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story of a food delivery boy named Durga sankar meena: इंसानियत इसी का नाम है। सोशल मीडिया के जमाने में जब हर कोई आत्मकेंद्रित होकर सिर्फ अपने बारे में सोच रहा है, तब कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिनका दर्द बांटने के लिए अनजान चेहरे सामने आ जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि दुनिया आज मुठ्ठी में सिमट गई है, यह बात तब साबित हो जाती है, जब किसी अनजान के लिए एक साथ मदद को इतने हाथ उठते हैं कि उसकी समस्या का निराकरण हो जाता है।
दरअसल, राजस्थान के भीलवाड़ा से एक प्रेरक प्रसंग सामने आया है। इसमें एक अंग्रेजी टीचर जिनकी नौकरी लॉकडाउन के दौरान छूट गई थी और जोकि अब जोमेटो फूड कंपनी के साथ फूड डिलीवरी ब्वॉय के रूप में काम कर रहे थे, कि एक युवा ने अनोखे तरीके से मदद करके मानवता की मिसाल कायम की है। दुर्गाशंकर मीणा (Durga sankar meena) नामक इन डिलीवरी ब्वॉय को सोशल मीडिया पर क्राउड फंडिंग के जरिए डेढ़ लाख रुपये की मदद के साथ उन्हें नई मोटरसाइकिल भी खरीद कर दी गई है।
साइकिल पर डिलीवरी करते देखा और लिया एक निर्णय
ट्विटर पर आजादनगर के रहने वाली युवा आदित्य शर्मा ने दुर्गाशंकर के लिए मदद का आह्वान किया था। यह 11 अप्रैल की बात है। उस दिन हुआ ऐसा था कि दुर्गाशंकर को आदित्य शर्मा ने साइकिल पर फूड डिलीवरी करते हुए देखा। राजस्थान में आजकल पारा 40 के आसपास है और इतनी गर्मी में साइकिल पर कोई फूड डिलीवर कर रहा है, तो उसकी परेशानी का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। आदित्य शर्मा 12वीं कक्षा में पढ़ रहे हैं।
तीन घंटे के अंदर कर दिखाया कारनामा
आदित्य शर्मा ने ट्विटर पर क्राउड फंडिंग का यह कारनामा महज तीन घंटे के अंदर कर दिखाया। उन्होंने इसके लिए पूरी शूचिता और ईमानदारी से काम किया, उन्होंने न केवल दुर्गाशंकर मीणा की साइकिल पर आते-जाते और काम करते की तस्वीरें साझा की अपितु लोगों से सीधे उनके बैंक खाते में राशि डालने का अनुरोध किया। इसके बाद जो हुआ, वह एक खूबसूरत इतिहास बन गया। चौबीस घंटे के अंदर इस राशि से दुर्गाशंकर को नई बाइक मिल गई। परोपकार की यह अनूठी मिसाल राजस्थान समेत पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई है।
दुर्गाशंकर मीणा अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं- मैंने बीकॉम किया है, इसके बाद एक निजी स्कूल में अंग्रेजी के टीचर के रूप में नौकरी मिल गई। लेकिन कोरोना काल के दौरान लगे लॉकडाउन ने दूसरे बहुतों की तरह उनका जीवन भी संकट में डाल दिया और उनकी नौकरी चली गई। अब घर तो संभालना ही था, इसलिए उन्होंने फूड कंपनी में डिलीवरी ब्वॉय की नौकरी स्वीकार करते हुए काम शुरू कर दिया। इस नौकरी से उन्हें माह भर में कोई दस हजार रुपये की आय हो जाती है, लेकिन कोई दोपहिया वाहन न होने की वजह से वे साइकिल पर ही डिलीवरी देने जाते थे।
बैंक प्रोबेशनरी आफिसर के लिए भी तैयारी
डिलीवरी के साथ उन्होंने बच्चों को पढ़ाना भी शुरू किया, इसके लिए वे उन्हें ऑनलाइन ट्यूशन देते थे। मीणा कहते हैं- मैंने हिम्मत नहीं हारी है, मेरा इरादा आगे बढ़ते रहने का है। अब बैंक प्रोबेशनरी ऑफिसर बनने के लिए परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं। इससे पहले साइकिल पर डिलीवरी देने की वजह से मेहनत बहुत ज्यादा होती थी, जिससे थकान हो जाती थी और पढ़ाई पर इसका असर पड़ता था। लेकिन अब बाइक मिलने से सुविधा हो गई है और डिलीवरी के बाद पढ़ाई भी कर पा रहा हूं।
तो साबित हुआ इंसानियत है जिंदा
दरअसल, इस तरह की खबरें यह विश्वास दिलाने को काफी हैं कि इंसानियत अभी जिंदा है। जब दूसरे के एक-एक पैसे को हड़पने की इच्छा रखने वाले लोग भी हों और दूसरों को दर्द और तकलीफ से घिरा देखकर भी जिनका दिल नहीं पसीजता हो, ऐसे लोगों को आदित्य शर्मा जैसे युवा प्रेरक हैं। वैसे, सोशल मीडिया पर अनुचित और गलत प्रचार करके अपना और दूसरों का समय खराब करने वालों को भी इससे नसीहत मिलनी चाहिए कि इस पावरफुल साधन का इस्तेमाल न्याय की लड़ाई और विचार की शक्ति को कायम करने के लिए किया जाए।