haryana politics : चंडीगढ़ : हरियाणा में भाजपा सरकार को समर्थन दे रहे तीन निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में लाकर राज्य में राजनीतिक तूफान खड़ा कर चुकी कांग्रेस अब कह रही है कि वह छह माह के लिए सरकार नहीं बनाना चाहती। हालांकि इससे पहले राज्यपाल को भाजपा सरकार के अल्पमत में होने और मुख्यमंत्री नायब सैनी के विश्वासमत हासिल करने का मांगपत्र सौंप चुकी है। वहीं जजपा के नेताओं की ओर से भी राज्यपाल को पत्र लिखा गया है। इस दौरान कांग्रेस-जजपा नेताओं की ओर से विधायकों की राज्यपाल के समक्ष परेड संबंधी बयान भी सामने आ चुके हैं।
तो अंगूर खट्ठे हैं की कहावत तो लागू नहीं हो गई
राज्य की जनता यह जानना चाहती है कि जब कांग्रेस की मंशा सरकार बनाने की नहीं थी तो उसने इतना तूफान क्यों खड़ा किया। कहीं ऐसा तो नहीं है कि अंगूर खट्ठे हैं, की कहावत इस समय लागू हो गई हो। जजपा नेताओं ने राज्यपाल को पत्र इसलिए लिखा है, क्योंकि उन्हें पार्टी में फूट की पूरी संभावना लग रही है, ऐसे में वे अपनी पार्टी के उन भाजपा प्रेमियों को सबक सीखाना चाहते हैं जोकि इस समय पर्दे के पीछे से काम कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस को यह अहसास हो गया है कि जजपा सिर्फ कहने भर के लिए उसके साथ नजर आई है, सरकार बनाते समय जजपा के सभी 10 विधायक एक रह पाएंगे या नहीं, यह कोई नहीं जानता।
आखिर बगैर विश्वासमत हासिल किए कैसे लगे राष्ट्रपति शासन
कांग्रेस ने प्रदेश में नायब सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। हालांकि पार्टी की ओर से यह मांग इस प्रकार कैसे की जा सकती है। आखिर यह कैसे साबित हो गया कि नायब सरकार अल्पमत में है। बेशक तकनीकी रूप से बहुमत के लिए जितने विधायक होने चाहिए वे इस समय मुख्यमंत्री नायब सैनी के साथ नहीं हैं, लेकिन अंदरखाने जिस प्रकार के समीकरण बन रहे हैं, उनमें कुछ भी संभव है। यही राजनीति है और वह भी हरियाणा की राजनीति। जिस प्रदेश ने देश को आया राम-गया राम की कहावत और फार्मूला दिया हो, वहां पर एक पार्टी इतनी सहजता से अपनी सरकार को गिर जाने देगी, इसमें बहुत-बहुत संशय है।
पूर्व सीएम मनोहर लाल कर शांति से अपना काम
गौरतलब यह है कि पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल जोकि साढ़े चार साल गठबंधन की सरकार का कुशलता पूर्वक संचालन करते रहे, अब दूसरे तरीके से कार्यरत हैं। उन्होंने जजपा के उन तीन विधायकों से बैठक की है, जोकि भाजपा के प्रति अपने दिल में कोना रखते हैं। राजनीति संभावनाओं का खेल है। कांग्रेस ने जिन तीन निर्दलीय विधायकों को अपनी तरफ किया है, बहुत संभव है कि आगामी विधानसभा चुनाव में वे फिर पाला बदल लें। यह भी हो सकता है कि उन्हें कांग्रेस से टिकट ही न मिले वहीं भाजपा उन्हें फिर अपने पाले में ले आए।
यह समय लोकसभा चुनाव का है, राजनीतिक दल जहां हर दांव पेच आजमा रहे हैं, वहीं जनता भी मंथन में जुट गई है। यह दौर प्रदेश और उसकी राजनीति की भी नई दिशा तय करने वाला है। लोकसभा चुनावों का परिणाम यह तय करेगा राज्य में किसकी सरकार बनने जा रही है। हालांकि इसकी भी संभावना है कि जनता देश और राज्य में विभिन्न स्तर पर विचार करते कोई निर्णय ले। बेशक, कुछ भी संभव है लेकिन हरियाणा में राजनीतिक घटनाक्रम जिस प्रकार चुनौतीपूर्ण हुए हैं, वे कोई गहरा संदेश दे रहे हैं। राज्य में सितंबर-अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन उनसे पहले ही जैसा घमासान दिख रहा है, उसने प्रदेश में भविष्य में होने वाले घटनाक्रमों की झलक पेश कर दी है।
सरकार को नहीं खतरा, पर चेहरे हो रहे उजागर
बेशक, मौजूदा घटनाक्रम के बावजूद मुुख्यमंत्री नायब सैनी की सरकार को खतरा नहीं है। बावजूद इसके राजनीति में कब, क्या घट जाए कोई नहीं जानता। जजपा को इसकी उम्मीद नहीं थी कि भाजपा उसे सरे राह नाता तोड़ किनारे कर देगी। वह भी अब भाजपा सरकार के अल्पमत में होने की शिकायत राज्यपाल से कर रही है। हालांकि इसकी गुंजाइश नहीं रखी जा रही कि नायब सरकार के संकट के समय जजपा मदद का हाथ बढ़ाने को आगे आए। जजपा ने भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ ही चुनाव लड़ा था, लेकिन जजपा के नेता कांग्रेस के साथ जाकर भाजपा की सरकार को गिराने के लिए प्रयासरत होंगे, ऐसा भी राज्य की जनता नहीं सोचती। एक तरफ जजपा नेता यह कहते हैं कि उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला को षड्यंत्र के तहत फंसा कर जेल भिजवाया गया और अब वही जजपा, कांग्रेस के साथ नजर आती दिख रही है। वास्तव में मौजूदा घटनाक्रम जनता के लिए एक छलावा है, असली रणनीति दिमागों के अंदर है। यह वक्त बताएगा कि किसी रणनीति जीतती है।