नये साल की पहली नज़्म
वो जो..........!
फटे-पुराने जूते गांठ रहा है
वो भी
मैं हूं
वो जो........
घर-घर धूप की चांदी बांट रहा है
वो भी
मैं हूं
वो जो
उड़ते परों से अम्बर पाट रहा है
वो भी मैं हूं
वो जो........
हरी-भरी शाख़ों को काट रहा है
वो भी
मैं हूं
सूरज-चांद निगाहें मेरी
साल-महीने राहें मेरी
कल भी मुझमें
आज भी मुझमें
चारों ओर दिशायें मेरी
अपने-अपने आकारों में
जो भी चाहे भर ले मुझको
जिसमें जितना
समा सकूं मैं
उतना अपना कर ले मुझको
हर चेहरा है मेरा चेहरा
बेचेहरा एक दर्पण हूं मैं
पल-पल रूप बदलने वाली
मिट्टी हूं मैं
जीवन हूं मैं।
-निदा फा़ज़ली
उजला-उजला पूरा चांद से साभार