धर्म

मनुष्य के अंदर व्याप्त अज्ञानता को नष्ट करती है शिवरात्रि

इस शिवरात्रि पर हम सब संकल्प लें कि हम अभिमान त्याग कर आत्म स्थिति में स्थित होकर व आत्मा के मूल गुणों को धारण कर जीवन के व्यवहार में लाएंगे और पांचों विकारों के घमासान से खुद को दूर रखेंगे।

01 मार्च, 2022 01:12 AM
शिव ही सुंदर हैं, शिव ही सत्य हैं। फोटो पिक्साबे

सुरेंद्र सिंह

सभी त्योहारों में शिवरात्रि का अपना अलग महत्व है। इस पर्व का वास्तविक स्वरूप क्या है? शिव का रात्रि के साथ क्या संबंध है? अन्य देवताओं का पूजन दिन में होता है लेकिन शिवरात्रि रात में ही क्यों मनाई जाती है और शिवरात्रि फाल्गुन मास की चौहदवीं अंधेरी रात में, अमावस्या के एक दिन पहले ही क्यों मनाई जाती है। कहा जाता है, शिव तमोगुण के अधिष्ठाता हैं, इसलिए शिव की पूजा रात्रि में होती है। ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय में शिवरात्रि पर विशेष आयोजन होता है। ब्रह्माकुमारीज पूनम बहन बता रही हैं इस पर्व का महत्व एवं इसके माध्यम से मनुष्य किस प्रकार अध्यात्म का लाभ अर्जित कर सकता है।

उन्होंने बताया कि परमात्मा शिव की याद में शिवरात्रि मनाई जाती है, क्योंकि रात्रि तमोगुण की प्रतिनिधि है, परंतु उनकी इस मान्यता पर भी सवाल उठते हैं, क्योंकि वास्तव में देखा जाए तो परमात्मा शिव तमोगुण के अधिष्ठाता नहीं हैं, बल्कि तमोगुण के संहारक हैं अथवा नाशक हैं। यदि शिव तमोगुण के अधिष्ठाता होते तो उन्हें शिव पापकटेश्वर और मुक्तेशवर कहना ही निरर्थक हो जाता क्योंकि शिव का अर्थ ही कल्याणकारी है, जबकि तमोगुण एक अकल्याणकारी पापवर्धक और मुक्ति में बाधक है।

मानव कल्याण के लिए अनेक मान्यताओं को समेटे इस त्योहार के बारे में एक मान्यता यह भी है कि इस रात्रि को अकेले परमात्मा ने अंबा इत्यादि शक्तियों से संपन्न होकर रचना का कार्य प्रारंभ किया था। कुछ मान्यताएं ऐसी भी हैं जिनमें शिवरात्रि के दिन को परमात्मा शिव के दिव्य जन्म अथवा अवतरण का दिन भी कहा गया है। एक प्रकार से देखा जाए तो कुछ पर्व मन को खुशी प्रदान करते हैं व कुछ आर्थिक और सांस्कृतिक विरासत की पहचान कराते हैं। यह त्योहार मनुष्य के अंदर व्याप्त अज्ञानता को दूर करता है। यह सबसे महान और अलौकिक पर्व है। वास्तविकता यह है कि देवों के देव महादेव शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है, इसे ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है।

शास्त्रीय दृष्टिकोण से शिव कल्याणकारी स्वरूप का परिचायक है तथा लिंग बिंदु अथवा प्रतिमा को व्यक्त करता है। शिव सभी मनुष्य आत्माओं के परमपिता हैं, देवेश्वर शिव की महिमा अनंत है, उनके कर्म दिव्य हैं। परमात्मा शिव के बारे में कहावत भी है कि उन्हें भांग, धतूरा प्रिय है, वे श्मशान की राख को अपने ललाट पर धारण करते हैं, भूत, प्रेत उनके साधक हैं और मौत उनकी दासी।

प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय माउंटआबू की चंडीगढ़ शाखा की राजयोगी टीचर बी के पूनम बहन के अनुसार वर्तमान समय में शिवरात्रि की सार्थकता को सिद्ध करते हुए यह आवश्यक हो गया है कि अपने अंदर छिपे पांच विकारों को परमात्मा को दें जो मनुष्य को मानवीय गुणों से दूर राक्षसपन में तब्दील करते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार एवं आसुरी प्रवृत्तियों को परमात्मा के ऊपर अर्पण करने के बाद इससे मिलने वाले सुख और पवित्रता को अपने जीवन में धारण करें तो देवता, मनुष्य की ओर आकर्षित होंगे और सुख शांति से पूर्ण कर देंगे। परमात्मा किसी माता के गर्भ में जन्म नहीं लेते, वे स्वयं ही अपने जन्मदाता हैं। उनका जन्म-मरण कर्म बंधन से रहित है। बीके पूनम के अनुसार इस शिवरात्रि पर हम सब संकल्प लें कि हम अभिमान त्याग कर आत्म स्थिति में स्थित होकर व आत्मा के मूल गुणों को धारण कर जीवन के व्यवहार में लाएंगे और पांचों विकारों के घमासान से खुद को दूर रखेंगे।

 

बी के पूनम बहन ने बताया कि परमात्मा विश्व निर्माण का कर्तव्य प्राण कर रहे हैं उनके अनुसार महापुरुषों की जयंती में सर्वोच्च तथा श्रेष्ठतम यह एक शिवजयंती है। परमात्मा शिव का अवतरण इस लोक में कलयुग के प्रांत से कुछ वर्ष पहले हुआ था, जब सारी सृष्टि अज्ञानता के अंधकार में थी, इसलिए शिव का संबंध रात्रि से जोड़ा जाता है और परमात्मा का परमात्मा शिव की रात्रि में पूजा को अधिक महत्व दिया जाता है।

 

शिव ही समस्त देवी देवताओं के आराध्य हैं। बहुत से इतिहासकारों ने स्वीकार किया है कि मोहनजोदड़ो सभ्यता के लोग शिव के उपासक थे। स्वयं सम्राट विक्रमादित्य जिनके नाम से भारतीय संवत चल रहा है, भी शिव के पुजारी थे। सर्वोच्च कवि कालिदास भी शिव की पूजा करते थे। कालिदास ने मेघदूत और रघुवंश दोनों में महाकाल की स्तुति की है। भास, भवभूति, पदम गुप्त ने भी शिव की महिमा गाई है तथा उसे ज्योति स्वरूप बताया है। भाषा का इतिहास लिखने वाले लोग भी कहते हैं कि दिव्य भाषा का प्रारंभ परमात्मा शिव ही ने डमरू बजाकर सृष्टि के प्रारंभ में अगम निगम का भेद खोला था। विचार करने पर यह स्पष्ट होता है कि परमात्मा शिव कृष्ण व राम की भांति किसी माता-पिता के यहां शीशु तन में जन्म नहीं लेते बल्कि वे एक साधारण व्यक्ति के रूप में अवतरित होते हैं।

 

बीके पूनम के अनुसार परमात्मा ज्योति बिंदु शिव प्रत्येक कल्प में एक बार कलयुग के अंत और सतयुग के आदि के संगम समय पर आकर पुन: आसुरी समाज का विनाश कर देव समाज की स्थापना करते हैं। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात वर्तमान मानवता के लिए यह है कि वर्तमान समय महत्वपूर्ण समय है। जबकि कल्याणकारी शिव अपना कल्प पूर्व वाला कार्य फिर से कर रहे हैं। आज संसार की परिस्थितियां भी ऐसी हैं जिनमें भी उनके आने की आवश्यकता है। आज मानव इतिहास पुन: एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आ पहुंचा है। एक और मानव उत्थान की अनंत संभावनाएं हैं तो दूसरी ओर विनाश की पूरी तैयारी है।

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