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फटे-पुराने जूते गांठ रहा है वो भी मैं हूं....वो जो........ घर-घर धूप की चांदी बांट रहा

नये साल की पहली नज़्म

20 नवंबर, 2021 12:44 PM
एक कविता जीवन के नाम। फोटो Pixabay

नये साल की पहली नज़्म

वो जो..........!
फटे-पुराने जूते गांठ रहा है
वो भी
मैं हूं
वो जो........
घर-घर धूप की चांदी बांट रहा है
वो भी
मैं हूं
वो जो
उड़ते परों से अम्बर पाट रहा है
वो भी मैं हूं
वो जो........
हरी-भरी शाख़ों को काट रहा है
वो भी
मैं हूं
सूरज-चांद निगाहें मेरी
साल-महीने राहें मेरी
कल भी मुझमें
आज भी मुझमें
चारों ओर दिशायें मेरी
अपने-अपने आकारों में
जो भी चाहे भर ले मुझको
जिसमें जितना
समा सकूं मैं
उतना अपना कर ले मुझको
हर चेहरा है मेरा चेहरा
बेचेहरा एक दर्पण हूं मैं
पल-पल रूप बदलने वाली
मिट्टी हूं मैं
जीवन हूं मैं।

-निदा फा़ज़ली
उजला-उजला पूरा चांद से साभार

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