चंडीगढ़

चंडीगढ़ को अंधेरे में डुबाेने का जिम्मेदार कौन?

बिजली कर्मियों की 72 घंटे की हड़ताल से शहर हुआ हलकान, प्रशासन से पावरमैन यूनियन की वार्ता भी विफल। आखिर प्रशासन ने समय रहते वैकल्पिक इंतजाम क्यों नहीं किए।

23 फ़रवरी, 2022 04:36 PM
बच्चों के एग्जाम सिर पर हैं, और बगैर लाइट उन्हें मोमबत्ती की रोशनी में पढ़ना पड़ रहा है।

इसहफ्ते न्यूज. चंडीगढ़

Powerman strike in chandigarh: सिटी ब्यूटीफुल चंडीगढ़ में यह अप्रत्याशित है कि बिजली कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से पूरा शहर ठप हो जाए। न रात को बिजली, न दिन में बिजली। घर, दुकानें, व्यापारिक प्रतिष्ठान, अस्पताल, औद्योगिक इकाइयां, अदालतें, स्कूल-कॉलेज, यूनिवर्सिटी और यहां तक की ट्रैफिक लाइट्स, सभी ठप हो चुके हैं। घरों में लोग मोमबत्तियों से रोशनी करने को मजबूर हैं तो अस्पतालों में मोबाइल फोन की रोशनी में इलाज चल रहा है। लेकिन मोबाइल फोन भी बंद हो गए हैं।


दुकानों में फ्रोजन सामान खराब हो रहा है। उद्योगों में काम बंद हो गया है और इससे करोड़ों रुपये के नुकसान का अनुमान है, वहीं पीजीआई समेत सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में हजारों सर्जरी टाल दी गई हैं। मंगलवार की सुबह से शुरू हुई यह हड़ताल 72 घंटे यानी तीन दिन के लिए तय है। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से इस मामले में खुद संज्ञान लेते हुए प्रशासन के चीफ इंजीनियर को तलब करना पड़ा है। प्रशासन अपने तौर पर इस संकट को हल करने में विफल रहा। प्रशासन ने हड़ताली कर्मचारियों पर एस्मा यानी ईस्ट पंजाब एसेंशियल सर्विसेज मेंटनेंस एक्ट-1968 के सब सेक्शन -3 के तहत अगले छह महीने तक हड़ताल पर प्रतिबंध लगा दिया है।


चंडीगढ़ प्रशासक के सलाहकार ने भी हड़ताली कर्मचारियों को आश्वासन दिया था कि उनके सभी अधिकार और हित सुरक्षित रहेंगे लेकिन उन्हें अपनी हड़ताल को खत्म कर देना चाहिए, बावजूद इसके हड़ताली कर्मचारी नहीं माने और बिजली विभाग के निजीकरण के खिलाफ अपनी हड़ताल को जारी रखा। देशभर में बिजली कर्मचारियों के विरोध-प्रदर्शन जारी हैं। अब चंडीगढ़ में बिजली कर्मचारियों की हड़ताल ने पूरे देश का ध्यान इस ओर खींच लिया है।

 

चंडीगढ़ एक मॉडल शहर है और इसे व्यवस्था के लिए जाना जाता है। लेकिन मंगलवार की रात शहर अंधेरे में डूबा रहा, वहीं ट्रैफिक लाइटों पर मैनुअल ट्रैफिक संचालन किया गया, वह भी चुनिंदा जगह पर। शहर में करोड़ों रुपये की लागत से सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं, जोकि बिजली न होने की वजह से बेकार हो गए। सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले कार्य उद्योग और अस्पताल हैं। ऐसी रिपोर्ट है कि पीजीआई में 2हजार सर्जरी टालनी पड़ी हैं, यह अपने आप में बेहद दुखद है। अनेक सर्जरी एमरजेंसी में होती हैं लेकिन बिजली न होने से मरीजों की जान संकट में है। कोरोना की वैक्सीन के लिए फ्रीज आवश्यक है, लेकिन बिजली न होने की वजह से उन्हें स्टोर करना मुश्किल हो गया है। ऐसे में उन्हें कहीं ओर शिफ्ट करने की नौबत आ गई है।

बेशक, प्रशासन को बहुत पहले इसकी जानकारी मिल चुकी होगी कि बिजली कर्मचारी हड़ताल पर जाने वाले हैं, लेकिन फिर भी इसका इंतजाम नहीं किया गया। खैर, यह भी रिपोर्ट है कि प्रशासन ने हरियाणा और पंजाब से बिजली कर्मचारियों को डेपूटेशन पर भेजने को कहा था, लेकिन पंजाब ने इससे साफ इनकार कर दिया वहीं हरियाणा की ओर से कोई जवाब ही नहीं दिया गया। हालांकि प्रशासक के सलाहकार की ओर से पावरमैन यूनियन को बातचीत के लिए बुलाया गया था, लेकिन यह वार्ता विफल हो गई। इसके बाद ही एस्मा को लागू किया गया।

केंद्र एवं राज्य सरकारों के कर्मचारियों के लिए अपनी मांगों को मनवाने का हथियार हड़ताल है। बैंक कर्मचारी भी हड़ताल पर जाते हैं और दूसरे विभागों के कर्मचारी भी। लेकिन उनकी हड़ताल से हालात इतने भयावह नहीं होते, ऐसा इसलिए है क्योंकि बैंकिंग सेक्टर में प्राइवेट बैंक भी हैं, वहीं मेडिकल क्षेत्र में सरकारी स्टाफ हड़ताल करता है तो निजी अस्पताल भी उपलब्ध हैं। लेकिन बिजली और पानी सरकारी कर्मचारियों की बदौलत ही जनता तक पहुंचता है, ऐसे में अगर वही हड़ताल पर जाएंगे तो फिर हालात बद से बदतर होंगे ही। अब बेशक बिजली एसेंशियल सर्विस है, यह बात बिजली कर्मचारियों को भी मालूम है, लेकिन फिर भी वे हड़ताल पर गए हैं तो ऐसा अपनी मांगों को प्रभावी तरीके से लागू करवाने की नियत से किया गया है।

यह सवाल अहम है कि बिजली कर्मचारियों ने अपनी मांगों के लिए क्या शहर का जनजीवन दूभर नहीं कर दिया है। अगर उन्हें हड़ताल करनी ही है तो क्या वे इसकी समुचित व्यवस्था करके नहीं जा सकते थे कि कुछ कर्मचारियों की गैर मौजूदगी में कोई अन्य उनके काम को संभाल सके। ऐसा न करके उन्होंने जनता का समर्थन खोया है।

व्यापार क्षेत्र से जुड़े लोग इसके लिए प्रशासन को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, हालांकि प्रशासन का काम कर्मचारियों को अपॉइंट करके जनसेवा प्रदान करना है, लेकिन अगर तमाम प्रयासों के बावजूद कर्मचारी हड़ताल पर जाते हैं तो फिर यह जिम्मेदारी सामूहिक होनी चाहिए। इस संबंध में हड़ताली कर्मचारियों को संवेदनापूर्ण निर्णय लेकर हड़ताल को समाप्त करना चाहिए। हड़ताल की वजह से जिंदगी को लगा यह लॉकडाउन प्रत्येक पर भारी पड़ रहा है। प्रशासन को भी चाहिए कि हड़ताल के समाधान के लिए हरसंभव प्रयास करे।  जनता को इसका जवाब चाहिए कि उसे इस संकट में डालने के लिए कौन जिम्मेदार है और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल क्यों रहा। 

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