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शांति और प्रेम की पाठशाला का नाम है ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय

दादा लेखराज जिन्हें ब्रह्मा बाबा के रूप में पुकारा जाता है, ने वर्ष 1936 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हैदराबाद में ओम मंडली नाम से आध्यात्मिक संस्था बनाई थी। तब से शुरू होकर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय एक वैश्विक संस्था बन चुकी है

30 दिसंबर, 2021 08:42 PM
5 मई 1950 को पाकिस्तान से स्थानांतरित होकर ब्रह्माकुमारीज विवि के मुख्यालय को राजस्थान के माउंट आबू में स्थापित किया गया था। -फोटो लेखक

 इसहफ्ते न्यूज. सुरेन्द्र सिंह

ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय देश और दुनिया में शांति का पैगाम देने वाला आध्यात्मिक संस्थान है, इसकी स्थापना विकारों से घिरी दुनिया को सत्कर्मों के द्वारा संवारने के लिए की गई थी। संस्था की वैचारिक गुणवत्ता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यहां केवल नारी शक्ति के नेतृत्व को ही स्वीकारा गया। ब्रह्माकुमारीज संस्था की सोच है कि महान आत्मा बनने के लिए आत्मिक शक्तियों को पहचानने की आवश्यकता है, चूंकि जितना आत्मिक स्थिति का अभ्यास होगा उतनी ही बुद्धि स्थिर और शुद्ध होगी और व्यक्ति उतना ही समाज को दे पाएगा। यह संस्था आज दुनिया के 147 देशों तक नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों की क्रांतिदूत बन गई है। 5 मई 1950 को पाकिस्तान से भारत के आबू पर्वत पर इसे स्थानांतरित किया गया था।

 

ब्रह्मा बाबा का जब धरा पर हुआ प्रकाशमान


दादा लेखराज जिन्हें ब्रह्मा बाबा के रूप में पुकारा जाता है, ने वर्ष 1936 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के हैदराबाद में ओम मंडली नाम से आध्यात्मिक संस्था बनाई थी। तब से शुरू होकर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय एक वैश्विक संस्था बन चुकी है। प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज जीवंत सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की प्रयोगशाला है, जिसके माध्यम से विश्व के नवनिर्माण का कार्य हो रहा है। ब्रह्मा बाबा का इस धरा पर प्रकाशमान 15 दिसंबर 1876 को हुआ था और उन्होंने अपनी भौतिक यात्रा को 18 जनवरी 1969 को विराम दिया। इस दिन को स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है, जहां संस्था के केंद्रों पर बाबा की याद में योग व संस्था की कहानी को प्रदर्शित किया जाता है। वहीं बाबा की शिक्षाओं पर चिंतन मनन होता है। चंडीगढ़ में राजयोग एवं मेडिटेशन टीचर के बतौर हजारों स्टूडेंट्स को आध्यात्मिक रूप से शिक्षित कर चुकीं ब्रह्माकुमारी पूनम बहन के अनुसार मधुरता व वैराग्य के अनूठे संगम स्थल पर आकर देश-विदेश के आध्यात्मिक जिज्ञासु ब्रह्मा बाबा की शिक्षाओं को ग्रहण करते हैं।

 


संस्था की सोच है, आत्मिक शक्तियों को पहचानो

 
ब्रह्माकुमारीज संस्था की सोच है कि महान आत्मा बनने के लिए आत्मिक शक्तियों को पहचानने की आवश्यकता है, चूंकि जितना आत्मिक स्थिति का अभ्यास होगा उतनी ही बुद्धि स्थिर और शुद्ध होगी और व्यक्ति उतना ही समाज को दे पाएगा। आत्मिक व आणविक शक्तियों के समन्वय से एक सुखमय व शांतिमय दुनिया की स्थापना ही ईश्वरीय विश्वविद्यालय का लक्ष्य बताया गया है। तभी तो आत्मा की शक्ति को पहचानने और उसके आत्मा शान्त स्वरूप को समझने की सीख यहां बार-बार दी जाती है। यहां आध्यात्मिक व्याख्यान में बताया जाता है कि अब्राहम, पैगम्बर, क्राइस्ट, बुद्ध, महावीर स्वामी और शंकराचार्य धर्मात्माएं तो हैं किन्तु परमात्मा नहीं। क्योंकि परमात्मा वही है जो अजन्मा हो, निराकार हो, ज्योति स्वरूप हो।


परमात्मा एक प्रकाश पुंज है


मुस्लिम धर्म में भी अल्लाह को नूर कहा गया है। तभी तो अल्लाह को नूर ए इलाही भी कहते हैं। जो हिन्दुओं के लिए दिव्य ज्योतिबिंदु है। इसी तरह क्राइस्ट के लिए लाइट ऑफ गॉड है। जो एक प्रकाश पुंज की तरह है। हजरत मूसा ने भी परमात्मा को ज्योति स्वरूप स्वीकारा है, तो गुरुनानक ने भी परमात्मा को एक ओंकार निराकार माना है। यानि धर्म कोई भी हो सबका मानना यही है कि ईश्वर, अल्लाह, गॉड, वाहे गुरु सतनाम, रूप ज्योति बिन्दु हैं जो गुणों का सिंधु है जो सत्यम शिवम सुन्दरम है और जो पतित से हमें पावन बनाता है वही परमात्मा है। परमात्मा शब्द की व्याख्या करते हुए बताया गया है कि जो सर्वमान्य हो, जन्म मरण से परे हो, जिनके माता- पिता-गुरु न हो, जो स्थिति, गुण, कर्तव्य में सदा रमा हो और सर्वज्ञाता व सर्वदाता हो।

 


ब्रह्मा बाबा ने ओम मंडली से की शुरुआत


दादा लेखराज यानी प्रजापिता ब्रह्मा बाबा शिव परमात्मा के साकार माध्यम हैं, उनका ब्रह्मा द्वारा उचारे हुए महावाक्यों के आधार पर अलौकिक और आध्यात्मिक पुनर्जन्म हुआ। उनके द्वारा स्थापित आध्यात्म आधारित शैक्षणिक संस्था को प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का नाम दिया गया। वर्ष 1936 में ब्रह्मा बाबा ने ओम मंडली नाम से इस आध्यात्मिक सफर की शुरुआत की थी। ब्रह्मा बाबा को आरंभ में अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा, उनकी महिलाओं को आगे बढ़ाने की सोच का पुरजोर विरोध हुआ। लेकिन उन्होंने इस आध्यात्मिक यात्रा को जारी रखा। बाद में संस्था की पहली मुख्य प्रशासक ब्रह्माकुमारी जगदम्बा सरस्वती बनीं, उनके बाद दादी प्रकाशमणि मुख्य प्रशासक रहीं, उनके बाद दादी जानकी ने बतौर मुख्य प्रशासक जिम्मेदारी संभाली। उनके पश्चात दादी गुलजार व अब दादी रत्न मोहिनी जो 97 वर्ष की हैं, संस्था का नेतृत्व कर रही हैं।

 


147 देशों में 10 हजार से अधिक शाखाएं


ब्रह्माकुमारीज की दुनिया के 147 देशों में 10 हजार से भी अधिक शाखाएं हैं, जिनमें करीब 16 लाख विद्यार्थी प्रतिदिन आध्यात्मिक व नैतिक मूल्यों की शिक्षा ग्रहण कर राजयोग का अभ्यास करते हैं। इस संस्था की सोच है कि परमात्मा एक है, वह निराकार एवं अनादि है, जोकि विश्व की सर्वशक्तिमान सत्ता है और ज्ञान का सागर है। परमात्मा विश्व की सर्व आत्माओं का निराकार माता-पिता है। परमात्मा के साथ संबंध की स्मृति और प्रेम को राजयोग कहा जाता है। संस्था का संदेश है कि राजयोग का अभ्यास साधक को आध्यात्मिक परिवर्तन की शक्ति प्र्रदान कर संस्कारवान बनाता है तथा उसका चारित्रिक उत्थान करता है। इससे मानसिक तनाव से मुक्ति, नकारात्मक संकल्पों की समाप्ति और शिव बाबा में समर्पण की शक्ति हासिल होती है। यह संस्था साधक को सहनशीलता, धैर्य, नम्रता, मधुरता व संतुष्टि का रास्ता बताती है और पुरुषार्थ यानी कर्म की शिक्षा देती है।

 


संयुक्त राष्ट्र ने दी मान्यता


ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शिक्षा को वैश्विक स्वीकृति तो मिली है, साथ ही संस्था की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता भी प्राप्त हुई। तभी तो प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय को संयुक्त राष्ट्र संघ ने एनजीओ के रूप में मान्यता देते हुए यूनीसेफ एवं आर्थिक व सामाजिक परिषद का परामर्शदाता सदस्य बनाया हुआ है। साथ ही संस्था को अन्तर्राष्ट्रीय शांति पुरस्कार समेत विभिन्न देशों के मंच पर राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। जो इस बात का प्रमाण है कि संस्था का ‘ओम शान्ति’ मंत्र दुनियाभर को शांति का संदेश देने में सफल हो रहा है। अकादमी का लक्ष्य है कि विभिन्न विषयों को लेकर बनाए गए पाठ्यक्रमों के माध्यम से एक सत्य एवं श्रेष्ठ समाज का निर्माण हो सके और मनुष्य में भौतिक, आध्यात्मिक एवं भावात्मक पक्षों का सुन्दर समन्वय हो। इस अकादमी में सकारात्मक चिन्तन, तनावमुक्ति, आत्म उत्थान, आध्यात्मिकता का अनुप्रयोग, स्वावलंबन व नेतृत्व प्रशिक्षण पाठ्यक्रम कराये जाते हैं।

 

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