इसहफ्ते न्यूज.
सवाल यह है कि क्या वास्तव में किसान पराली जलाने से परहेज कर लेंगे। प्रदूषण बढ़ने की और भी वजह हैं, लेकिन पराली जलाने पर रोकथाम के बावजूद इसे जलाना कानून का उल्लंघन ही है। हालांकि पंजाब की कांग्रेस सरकार किसानों को खुश करने के लिए कानून की अनदेखी भी करने को तैयार है।
पंजाब में कांग्रेस सरकार के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी हर उस कोशिश में हैं, जिससे विधानसभा चुनाव में पार्टी मजबूती के साथ मतदाता के समक्ष खड़ी हो सके। कांग्रेस सरकार एवं पार्टी को चुनाव से ठीक छह महीने पहले अपने नेतृत्व को बदलने की जरूरत क्यों पड़ी, यह अब गौण मुद्दा हो गया है। जनता की याददाश्त बहुत छोटी होती है, जैसे ही दिन आगे बढ़ते हैं, वह अपनी यादों में नई यादें जोड़ने लगती है।
आजकल मुख्यमंत्री चन्नी जनता की यादों में इन्हीं नई यादों को जोड़ रहे हैं। उनकी कोशिश कितनी फलीभूत होंगी, यह तो समय बताएगा लेकिन बावजूद इसके अगर वे जनता के प्रति समर्पित और संजीदा मुख्यमंत्री के रूप में सामने आ रहे हैं, तो यह सराहनीय ही है। हालांकि पूछा यह भी जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव के बाद भी क्या चन्नी ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे, अगर कांग्रेस को फिर सत्ता मिली तो क्या वह चन्नी को ही अपना सिरमौर बनाएगी।
बहरहाल, मुख्यमंत्री ने किसानों के समर्थन में आगे आकर उन्हें इसका अहसास कराया है कि सरकार की नजरों से वे औझल नहीं हुए हैं। वैसे, पंजाब में किसी भी राजनीतिक दल की सरकार हो, वह खेती-किसानी की अनदेखी नहीं कर सकती। तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन के दौरान जिन किसानों पर गैरकानूनी गतिविधियों के आरोप में केस दर्ज किए गए हैं, उन्हें अब सरकार वापस लेगी। सरकार पराली जलाने के आरोप में दर्ज मामले भी निरस्त करेगी।
सरकार का फैसला किसान आंदोलनकारियों का तुष्टिकरण
सरकार का यह फैसला किसानों के तुष्टिकरण का प्रयास ज्यादा नजर आ रहा है। किसान आंदोलनकारियों ने निजी मोबाइल कंपनियों के टावरों को भारी क्षति पहुंचाई है, वहीं राज्य में टोल प्लाजाओं पर अब भी टोल की वसूली नहीं हो पा रही है। इससे जहां इन टोल का प्रबंधन देख रही कंपनियों को नुकसान हो रहा है, वहीं सरकार को भी राजस्व की हानि हो रही है। हालांकि इसकी परवाह किसे है, जब आचार संहिता लगने में कुछ ही समय बाकी है, तब सरकार हर संभव तरीके से अपनी छवि को चमकाने में लगी है। सरकार की ओर से किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों को शहीद बताते हुए उनके परिजनों को सरकारी नौकरी और तय मुआवजा देने के लिए भी सूची मांगी है।
32 किसान संगठनों की बैठक में लिया फैसला
यह निर्णय 32 किसान संगठनों के संयुक्त मोर्चे से बैठक के बाद लिया गया है। ऐसे में यह मानने से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह दबाव में लिया गया फैसला है, क्योंकि किसान संगठन इस पूरे प्रकरण में केवल अपनी मांगों को ही पूरा करने की जद्दोजहद कर रहे हैं। उनके लिए केंद्र सरकार और उसकी ओर से बनाए गए कानून कागज की रद्दी नजर आ रहे हैं। पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने विधानसभा में कृषि कानूनों को रद्द करने का प्रस्ताव पारित कराया था। उन्होंने इस मामले को लेकर राष्ट्रपति से मिलने का समय मांगा जोकि नहीं मिला, इसके बाद उन्होंने राजघाट पर प्रदर्शन किया था। हालांकि बाद में कांग्रेस नेतृत्व से उनकी नहीं बनी और उन्हें पद छोडऩे को कहा गया। कांग्रेस किसान आंदोलन के पीछे होने से इनकार करती है, हालांकि उसकी राज्य सरकारें पूरी तरह से किसानों के प्रति समर्पित नजर आ रही हैं।
पराली जलाओ और फिर दर्ज केस खत्म कराओ
दिल्ली में प्रत्येक वर्ष अक्तूबर-नवंबर के महीने में प्रदूषण का बढ़ना राष्ट्रीय मुद्दा बनता है, इस वर्ष भी ऐसा हो रहा है। पंजाब-हरियाणा के किसानों के द्वारा अपने खेतों में धान के अवशेष पराली को जलाने के बाद जो धुआं फैलता है, वह दिल्ली के आसमान में छा जाता है। सरकारों की ओर से पराली जलाने वाले किसानों पर केस दर्ज किए जाते हैं, लेकिन पंजाब में सरकार उन किसानों पर दर्ज केस वापस लेनी की तैयारी में है, जोकि पराली जलाते आए हैं। मुख्यमंत्री एक तरफ पराली न जलाने की अपील भी कर रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ दर्ज केस भी वापस लेने का ऐलान कर रहे हैं। ऐसा करने के पीछे की राजनीतिक मंशा को साफ-साफ समझा जा सकता है। सवाल यह है कि क्या वास्तव में किसान पराली जलाने से परहेज कर लेंगे। प्रदूषण बढ़ने की और भी वजह हैं, लेकिन पराली जलाने पर रोकथाम के बावजूद इसे जलाना कानून का उल्लंघन ही है। हालांकि पंजाब की कांग्रेस सरकार किसानों को खुश करने के लिए कानून की अनदेखी भी करने को तैयार है। सरकार का दावा है कि उसने किसान संगठनों की 18 में से 17 मांगों को माना है। सरकार ने इसके अलावा गन्ने के दाम में 50 रुपये की बढ़ोतरी, एपी स्कीम के तहत सब्जी उगाने वाले किसानों के 500 बिजली मीटर फ्री करने, गुलाबी सुंडी से खराब हुई कपास की फसल के लिए 17 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा राशि देने की भी घोषणा की है।
किसानों की अनदेखी न करें लेकिन दूसरे वर्ग भी न छूटें
कल्याणकारी सरकार का दायित्व ऐसे फैसले लेना है जोकि सर्व समाज के हित में हों। हालांकि सरकार को राजनीतिक फायदे के लिए अन्य वर्ग के हितों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। कृषि कानूनों पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई हो रही है, बावजूद इसके किसान आंदोलनकारी किसी मकसद से सड़काें पर हैं, बीते वर्ष भी ठंड और अन्य कारणों से अनेक किसानों की मौतें हुई हैं, ऐसे में एक सरकार का आंदोलनकारियों को समर्थन संसद में पारित कानून की साफ-साफ खिलाफत है। पंजाब में खेती-किसानी पर संकट है लेकिन यह संकट नए कानूनों की वजह से नहीं है, अपितु खेती का रकबा घटना, पानी की किल्लत, खरीद और एमएसपी न मिल पाना आदि इसके जिम्मेदार हैं। राज्य सरकार को रियायत देने की बजाय किसानों के लिए ठोस आय के साधन विकसित करने चाहिएं। कर्ज माफी का फायदा भी सभी किसानों को नहीं मिल पाता, फिर राजनीतिक लाभ उठाने का यह खेल आगे से आगे बढ़ता रहेगा।