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रामजी की टोली की यात्रा को हुआ एक साल, 51वें मंगलवार को बलटाना में संकीर्तन

रामजी की टोली की आध्यात्मिक यात्रा के 41 मंगलवार हुए पूरे, संगोष्ठी में धर्म पर हुई व्यापक चर्चा

बीते दिनों जुलाई में जब भारी बारिश की वजह से इलाके में हर तरफ पानी भर गया था, तब जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए टोली ने अनेक सद्प्रयास किए। 

साइकिल पर डिलीवरी करते देख पसीजा दिल, ट्विटर पर क्राउड फंडिंग से पैसे जुटा दिलाई नई बाइक

मीणा कहते हैं, घर तो संभालना ही था, इसलिए उन्होंने फूड कंपनी में डिलीवरी ब्वॉय की नौकरी स्वीकार करते हुए काम शुरू कर दिया। इस नौकरी से उन्हें माह भर में कोई दस हजार रुपये की आय हो जाती है, लेकिन कोई दोपहिया वाहन न होने की वजह से वे साइकिल पर ही डिलीवरी देने जाते थे।

मनुष्य के अंदर व्याप्त अज्ञानता को नष्ट करती है शिवरात्रि

बीके पूनम के अनुसार परमात्मा ज्योति बिंदु शिव प्रत्येक कल्प में एक बार कलयुग के अंत और सतयुग के आदि के संगम समय पर आकर पुन: आसुरी समाज का विनाश कर देव समाज की स्थापना करते हैं।

ग्रेट इंडियन सर्कस का एक रंगीला हूं। हंसाता हूं, रुलाता हूं...

हाथ में लंबा ब्रश है तो रंगों की पोटली है, गंगा किनारे नहाती गांव की छोरी है तो पास से साइकिल चलाता, सीटी बजाता, शहर का छोरा है। गांव और शहर के बीच पुलिस चौकी है तो अमन है, शांति ओम शांति संगीत है, हाउसफुल है, क्योंकि दीवार पर शाहरुख का बहुत बड़ा पोस्टर चिपका है।

संगीत के रचयिता हैं शंकर जी और साधक मां सरस्वती

 नारद जी से किसी ने एक बार संध्या के समय भैरवी गाने को कहा तो उन्होंने दिया कि इस समय भैरवी आराम में हैं,यदि मैंने उन्हें बुलाया तो वे कुरूप और खंडित होकर आएंगी।

शांति और प्रेम की पाठशाला का नाम है ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय

परमात्मा के साथ संबंध की स्मृति और प्रेम को राजयोग कहा जाता है। संस्था का संदेश है कि राजयोग का अभ्यास साधक को आध्यात्मिक परिवर्तन की शक्ति प्र्रदान कर संस्कारवान बनाता है तथा उसका चारित्रिक उत्थान करता है। इससे मानसिक तनाव से मुक्ति, नकारात्मक संकल्पों की समाप्ति और शिव बाबा में समर्पण की शक्ति हासिल होती है।

अंग्रेजी की प्राध्यापिका कमलेश, जो साहित्य में पिरो रहीं हरियाणवी संस्कृति, संस्कार

कमलेश गोयत की रचनाओं में शहरी तड़क-भड़क पर व्यंग्य होता है, जिससे समाज को संस्कारों से जुड़े रहने की सीख मिलती है। उन्होंने हरियाणवी भाषा के माध्यम से साहित्यिक क्षेत्र में ऐसे अनूठे प्रयोग किए हैं, जिनकी कई जाने-माने साहित्यकारों ने मुक्त-कंठ से प्रशंसा की है।

फटे-पुराने जूते गांठ रहा है वो भी मैं हूं....वो जो........ घर-घर धूप की चांदी बांट रहा

आखिर भारतीय समाज क्यों बंट गया अलग-अलग जातियों में

भारत में जाति व्यवस्था अन्यायपूर्ण और अनुचित लगती है - लोगों को पेशे या जन्म के आधार पर क्यों बांटा जाए? मगर क्या हमेशा से ऐसा ही था? और जाति व्यवस्था को खत्म करने से क्या आज उससे जुड़ी सारी समस्याएं हल हो सकती हैं?

उस समय बच्चों के पैर ऐसे चलते थे कि उन्हें पकड़ कर घर में बैठाना पड़ता था

विशेषज्ञों के अनुसार घर से बाहर जाकर खेलने का शौक बच्चों को अकादमिक, सामाजिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाता है। इसी दौरान उनमें प्रकृति के प्रति प्रेम पनपता है। 

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