इसहफ्ते न्यूज . सुरेंद्र सिंह
आपको कब लगा कि आपके अंदर एक रचनाकार है, जिसे बाहर आना चाहिए? इस सवाल पर कमलेश गोयत अपनी किशोरावस्था में चली जाती हैं, वे याद करती हैं, उन दिनों को जब वे सातवीं कक्षा में थीं।
हरियाणवी संस्कृति अपने आचार-विचार, नृत्य, वस्त्रों, साहित्य, कला और खान-पान से बेहद समृद्ध है। हरियाणा का नाम लेते ही मन में ऐसे प्रदेश की छवि उभर आती है, जोकि वैदिक काल का पालना रही है। इस भूमि पर अमर साहित्य रचा गया है, जोकि रागनियों के जरिए जन-जन तक पहुंचा है। हरियाणवी बोली का अपना अस्तित्व है और सबसे बड़ी बात आज के आधुनिक दौर में भी अनेक हरियाणवी अपनी मां बोली को जीवित रखे हुए हैं।
इन रचनाकारों में एक नाम है, जींद निवासी अंग्रेजी विषय की प्राध्यापिका कमलेश गोयत का। वे कवि एवं लेखक हैं। वे निरंतर हरियाणवी मां-बोली के साथ-साथ हिंदी व अंग्रेजी साहित्य में अमिट छाप छोड़ रही हैं। उनके लेखन में जहां गांव की मिट्टी की सौंधी खुशबू का अहसास होता है, वहीं इसमें शहरी तड़क-भड़क पर व्यंग्य के माध्यम से समाज को संस्कारों से जुड़े रहने की सीख भी होती है। उन्होंने हरियाणवी भाषा के माध्यम से साहित्यिक क्षेत्र में ऐसे अनूठे प्रयोग किए हैं, जिनकी कई जाने-माने साहित्यकारों ने मुक्त-कंठ से प्रशंसा की है।
अध्यापक की शाबाशी से मिली लेखन की प्रेरणा
आपको कब लगा कि आपके अंदर एक रचनाकार है, जिसे बाहर आना चाहिए? इस सवाल पर कमलेश गोयत अपनी किशोरावस्था में चली जाती हैं, वे याद करती हैं, उन दिनों को जब वे सातवीं कक्षा में थीं। रोहतक जिले के गांव भैणी सुरजन में वे अपने सामान्य रूप से स्कूल जाती थी, लेकिन एक दिन एक घटना के बाद उन्हें लगा कि साहित्य ही अब उनका जीवन है।
कमलेश गोयत बताती हैं- सातवीं कक्षा की उस दुबली-पतली लड़की को क्लास में अध्यापक ने ‘शहीद उद्धम सिंह’ पर एक निबंध लिख कर लाने को कहा। कमलेश बताती हैं, अध्यापक ने हमें लिखे हुए शब्दों में शहीद को श्रद्धांजलि देने काे कहा था, मैंने भी उन पर निबंध लिखा और स्कूल ले गई। कक्षा में जब अध्यापक ने निबंध को पढ़ा तो यह उन्हें बेहद पसंद आया। उन्होंने लेखन शैली की प्रशंसा की और शाबाशी दी। कमलेश कहती हैं- बस इसी ‘शाबाशी’ ने मुझे साहित्य की तरफ मोड़ दिया। तब से लेकर अब तक सैकड़ों साहित्यिक पुस्तकें पढ़ी हैं और साथ ही अपने अंदर मचलते कवि-ह्दय को खुलकर साहित्यिक आकाश में उड़ने दिया है। वे गर्व से बताती हैं, अभी तक कुल 16 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, इनमें उपन्यास, कहानी-संग्रह, नाटक-संग्रह, गजल-संग्रह के अलावा सैकड़ों हरियाणवी किस्से व लोक रागनियां शामिल हैं।
हड़प्पा संस्कृति को पढ़ाया पद्य में
कमलेश गोयत ने हरियाणवी भाषा में ‘कव्वाली- संग्रह’ तथा ‘गजल-संग्रह’ लिखे हैं, जबकि अभी तक कव्वाली व गजलों में उर्दू भाषा का ही आधिपत्य रहा है। यही नहीं उन्होंने विद्यार्थियों में इतिहास विषय के प्रति रुचि पैदा करने के लिए ‘हड़प्पा सभ्यता से लेकर स्वतंत्रता तक भारतीय इतिहास’ को पद्य में पिरो दिया। गद्य इतिहास को पद्य रूप देने के पीछे कमलेश का तर्क है कि उन्होंने देखा कि
विद्यार्थी आमतौर पर इतिहास को नीरस विषय मानते हैं और इसको पढ़ते वक्त उनका ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता है। एक दिन उन्होंने हड़प्पा संस्कृति को पद्य के रूप में पढ़ाने का प्रयोग किया तो सभी विद्यार्थी तल्लीन होकर सुन रहे थे, यह प्रयोग सफल रहने पर उन्होंने स्कूल के पाठ्यक्रम में आने वाले पूरे भारतीय इतिहास को पद्य-रूप में परिवर्तित करने का निश्चय किया और जल्द ही वे इस उद्देश्य में सफल भी रहीं।
छोरी फौजी की सांग किया गया बेहद पसंद
कमलेश गोयत आठ उपन्यासों की रचयिता पहली ऐसी महिला रचनाकार हैं, जिन्होंने हरियाणवी किस्सों को अपनी लेखनी से जीवंत किया है। इन्होंने चार काल्पनिक किस्से अथवा सांग (फोन बड्डा हाथ छोटे, छोरी फौजी की, रामघड़ी, कोरोना) लिखे हैं जिनमें कुल 90 रागनियां हैं। इनके द्वारा रचित ‘छोरी फौजी की’ सांग को बेहद पसंद किया जा रहा है। इसमें सैनिक की एक बेटी की मार्मिक और साहसिक कहानी का वर्णन है। आमतौर पर साहित्य-सृजन में पुरुष पात्र के इर्द-गिर्द कहानियां घुमती हैं, उन्होंने अपनी साहित्य-रचना में नारी को काफी महत्व दिया है। उन्होंने भारत की दस महान नारियों के प्रेरणादायी जीवन पर एक पुस्तक लिखी है, जिसमें कुल 150 रागनियां हैं। इनके द्वारा रचित लोकसाहित्य में करीब एक सौ फुटकर रागनियां हैं जो वर्तमान भौतिकतावादी समाज पर कटाक्ष करती हैं। हरियाणवी-पॉप के डीजे वाले गानों से हटकर उनके द्वारा लिखी कई ऐसी लोक रागनियां हैं जो हरियाणा के मशहूर लोक गायकों ने गाई हैंं।
आपातकाल में ग्रहण करता है कन्या भ्रूण हत्या पर प्रहार
कमलेश गोयत ने वर्ष 2015 में पहला उपन्यास ‘प्यार एक पहेली’ लिखा। इसके बाद ‘विजेता’ उपन्यास लिखा जोकि ई- कॉमर्स के बड़े प्लेटफॉर्म ‘अमेजॉन’ पर बिक रहा है। इस उपन्यास का ‘हरियाणा साहित्य अकादमी’ द्वारा अनुदान हेतु चयन किया गया था, जोकि प्रदेश में साहित्य के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि माना जाता है। इसी साल कन्या भ्रूण हत्या पर व्यंग्यात्मक-प्रहार करता हुआ ‘आपातकाल में ग्रहण’ और एक महिला के जज्बे व हौसले को सलाम करता उपन्यास ‘मर्दानी मां’ भी प्रकाशित हुए। कोरोना संक्रमण के दौरान जब पूरा विश्व घर में कैद होकर छटपटा रहा था तो कमलेश गोयत ने ‘आपदा को अवसर’ में बदलते हुए लॉकडाउन के दौरान हरियाणवी में प्रथम कव्वाली संग्रह (संस्कारां का चस्मा) लिखा। इससे पूर्व हरियाणवी भाषा में कभी भी कव्वालियां नहीं लिखी गई। उनकी लेखनी बदस्तूर जारी रही और हरियाणवी गजल संग्रह ‘बंध के घाट’ की कृति रची, जिसमें 100 गजलें हैं।
हरियाणवी नाटक संग्रह ठगणे भी प्रेरणादायी
कमलेश गोयत का अपनी मां बोली हरियाणवी के प्रति निरंतर प्रेम बरसता रहा और उन्होंने एक हरियाणवी नाटक संग्रह ‘ठगणे’ रचा, इसमें सामाजिक कुरीतियों पर चोट करते हुए कुल एक दर्जन प्रेरणादायी नाटक हैं, जो मंचन करने योग्य हैं। उन्होंने एक समीक्षा-ग्रंथ ‘हमारे लोकगीतों में जीवन की हर धुन’ गद्य-विधा में पिरोया है। इसके अलावा 18 कहानियों का कहानी संग्रह ‘तकनीकी संस्कार’ जहां वर्तमान समाज को आईना दिखाता है, वहीं ‘झलक दिखाऊं उनकी’ पुस्तक में 64 रागनियों के माध्यम से वीरांगनाओं का आधुनिक समाज से परिचय है जो पुरुष प्रधान युग में भुला दी गई हैं।
ये पुस्तकें भी आई उनकी कलम से
साहित्यकार कमलेश ने वीरांगना हाड़ी रानी, झलकारी देवी, रानी ईश्वरी देवी,चम्पा, कालीबाई के जीवन-चरित से लोगों को परिचित करवाया है, वहीं वीर कुंवर सिंह, खुदीराम बोस, जसवंत सिंह रावत, अब्दुल हमीद, अश्फाक और रामप्रसाद, कालीबाई, सूजा कंवर पुरोहित के वीरत्व को रागनियों के माध्यम से रोचक ढंग से पेश किया है। उन्होंने सावित्री बाई फुले, भगिनी निवेदिता, प्रभावती देवी, बेगम रुकैया, ज्योतिर्मयी देवी समान विरांगनाओं के सामाजिक कार्यों को न्याय देकर रचना-धर्मिता का फर्ज निभाया है। इनके अंग्रेजी उपन्यास ने भी काफी लोकप्रियता हासिल की है। उनकी लिखी भारतीय इतिहास काव्य पुस्तक को काफी सराहा गया है।
मेरा मकसद अच्छे साहित्य का सृजन
बकौल कमलेश गोयत, उनका मकसद अच्छे साहित्य को सृजित करना है, अपने अध्यापन के पेशे के साथ-साथ मन के अंदर उठने वाले विचारों के ज्वार-भाटे को गद्य या पद्य में गूंथकर शब्दों की माला बनानी है ताकि समाज को कुछ
अपना योगदान दे सकूं। वे कहती हैं, लेखन कार्य एक सामाजिक दायित्व है, जिसे निभा कर उन्हें आत्मिक संतुष्टि और संपूर्णता का अहसास होता है। लेखन उन्हें ऊर्जा से भर देता है। वे हरियाणा और हरियाणवी बोली में और भी रचनाएं देने को प्रतिबद्ध हैं और इस दिशा में लगातार कार्य कर रही हैं।