चंडीगढ़

सरकार से भी यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर आपने अपने नागरिकों की जान बचाने के लिए क्या किया?

20 मई, 2021 01:18 PM

इसहफ्ते न्यूज

चंडीगढ़, 8 अगस्त

संक्रमण की दूसरी लहर ने जीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है। न जाने कब कौन संक्रमित हो जाए और फिर उसकी सांसें किसी अस्पताल के बैड पर या फिर कॉरिडोर में, गाड़ी की सीट पर, स्ट्रेचर पर या फिर बैठे-बैठे ही थम जाएं। कितना दुखद है, जब हर तरफ से ऐसी खबरें हम से आकर टकरा रही हैं, कि फलां का परिजन चला गया, या खुद उन्होंने दुनिया से विदा ले ली। आजकल लोग धार्मिक स्थलों पर नहीं जा रहे क्योंकि अस्पताल ही मंदिर बन गए हैं, लेकिन कैसा समय है कि इन मंदिरों में व्यवस्था डांवाडोल हो चुकी है। कितने ही लोगों की मौत ऑक्सीजन न होने से हो चुकी है और कितने ही लोग दूसरी बीमारियों के प्रभाव में कोरोना की जंग हार चुके हैं। आजकल श्मशान घाटों में जगह नहीं रह गई है और पार्क, सडक़ के किनारे किसी पार्थिव देह को अग्नि के हवाले करने को रह गए हैं। रह-रहकर यही सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर सरकारों ने इस आफत का पहले से आकलन क्यों नहीं किया। आखिर किस प्रकार यह चूक रह गई। हालात ऐसे हैं कि केंद्र राज्य सरकारों को जिम्मेदार बता रहा है, वहीं राज्य सरकारें केंद्र सरकार पर जिम्मेदारी डाल रही हैं। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट अगर कोरोना से निपटने के लिए केंद्र को जिम्मेदार बता रहा है तो फिर केंद्र सरकार किस प्रकार इससे इनकार कर सकती है। देश में आजकल मध्यभारत के अनेक राज्य कोरोना संक्रमण का भयंकर प्रकोप झेल रहे हैं, लेकिन राजधानी दिल्ली के हालात तो बेहद खराब हैं। बीते दिनों केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाने वाले कानून की अधिसूचना जारी की थी, उपराज्यपाल सीधे केंद्र सरकार के तहत काम करते हैं, ऐसे में फिर केंद्र सरकार अपनी इस जिम्मेदारी से कैसे बच सकती है। हालांकि दिल्ली में इस समय एक निर्वाचित सरकार भी है, तब उस सरकार से भी यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर आपने अपने नागरिकों की जान बचाने के लिए क्या किया?
दरअसल, दिल्ली के अस्पतालों में ऑक्सीजन सप्लाई, बेड और दवाओं की कमी को लेकर सुनवाई हुई है। इस दौरान कोर्ट ने दिल्ली सरकार को जमकर फटकारा। यहां तक कहा गया कि अगर आप सेना से अनुरोध करते तो वे अपने स्तर पर काम करते। उनका अपना बुनियादी ढांचा है। वहीं दिल्ली में अधिक बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए सशस्त्र बलों की मदद लेने के सुझावों पर दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि इस संबंध में निर्णय लिया जा रहा है। वास्तव में यह अचंभित करने वाली बात है कि सरकारें अभी तक निर्णय ही ले रही हैं, अभी भी ऐसे बयान आ रहे हैं, जिसमें मंत्री के हवाले से कहा जा रहा है कि सरकार वहां अस्पताल बनाने जा रही है या फिर वहां से ऑक्सीजन उपलब्ध कराने के लिए काम कर रही है। इस समय सूचनाएं ऐसी आनी चाहिए कि सरकारें यह कर चुकी हैं। यह समय युद्ध स्तर पर काम करने का है। राजधानी दिल्ली के संबंध में बीते दिनों मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के साथ बैठक के दौरान अनुचित और प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए गतिविधि अंजाम दी थी, जिसकी काफी आलोचना हुई थी। दिल्ली सरकार के इस उपक्रम से यह लगा था कि वह बेबस और दिशाहीन हो चुकी है। अब अदालतें तो उसकी भूमिका पर सवाल उठा ही रही हैं, खुद आम आदमी पार्टी के विधायक एवं नेता भी सरकार पर प्रश्न दाग रहे हैं। पार्टी के विधायक शोएब इकबाल का वह बयान सुर्खियां बन चुका है, जिसमें उन्होंने कहा है कि दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाना चाहिए, क्योंकि हालात बेकाबू हो चुके हैं। विधायक ने इसका भी अफसोस जाहिर किया है कि छह बार विधायक रहने के बावजूद उनकी सुनवाई नहीं हो रही। जाहिर है, देशभर में आजकल सरकार में और सरकार के बाहर विपक्ष में बैठे नेताओं, मंत्रियों की भी सुनवाई नहीं हो रही, उत्तर प्रदेश में भाजपा के एक विधायक की मौत बैड का केंद्रीय मंत्री से इंतजाम कराने की मांग कराते-कराते हो गई। यह विवशता खास और आम दोनों के लिए हो रखी है। तब यही सवाल कायम है कि आखिर सरकार अपनी सक्षमता को साबित क्यों नहीं कर पा रही?
कोरोना संक्रमण के इस भयावह फैलाव की वजह केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से बरती गई ढील ही जिम्मेदार है। बेशक, सांप गुजरने के बाद लकीर पीटने से कुछ हल नहीं होता। यही हाल आजकल सरकारी व्यवस्थाओं का हो रहा है। सरकारों का काम नागरिकों के जीवन अधिकार की रक्षा करना होता है, लेकिन यहां तो सरकारें खुद पंगु हो गई हैं। यह कितने खेद की बात है कि बीते वर्ष केंद्र सरकार जिस प्रकार से उत्साह के साथ कोरोना के खिलाफ लडऩे और लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए काम कर रही थी, इस वर्ष उससे पूछा जा रहा है कि आपके पास मरीजों की भर्ती को लेकर क्या नीति है? यानी केंद्र सरकार ने अभी तक ऐसा कोई प्रोटोकॉल ही नहीं बनाया है। तब क्या यह माना जाए कि केंद्र सरकार एवं राज्य सरकारें ऐसे ही अंधेरे में तीर चला रही हैं, लग गया तो ठीक है वरना फिर कोशिश करो। क्या कोरोना जैसी महामारी के संबंध में इतनी जानकारी होने के बावजूद हमारे तंत्र ने उससे मुकाबले के लिए मजबूत प्रणाली विकसित नहीं की। अब ऐसी भी रिपोर्ट आ रही हैं कि मई में संक्रमण का पीक आ सकता है। कहा जा रहा है कि छह हफ्ते में मौजूदा कोरोना लहर का असर खत्म होने की संभावना है। आखिर ऐसी संभावनाओं के सहारे ही सरकारें कोरोना से लड़ रही हैं। यह कितना दुखद है कि आजकल बीमार होना लॉटरी के समान हो गया है, यानी अगर अच्छी किस्मत है तो कोई अस्पताल से वापस लौट आएगा, नहीं तो फिर उसकी बॉडी ही आएगी। यह भी कितना विचित्र और सन्न कर देने वाली बात है कि अस्पताल में मरीज को दाखिल कराते समय डॉक्टर और अन्य स्टाफ परिजनों से अपने मरीज की फोटो खींच कर रखने को कह रहे हैं। उनकी आशंकाएं यही होती हैं कि बाद में पता नहीं मरीज किस हालत में अस्पताल से बाहर निकले। वह अस्पताल की सीढिय़ों से उतरेगा या फिर मॉर्चरी से प्लास्टिक की शीट में लपेटकर बाहर भेजा जाएगा। देश में बड़ी और नामचीन लोगों के संबंध में भी मौत की खबरें आ रही हैं, जोकि मानसिक रूप से सुन्न कर देती हैं। युवा भी इस महामारी से नहीं बच रहे। तब यह कहना कितना सच जान पड़ता है कि जीवन आजकल बेहद अनिश्चित हो गया है। आखिर जानों को हम क्यों नहीं बचा पा रहे, बेशक कोरोना संक्रमण की भयावहता उसके रोगी के इलाज को दुर्गम बना देती है, लेकिन जिन संसाधनों के बूते हम कोरोना पर अंकुश लगा सकते हैं, उनकी आपूर्ति तो हमें करनी ही होगी। मौजूदा हालात में केंद्र एवं राज्य सरकारें अपने तौर पर काफी प्रयास भी कर रही हैं, लेकिन फिर भी ऐसी कोशिशों और प्रयासों को पहाड़ जैसा किए जाने की जरूरत है।

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