पंजाब

Patiala murder क्या किसी निर्बल, असहाय और बीमार महिला की हत्या करना वीरता का कार्य है?

पटियाला के दुखनिवारण गुरुद्वारा साहिब में एक महिला की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि वह वहां शराब पी रही थी। सवाल तमाम हैं, सबसे बड़ा यही है कि बेअदबी के बहाने किसी की जान ले लेना क्या धर्म की रक्षा है, किसी को माफ कर देना क्या उसे बड़ी सजा देना नहीं ?

16 मई, 2023 04:32 PM
सांकेतिक फोटो साभार सोशल मीडिया

 चंडीगढ़ : पटियाला के गुरुद्वारा श्री दुखनिवारण साहिब में हुई एक महिला की हत्या के मामले पर विचार जरूरी है। यहां एक महिला जिस पर आरोप है कि वह गुरुद्वारा में शराब का सेवन कर रही थी, कि एक व्यक्ति ने गोलियां मार कर हत्या कर दी। वह इस बात से नाराज था कि महिला गुुरुद्वारे के अंदर शराब का सेवन कर रही थी। निश्चित रूप से यह बेहद दुखद घटना है।

 

किसी भी धार्मिक स्थल में अमर्यादित पदार्थों के सेवन की अनुमति नहीं दी जा सकती। लेकिन सवाल एकमात्र यही है कि अगर महिला ने ऐसी हरकत की तो क्या इसकी सजा सिर्फ मौत ही हो सकती है? पुलिस की जांच में सामने आ रहा है कि महिला शराब पीने की आदी थी, लेकिन वह तलाकशुदा भी थी और डिप्रेशन में अकेले रह रही थी। वह शराब पीने की अपनी आदत का इलाज भी करवा रही थी और उसे मूड स्विंग होने की भी समस्या थी।

 

संभव है, इन सब वजहों से परेशान होकर वह गुरुघर जिसका नाम ही श्री दुखनिवारण साहिब है, वहां अपने दुखों का निवारण कराने के लिए आई थी। उस महिला से सहानुभूति होने की बजाय और उसे अपनी मौजूदा हालात से बाहर निकलने में मदद करने के बजाय समाज ने उसे मौत दे दी। क्या यह समाज की असंवेदनशीलता का बड़ा उदाहरण नहीं है?

 

निश्चित रूप से गुरुघर में मृतक महिला ने जो किया उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। लेकिन उस महिला की अवस्था के प्रति जरूर प्रत्येक सह्दय को वास्ता होना चाहिए। डॉक्टर क्या करते हैं, मरीज कितनी भी बुरी अवस्था में हो, उसके घाव दिल दहलाने वाले हों, वह अपने इलाज की चाह भी नहीं रखता हो। उसकी मनोदशा उसके जीवन का रोड़ा बन चुकी हो। इस सबके बावजूद डॉक्टर पूरी तल्लीनता और सेवाभाव से उस मरीज का इलाज करते हैं, क्योंकि एक डॉक्टर का धर्म यही है। तब धार्मिक स्थल भी क्या इसी भूमिका के लिए नहीं हैं।

 

वहां पहुंच कर कोई अपनी आस्था के जरिये अपना दुख निवारण करना चाहता है। चाहे वह मंदिर हो या मस्जिद, गुरुद्वारा हो या फिर चर्च या कोई अन्य धार्मिक स्थल। वहां आने वाला इसी उम्मीद के साथ आता है कि उसका आराध्य उसकी सुनेगा और उस समस्या एवं दुख से उसे छुटकारा दिलाएगा। वह महिला जिसकी हत्या कर दी गई, संभव है इसी प्रयोजन से गुरुघर में आई थी।

 

उसके साथ सहानुभूति रखते हुए तय नियमों के अनुसार पेश आया जाना चाहिए था, यह भी आवश्यक था कि गुरुद्वारे का प्रबंधन महिला सेवादारों को वहां बुलाता एवं पुलिस को सूचित करके उसे पुलिस के हवाले कर देता। हालांकि ऐसा कुछ होने की बजाय आरोपी ने अपनी पिस्तौल का इस्तेमाल एक महिला पर करना ज्यादा जरूरी समझा। क्या भगवान इस तरह के कृत्य की अनुमति देते हैं? आखिर किसी के प्रति रहमदिल होकर भी हम धर्म की रक्षा कर सकते हैं, क्योंकि सभी धर्मों का सार यही है। धर्म तपती गर्मी में ठंडे जल के समान है, और ठंडी रातों में गर्म दुशाले की तरह है। धर्म हमें विचार की ऊर्जा प्रदान करता है, लेकिन उस ऊर्जा का अनुचित प्रयोग नहीं होना चाहिए।

 

गौरतलब है कि हत्या के संबंधित आरोपी को जब अदालत में पेश किया जा रहा था तो उस पर फूलों की वर्षा गई है। वहीं उसके परिवार के लोगों का कहना है कि जो हुआ, उस पर उन्हें कोई पछतावा नहीं है। इस बीच अनेक अधिवक्ताओं ने आरोपी का केस लडऩे का ऐलान किया है। आखिर आरोपी ने ऐसा क्या किया है कि उस पर फूलों की वर्षा हो रही है। क्या किसी निर्बल, असहाय और बीमार महिला की हत्या करना कोई वीरता का कार्य है, जिसे अंजाम देकर आरोपी कौम का नायक बन रहा है, या उसे बनाया जा रहा है। यह मामला पूरी तरह से कानून और व्यवस्था का है।

 

गुरुघर में भी अपराध घट सकता है, पुलिस कानून और व्यवस्था के लिए वहां भी पहुंचेगी। लेकिन ऐसे मामलों को कानून से भी ऊपर नहीं समझा जाना चाहिए। किसी के प्राण ले लेना कभी भी कानून के शासन अनुसार उचित नहीं माना जा सकता। अगर किसी ने अपराध किया है तो उसकी सजा का निर्धारण अदालत करेगी। संबंधित महिला ने गुरुघर में शराब का सेवन करके उसकी मर्यादा का उल्लंघन किया था, उस पर कार्रवाई होती, लेकिन अब उसकी हत्या करके जिसने यह अपराध किया है, उस पर भी अदालत निर्णय लेगी।

 

वास्तव में हमें ऐसी धार्मिक कट्टरता से बचना चाहिए, जिसमें धर्म के अलावा कुछ नहीं दिखे। धर्म की रक्षा हम तब और सक्षम तरीके से करेंगे, जब हम उसकी अच्छाईयों को अपनाएंगे। आज के समाज में तमाम बुराइयां पनप रही हैं, लेकिन धर्म की आड़ में हम उनकी अनदेखी करके केवल अपनी मानसिक कट्टरता की संतुष्टि के लिए ही जीते नजर आते हैं। धर्म समाज में सौहार्द और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने वाले माध्यम बनने चाहिएं।

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