haryana news : चंडीगढ़ : हरियाणा में भाजपा की नायब सरकार से तीन निर्दलीय विधायकों के समर्थन वापस लेने से जिस प्रकार के हालात बने हैं, उनसे राजनीतिक पारा जहां बहुत चढ़ गया है, वहीं लोकसभा चुनाव के गुणा-भाग के प्रभावित होने के आसार बन रहे हैं। राज्य में सितंबर-अक्तूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन उनसे पहले ही जैसा घमासान दिख रहा है, उसने प्रदेश में भविष्य में होने वाले घटनाक्रमों की झलक पेश कर दी है।
कांग्रेस ने बीते विधानसभा चुनाव में 30 सीटें जीती थीं, हालांकि पार्टी पूर्ण बहुमत हासिल करने की चाहत रखती थी, लेकिन नवोदित पार्टी जजपा ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को नुकसान पहुंचाया था। खैर, इस दौरान जो निर्दलीय जीते उनमें से 6 भाजपा और जजपा सरकार के साथ खड़े हो गए। इन निर्दलीयों में से एक को सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया जबकि बाकी के पांच विधायक खुद को मंत्री बनाने के लिए साढ़े चार साल तक सरकार पर दबाव बनाते रहे, हालांकि यह और बात है कि उन्हें बोर्ड, निगमों के चेयरमैन बनाकर मंत्री जैसी सहुलियत ही प्रदान की गई। खैर, यह अलग विषय है, लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में जब कांग्रेस पुन: सत्ता में लौटने का दंभ भर रही है, तब उसके द्वारा तीन निर्दलीय विधायकों को अपने पाले में लाने की घटना इसका संकेत देती है कि वह नायब सरकार को अस्थिर करने के लिए हरसंभव प्रयासरत है।
बेशक, मौजूदा घटनाक्रम के बावजूद मुुख्यमंत्री नायब सैनी की सरकार को खतरा नहीं है। अल्पमत में होने के बावजूद सरकार के चाहवान बाहर बैठकर भी उसकी सलामती की दुआ मांग रहे हैं। बावजूद इसके राजनीति में कब, क्या घट जाए कोई नहीं जानता। जजपा को इसकी उम्मीद नहीं थी कि भाजपा उसे सरे राह नाता तोडक़र किनारे कर देगी। इस समय अगर जजपा सरकार का हिस्सा होती तो लोकसभा चुनाव में उसके प्रचार की धार कुछ और ही होती।
हालांकि भाजपा ने अपने भविष्य के लिए जजपा को बीच रास्ते अपनी गाड़ी से उतार दिया। हालांकि अब जब नायब सरकार जोकि अल्पमत में आ चुकी है, तब उसकी उम्मीद उन्हीं जजपा के विधायकों से है, जोकि अपने नेतृत्वकर्ताओं से नाराज हैं। उनका प्रेम भाजपा के प्रति है और वे आगामी विधानसभा चुनाव का इंतजार कर रहे हैं, जब वे भाजपा में शामिल हो जाएंगे। बेशक, यह पहले से योजना का हिस्सा है, लेकिन तीन निर्दलीय विधायकों ने पाला इसलिए बदला क्योंकि उन्हें अब भाजपा के साथ बने रहने में फायदा नजर नहीं आ रहा था।
उन्होंने कहा भी कि जिस समय उन्होंने भाजपा को समर्थन दिया, उस समय उनके सेनापति (मनोहर लाल) थे, जबकि अब वे बदल चुके हैं, ऐसे में उनका समर्थन भी खत्म हो गया। अब बेशक, इन निर्दलीय विधायकों की ओर से ऐसे तर्क दिए जाएं, लेकिन यह सच है कि चुनाव की बेला में वे कांग्रेस की रौ में बहने को तैयार हो गए हैं। पूर्व सीएम एवं नेता विपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा मौजूदा सरकार के गठन के पहले दिन से यह कहते आ रहे हैं कि यह सरकार ज्यादा नहीं दिन नहीं चलेगी, हालांकि सरकार सफलतापूर्वक अपने साढ़े चार साल पूरे कर चुकी है और अब चुनाव की ओर बढ़ रही है।
तीन निर्दलीय विधायकों के कांग्रेस के साथ जाने के बाद का घटनाक्रम क्या रहने वाला है। अब इस पर सभी की नजर रहेगी। यह कांग्रेस के मौजूदा कर्णधारों के लिए करो या मरो का भी है। उनके सामने लोकसभा चुनाव में जहां जीत हासिल करने का लक्ष्य है, वहीं विधानसभा चुनाव में भी उन्हें दम दिखाना है। बेशक, कांग्रेस के नेता केंद्र में सरकार बनाने का दावा करें लेकिन कहीं न कहीं वे इस सच्चाई को समझते हैं कि केंद्र में हाल फिलहाल ऐसा होना अभी संभव नहीं है। इसलिए हरियाणा के कांग्रेस नेता अभी अपना दम आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बचा कर रख लेना चाहते हैं।
दूसरे राजनीतिक दलों के पूर्व विधायकों, नेताओं, पदाधिकारियों को कांग्रेस में शामिल करने की कवायद जहां जारी है, वहीं अब निर्दलीय विधायकों को भी अपने पाले में लाकर कांग्रेस नेतृत्व ने भावी तैयारियों को प्रदर्शित किया है। हालांकि यह अपने आप में अभी रहस्य है कि तीन निर्दलीय विधायकों को कांग्रेस विधानसभा चुनाव में टिकट देगी या नहीं। कांग्रेस में वैसे भी एक अनार सौ बीमार वाली स्थिति है। लोकसभा चुनाव के दौरान ही सभी 9 सीटों पर पार्टी के अंदर असंतोष है। इन सब घटनाओं के बावजूद कांग्रेस ने सत्ताधारी भाजपा को कड़ी चुनौती पेश कर दी है। इस बार के लोकसभा चुनाव राज्य में कांटे की टक्कर से हो रहे हैं वहीं विधानसभा चुनावों में भी मुकाबला सामान्य नहीं रहने वाला है। इसके संकेत बखूबी मिल चुके हैं।