इसहफ्ते न्यूज. चंडीगढ़
राजनीति शास्त्र एक विषय है, जिसे पढक़र बीए, एमए, एमफिल और पीएचडी होती है, लेकिन इस विषय की पढ़ाई के दौरान कहीं भी यह नहीं पढ़ाया जाता कि एक दिन पहले तक जिस पार्टी की बुराई करते रहे हो, अगले दिन उसी के पाले में आकर खड़े हो जाओ। राजनीति मौसम की तरह है, सुबह बादल तो दोपहर होते-होते तेज धूप और शाम होते-होते झमाझम बारिश। राजनेताओं की प्रजाति उन चंचल पंछियों से भी काफी भिन्न है, जोकि एक पल के कुछ हिस्सों में ही न जाने कहां से कहां उड़ जाते हैं, फिर लौटते हैं और फिर उड़ जाते हैं। जाहिर है, भारतीय लोकतंत्र इसकी आज्ञा और आजादी देता है। विचारों का यह खेल जितनी सफाई से खेला जाता है, वह आम आदमी को हैरान कर देता है, लेकिन राजनीति के माहिर जानते हैं कि उन्होंने ऐसा क्या गुल खिला दिया है जोकि विरोधियों का दिन का चैन और रात की नींद हराम कर देगा।
नए साल में चुनावी मौसम अपने सुरूर में आने लगा है। हर तरफ चुनावी रंग बिखरे हैं। चंडीगढ़ नगर निगम चुनावों से इसकी शुरुआत हो चुकी है। इन चुनावों में चंडीगढ़ की जनता ने कुछ ऐसा किया है जोकि संभावित भी था और जिसकी आवश्यकता भी महसूस की जा रही थी। लेकिन बावजूद इसके शहर के लोगों का मन डांवाडोल हो गया, कुछ इधर चले गए और कुछ उधर। किसी को दिल्ली वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पसंद आ गए और किन्हीं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। दोनों के बीच बहुतों को सोनिया जी, राहुल जी और प्रियंका जी भी खूब भायीं। जब सभी को कुछ न कुछ दिया जा रहा था तो फिर बादलों को कैसे भूला जा सकता था, और एक सीट ही सही लेकिन चंडीगढ़ में शिअद के एकमात्र पार्षद को जीता कर जनता ने पंजाब और पंजाबियत से अपना नाता बनाए रखा। भाजपा के लिए यह चुनाव अचंभित करने वाला नहीं रहा है, अब पार्टी में टिकट वितरण में भाई-भतीजावाद के आरोप भी लगे, फिर सत्ता विरोधी लहर का असर भी दिखा। कोरोना, लॉकडाउन और उससे उपजी महंगाई ने कांग्रेस को हल्ला मचाने का भरपूर अवसर दिया और उन लोगों की चाहतें जवां हो गई जोकि अभी भी मानते हैं कि कांग्रेस का भविष्य बचा है। वे कांग्रेस के साथ चले गए।
सोचा यह जा रहा है कि अगर चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी ने इतनी शिद्दत से अपने पैर ने रखे होते तो आज निगम में फिर किसका सिक्का चल रहा होता। कांग्रेस का या फिर से भाजपा का। भाजपा उम्मीदवारों को पूरी आशंका है कि अगर आप न होती तो वे ही निगम के किंग होते, ऐसा हो भी सकता था। क्योंकि चंडीगढ़ की जनता ने अभी तक दो ही दल देखे हैं, एक भाजपा और दूसरी कांग्रेस। किसी तीसरे की दाल यहां गलती नहीं दिखी, लेकिन वर्ष 2021 के नगर निगम चुनाव ने आम आदमी पार्टी की धमाकेदार एंट्री दिलवा कर शहर की जनता ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को आईना दिखा दिया है। यह जरूरी भी था क्योंकि इन दोनों ही दलों के नेताओं को यह लगने लगा था कि उनके बगैर शहर की सियासत नहीं चल सकती। खैर, निगम चुनाव में भाजपा को 12 सीटें मिली हैं, कांग्रेस से 4 ज्यादा। यानी भाजपा नेताओं का यह गुमान बरकरार रह सकता है कि जनता ने उन्हें पूरी तरह साइड लाइन नहीं किया है। कुल 35 पार्षदों के निगम में कांग्रेस को सिर्फ 8 सीटें मिली हैं। लेकिन एक पार्षद के पाला बदलने से अब उसके पास सिर्फ 7 पार्षद हैं, वहीं आम आदमी पार्टी एकमुश्त 14 सीटें जीतने में कामयाब रही।
नगर निगम की इस समय स्थिति यह है कि आम आदमी पार्टी के मुकाबले भाजपा के पास एक वोट कम है। यह स्थिति तब बदली है, जब कांग्रेस नेता और पूर्व पार्षद देविंदर बबला वार्ड 10 से कांग्रेस की टिकट पर जीती अपनी पत्नी हरप्रीत कौर बबला को लेकर भाजपा में शामिल हो गए। अब भाजपा के पास भी सांसद किरण खेर के एक वोट समेत 14 पार्षद हो गए हैं। यानी आम आदमी पार्टी के मुकाबले दोनों के पास 14-14 वोट हैं। लेकिन इसके बावजूद भाजपा को अपना मेयर बनवाने के लिए और वोट चाहिए होंगे। वे वोट कहां से आएंगे, यही सबसे बड़ा रहस्य है। शिरोमणि अकाली दल का भाजपा से पंजाब में अलगाव हो चुका है, दोनों के रास्ते अलग हैं और दोनों विरोधियों की भूमिका में हैं। हालांकि यह भी तय नहीं है कि अकाली पार्षद का वोट आम आदमी पार्टी की मेयर प्रत्याशी को जाएगा, क्योंकि पंजाब में आप और अकालियों में भी भिड़ंत है, चंडीगढ़ में आप का मेयर बनवा कर अकाली उसे मजबूती प्रदान करना नहीं चाहेंगे। कांग्रेस नेताओं का दावा है कि वे भी मेयर का चुनाव लड़ेंगे। पार्टी 7 पार्षदों की स्ट्रेंथ के साथ अगर चुनाव में उतरना चाहती है तो यह कवायद सिर्फ मोर्चे पर बने रहने की है, जीत मिले न मिले।
12 साल कांग्रेसी रहे देविंदर बबला वह शख्स हैं, जिन्होंने शहर और कांग्रेस की राजनीति को जीवंत बनाए रखा है। वे कांग्रेस के अंदर मुखर रहे हैं और अब जब चैलेंजिंग हालात में उन्होंने अपनी पत्नी को पार्षद निर्वाचित करवा लिया तो उनका यह कहना दम रखता है कि कांग्रेस के बूते नहीं बल्कि उनके खुद के बूते उनकी पत्नी ने चुनाव जीता है। बबला खुद को एक ब्रांड बता रहे हैं। उनकी इस बात में बल तब नजर भी आता है, जब हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर खुद उन्हें भाजपा में शामिल कराने के लिए चंडीगढ़ भाजपा के ऑफिस पहुंचते हैं। खट्टर ने बबला के आने से भाजपा को मजबूती मिलने की बात कही है। पिछले कुछ दिनों में पंजाब और चंडीगढ़ में भाजपा के लिए हालात तेजी से बदले हैं।
एक समय सिर्फ अकालियों के सहारे पंजाब में आगे बढ़ती रही पार्टी को अब विरोधी अकाली, कांग्रेस से साथी मिलने लगे हैं। सबसे बढ़कर तो पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस से बाहर आने और भाजपा के साथ सुर मिलाने के बाद जैसी स्वीकार्यता भाजपा के लिए बढ़ी है, वह पार्टी के भविष्य के लिए सुखद है। यही स्थिति चंडीगढ़ में भी सामने आई है। देविंदर सिंह बबला भाजपा नेताओं को मूंछें उमेठ कर दिखाते रहते थे, लेकिन अब वही पूर्व कांग्रेस भाजपा का भगवा पटका पहन कर सांसद किरण खेर के पैर छू रहे हैं। वे अब यह भी बताना नहीं भूल रहे कि वे मोगा में रहते हुए कभी आरएसएस की शाखा में जाते थे और वहीं उन्होंने लठ चलाना सीखा। जाहिर है, जीवन में सीखा गया कोई भी हुनर कभी न कभी काम जरूर आता है। अब बबला को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम भाने लगे हैं और उनका दावा भी है कि जो मोदी ने किया है, वह कोई नहीं कर सकता। भाजपा बबला के पंजाब कनेक्शन को भुनाना चाहेगी। उनकी भाजपा में मौजूदगी का पंजाब चुनाव में भी असर दिख सकता है।
संभव है, चंडीगढ़ भाजपा के नेताओं की इस कामयाबी की कहानी प्रधानमंत्री और पार्टी नेतृत्व को सुनाई जा चुकी होगी, जिन्होंने हर हाल में चंडीगढ़ में भाजपा का मेयर बनवाने के निर्देश दिए हुए हैं। अब संभव है, कांग्रेस के उन पार्षदों के दिल पिघल जाएं जोकि आम आदमी पार्टी को आगे बढ़ते नहीं देखना चाहते, ऐसे में वे भाजपा के साथ आएं लेकिन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चावला का यह दावा कि हमारे 7 के 7 पार्षद एकजुट हैं, भाजपा के मंसूबों पर पानी फेरता दिखता है, बावजूद इसके इस बार मेयर का चुनाव बेहद दिलचस्प रहने वाला है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपने जीते हुए सभी पार्षदों को दिल्ली बुलाया है, इस दौरान वे उन्हें क्या ट्रेनिंग देंगे, यह पार्षदों के वापस लौटने और नगर निगम के अखाड़े में उतरने के बाद ही साबित हो पाएगा।