाव परिणामों के लिए कांग्रेस के केंद्रिय नेतृत्व को भी उतनी ही जिम्मेदारी लेने की जरूरत।

haryana congress news : ऐसा सामने आ रहा है कि हरियाणा में अपने बीमार ढांचे का इलाज करने में अब कांग्रेस ज्यादा देर नहीं लगाएगी। अब इस वक्तव्य में कितनी सच्चाई है इसका सच तो सामने आ ही जाएगा लेकिन प्रश्न यह है कि आखिर कांग्रेस का ढांचा बीमार है या पूरी पार्टी को ही गहन चिकित्सा की जरूरत है। दरअसल, ऐसी बातें कहने में तीखी लग सकती हैं, लेकिन कांग्रेस के लिए यह आवश्यक है कि वह लोकतांत्रिक होने के नाम पर अनुशासित होने के अपने रवैये पर फिर से विचार करे। हरियाणा में इस बार यह देखने को मिला है कि एक सीट पर ही तीन दर्जन के करीब टिकट के लिए आवेदन आए।

 

अब यह सही है कि प्रत्येक को आवेदन करने का हक है, लेकिन क्या यह वास्तव में संभव है कि प्रत्येक को टिकट भी मिल जाए। निश्चित रूप से हलके में किसी को एक ही टिकट मिलेगी। अब जिसे टिकट मिला तो बाकी तो उसके विरोधी ही हो गए। क्या यह बहुत स्वाभाविक होगा कि वे उस उम्मीदवार का चुनाव में समर्थन करेंगे। क्या कांग्रेस को अपने लोगों को यह प्रेरित नहीं करना चाहिए कि मैं भी रानी-मैं भी रानी तो कौन भरेगा पानी की तर्ज पर सभी को रानी नहीं बनना है, अपितु पार्टी के व्यापक हित में किसी एक को रानी बनाकर बाकी का काम पार्टी को आगे बढ़ाने का होना चाहिए। वास्तव में एक विधायक या फिर सांसद का भी यही कार्य है। उनके लिए भी जनसेवा ही निर्धारित है, फिर एक सीट के लिए हर कोई उम्मीदवार बनने आएगा तो समस्या खड़ी होगी ही।

 

हरियाणा में इस बार के लोकसभा चुनाव से पहले स्थिति यह थी कि कांग्रेस यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि उसे पांच सीटें मिल जाएंगी। उसने टिकटों के वितरण में अनुशासनहीनता को फेस किया और फिर चुनाव में उतर गई। हालांकि इस दौरान भाजपा ने अपने अति आत्मविश्वास में ऐसी गलतियां की, जिसकी वजह से कांग्रेस की सीटों की संख्या बढ़ गई। अगर प्रत्येक सीट का आकलन किया जाए तो निश्चित रूप से यह समझा जा सकता है कि भाजपा ने उम्मीदवारों के चयन में त्रुटि की वहीं प्रचार के दौरान भी उसे यही लगता रहा कि जीत उसकी हो रही है।

 

दरअसल, कांग्रेस को विचार करना चाहिए कि क्या वास्तव में लोकसभा में उसकी जीत इतनी स्वाभाविक थी। कहीं भाजपा की गलतियों की वजह से उसे फायदा नहीं हुआ। हालांकि विरोधी की कमियों का फायदा उठाकर जीत हासिल करने को ही जीतना कहा जाता है। लेकिन अगर कांग्रेस इसका दावा कर रही थी कि प्रदेश की जनता भाजपा से तंग हो चुकी है और अब उसे बाहर का रास्ता दिखाना चाहती है तो उसी जनता ने भाजपा को 48 सीटें देकर कैसे फिर से सत्ता में लौटा दिया? क्या यह कांग्रेस के रणनीतिकारों की खामी नहीं रही कि वे एक जाति विशेष के नाम पर कमर कस कर भाजपा पर आरोप लगाते रहे। जबकि उसी भाजपा ने छत्तीस बिरादरी के साथ का दावा किया और मतदान के अंतिम घंटों तक भाजपा के नेता जीत का दावा करते रहे और जनता के पुन: आशीर्वाद की प्राप्ति का आह्वान करते रहे।

 

वास्तव में कांग्रेस को इस पर भी गौर करना चाहिए कि क्या वास्तव में उसके प्रदेश प्रभारी और अध्यक्ष समेत अन्य जिम्मेदार लोगों ने उतनी मेहनत की, जितनी की जरूरत थी। अगर गौर फरमाया जाएगा तो पता चलेगा कि टिकटों के चयन के दौरान ही प्रदेश प्रभारी अस्पताल में भर्ती हो गए थे, वे रुआंसे थे और उनकी शिकायत यह थी कि प्रत्येक आवेदनकर्ता उनसे टिकट की मांग कर रहा था। जो वे नहीं दे सकते थे। यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर कांग्रेस में जब एक ही नेता की चलनी थी, जिसे टिकट पर हां या ना कहना था तो फिर प्रदेश प्रभारी और चयन कमेटी आदि की भूमिका की क्या जरूरत रह जाती है।

 

अभिप्राय यह है कि आखिर क्यों नहीं पार्टी अपने सिस्टम को इतना आसान और अनुशासित बनाती कि यह कार्य बगैर किसी चुहलबाजी के निपट जाए। इस बार भाजपा के घोषित उम्मीदवारों के खिलाफ बड़ी बगावत हुई, लेकिन कार्यवाहक सीएम समेत पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेताओं ने उन्हें मनाने में कामयाबी हासिल की। वास्तव में भाजपा की जीत के पीछे इसी तरह की छोटी-छोटी रणनीतियां हैं, जोकि बाद में बड़े परिप्रेक्ष्य में जाकर हलका स्तर पर एक उम्मीदवार को जीत दिलवाने में कामयाब रही। यह समय कांग्रेस को अपने अंदर की खामियों को दुरुस्त करने का है।

 

बेशक, उसे शिकायत करने का हक है और उसने सीधे चुनाव आयोग पर आरोप लगाते हुए इस जनादेश को स्वीकार करने से ही इनकार कर दिया। इसे उसका व्यक्तिगत मामला नहीं माना जा सकता। क्योंंकि ऐसा करके आप प्रदेश में वर्ग विभाजन कर रहे हो। ऐसा कह कर पार्टी उन वर्गों को आरोपी बना रही है, जोकि भाजपा के साथ खड़े हुए हैं। कांग्रेस को चाहिए था कि वह सज्जनता के साथ इस हार को स्वीकार करते हुए तकनीकी खामियों अगर वे वास्तव में घटी हैं तो उनके खिलाफ आवाज उठाती। कांग्रेस को इस समय खुद को पीजीआई पहुंचने से रोकने की जरूरत है, अगर वह घर पर ही अपनी चिकित्सा करने में कामयाब रही तो उसे उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी।

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