एक सोच का हुआ जन्म

एक बच्चा सागर किनारे उदास बैठा था। एक सज्जन आए और उससे उसकी उदासी की वजह पूछी। बच्चे ने कहा कि वह समंदर से आने वाली लहरों को गिन रहा था, उसने दस तक गिनी और फिर एक बड़ी लहर आई और दूसरी सारी छोटी लहरें उसमें गुम हो गई। इसके साथ ही उसकी गिनी लहरें भी मिट गई। सज्जन ने बच्चे के सिर पर हाथ फेरा और कहा कि यह तो इतनी बड़ी समस्या नहीं है। बच्चा कुछ चकित हो गया, उसकी नन्हीं आंखों में सवाल थे।
सज्जन ने उसे समंदर की ओर गौर से देखने को कहा। बच्चा समंदर को निहारने लगा। उसने ध्यान दिया कि लहरें तो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। वे लगातार आती जा रही हैं। अनवरत...। लहरों का काम ही यही है। बस आते जाना। सागर के ह्दय से निकल कर वे आगे बढऩे को मचलती हुई किनारे की तरफ दौड़ती रहती हैं।

सज्जन ने बच्चे को समझाया, समंदर की किसी भी लहर को आखिरी मत मानो। वे कभी आखिरी नहीं हो सकती, इसी प्रकार उनकी गिनती नहीं हो सकती, क्योंकि गिनती उसकी होती है जिसका समापन भी निश्चित हो। खैर बच्चे को यहीं तक समझ आया कि लहरें जब तक दिखती रहें, उनकी गिनती करते रहो और फिर भूल जाओ तो भूल जाओ, नए सिरे से फिर गिनने लगो। जिंदगी भी इसी तरह से चलती है।

हर नई लहर जीवन का पैगाम लेकर आती है और आगे बढऩे की प्रेरणा भी। आगे बढऩा ही जीवन का आधार है। बहता जल ही नदी बनता है, जोकि फिर महासागर में मिल जाती है।
विचारों की नदी भी ऐसी ही होती है। उसका लक्ष्य भी ज्ञान के सागर में जाकर सिमट जाना होता है। अगर इस नदी में सूखा पड़ जाए तो यह न केवल उसके अपितु पूरी प्रकृति और जन-जन के लिए आपदा काल होगा। एक जीवन धन्य तभी होता है, जब वह समाज में विचारों की ऐसी उपज तैयार करके देता है, जिससे प्रेरणा के फूल महकते हैं और ज्ञान की क्षुधा को तृप्त करने वाले अन्न का उत्पादन होता है। समाज में प्रत्येक व्यक्ति को इसकी जिम्मेदारी मिली है। जरूरत बस इस जिम्मेदारी को समझ कर अपनी भूमिका का निर्वाह करने की है।

 

स्वतंत्र सोच ही स्वतंत्र समाज को जन्म देती है। आज देश के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर ऐसी ही स्वतंत्र सोच का जन्म हो रहा है। देश, दुनिया और समाज के सम्मुख हम वैचारिक प्रतिबद्धता का एक स्वरूप लेकर उपस्थित हो रहे हैं। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी सोच और राय जाहिर करने का अधिकार देता है, बशर्ते वह तार्किक और कानून सम्मत हो। इसी अधिकार के बूते हम समाज, राजनीति, संस्कृति, संस्कार, साहित्य, सृजन, अर्थ-वित्त, रंगकर्म, प्रकृति, भूगोल और उस सब पर आधारित जोकि मानव जीवन का सूत्र है, एक न्यूज वेबपोर्टल इसहफ्ते न्यूज को उद्घाटित करने जा रहे हैं। जैसा कि हमारी शुरुआत ही इस कथन से हुई है कि नया कभी नहीं रूकता। वह बस आता और आता ही जाता है।

इस दौरान उसमें जमाने की गर्म, बेरूखी हवाओं को झेलने की तासीर होती है तो वह टिक जाता है और अगर यह तासीर नहीं होती है तो बिखर जाता है। दरअसल, यह कहने का औचित्य यही है कि जीवन कभी भी निद्र्वंद्व नहीं होता। उसके सामने रूकावटें, परेशानियां, मुश्किलें, डिफिकल्टीज न आएं, यह संभव ही नहीं है। भारत की आजादी कोई प्लेट में रखकर नसीब नहीं हुई है। उसमें सदियां लगी हैं, अनगिनत लोगों की कुर्बानियां हुई हैं। जाहिर है, इन कुर्बानियों के साथ यह संकल्प दृढ़ होता गया कि हमें आजाद होना है।


आज हमारे समक्ष भी ऐसा ही संकल्प है। आजाद रहना एक खूबसूरत अहसास है और आजाद होना एक दुर्गम कार्य। जब आप कुछ नया हासिल करने के लिए कदम बढ़ाते हैं तो यह आजादी की तरफ कदम होता है। वैचारिक आजादी, आर्थिक आजादी, समाज और देश को नया देने की आजादी, विकल्प बनने की आजादी, एक मंच प्रदान करने की आजादी, संविधान और उसमें प्रदत्त शक्तियों के माध्यम से शक्ति संपन्न बनने की आजादी। आजादी का एक स्वरूप नहीं हो सकता। देश में इस समय बातों के बहुत से तूफान उड़ रहे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि अब डर हर सोच पर उल्लू की भांति बैठ गया है। वह उड़ता है और फिर आ जाता है।

हालांकि संभव है, नई सोच अपनाने से डर रहे लोग इस उल्लू को अपने कंधों पर बैठा पा रहे हों। देश जब आजादी के 75 वर्ष पूरे कर चुका है तो यह उसका अमृत महोत्सव है। यह तब है, जब तमाम विडम्बनाओं के बावजूद देश आगे बढ़ रहा है। हर दौर पर ऐसे आरोप लगते हैं कि वह सबसे खराब है, लेकिन वह दौर भी बीत जाता है और फिर एक नया दौर आता है। आजादी के इन 75 वर्षों में भारत लगातार ऊंचाई की तरफ गया है, फिर चाहे कोई राजनीतिक दल रहा हो, कौनसी भी विचारधारा प्रवाहित रही हो। ऐसे में किसी डर के साए में जीने से ज्यादा आवश्यक है कि वैचारिक प्रखरता को बढ़ाया जाए। कानून सम्मत होना इस वैचारिक प्रखरता को बढ़ाएगा।


इसहफ्ते न्यूज का स्वरूप पूरी तरह से समाज और देश समर्पित होकर कार्य करना है। हमारा संकल्प शुद्ध वैचारिक पत्रकारिता करते हुए समाज और देश को कुछ लौटाना है। कोई भी पूर्ण नहीं होता और न ही हो सकता है। हमारा उद्वेश्य भी एक शिशु की भांति अपने कदमों को लगातार आगे बढ़ाते हुए संपूर्ण होने की कोशिश करना है। हमारा संकल्प यह भी है कि प्रपंच, आडम्बर की पत्रकारिता नहीं करेंगे, हम तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश नहीं करेंगे, किसी की भी छवि से खिलवाड़ हो, ऐसा हमारा उपक्रम नहीं होगा। हम कानून सम्मत सच्चाई और निर्भिकता-निर्मलता-निष्पक्षता के साथ काम करेंगे। हमारा विस्तार देश, राज्य, जिला, ब्लॉक और गांव के साथ वैश्विक होगा। हम सभी राजनीतिक दलों की सोच, उनके सार्थक कार्यों को स्वीकार करेंगे। सत्ता और विपक्ष के अतार्किक फैसलों और कदमों की आलोचना करेंगे और संविधान को अपने समक्ष रखकर चलेंगे।
                                                                                                                                              जय हिंद !