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पंजाब में नशे का मक्कड़जाल अपनी गिरफ्त में युवाओं को लेता जा रहा है, हर पांच साल बाद यह चुनावी मुद्दा बनता है, राजनीतिक दल नशे की रोकथाम के वादे पर वोट बटोरते हैं और सत्ता में आने के बाद सब भूल जाते हैं। इस बार कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब के लिए जो अठारह सूत्रीय कार्यक्रम बनाकर दिया है, उसमें नशे की रोकथाम भी एक पॉइंट है। अब नए प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू इस पर अमल कराने के लिए अपनी ही पार्टी की सरकार पर जोर डाल रहे हैं।
वैसे यह तो राजनीतिक पक्ष है लेकिन राज्य में नशे के तस्कर इस धंधे को किस प्रकार अंजाम दे रहे हैं, इसका उदाहरण लुधियाना के जगराओं में तस्करों द्वारा दो पुलिस कर्मचारियों की हत्या किए जाने की वारदात से बखूबी हो जाता है। नशे से भरे कैंटर की जांच के लिए दोनों एएसआई मौके पर पहुंचे थे, लेकिन तस्करों ने उन पर फायरिंग कर दी, जिसमें दोनों की मौत हो गई और एक अन्य पुलिस कर्मी को भागकर अपनी जान बचानी पड़ी। रोंगटे खड़े कर देने वाली इस वारदात के सामने आने के बाद राज्य सरकार की ओर से नशा तस्करों के खिलाफ कार्रवाई का हाल भी मालूम हो जाता है। पंजाब में नशा तस्करी पर ऐसे आरोप भी सामने आते हैं कि तस्करों को जहां राजनीतिक संरक्षण हासिल है, वहीं पुलिस के साथ भी उनकी साठगांठ रहती है।
जगराओं की घटना में यह साबित हो गया है कि अपराधियों के हौसले बेहद बुलंद हैं और वे जांच के लिए पहुंची पुलिस को भी कुछ नहीं समझ रहे। बेशक, इस मामले में पुलिस बल ने तत्परता दिखाई और सूचना मिलने के बाद वे मौके पर जांच के लिए पहुंचे। लेकिन उन्हें भी इसका अंदाजा नहीं था कि तस्कर इतनी तैयारी के साथ पहुंचे हैं और वे फायरिंग भी कर सकते हैं। वास्तव में यह वारदात महज जगराओं पुलिस पर हमला नहीं है, अपितु राज्य सरकार को इसे पंजाब पुलिस बल पर हमला समझना चाहिए।
इससे पहले बीते वर्ष एक धार्मिक स्थल में जांच के लिए पहुंचे पुलिस अधिकारी का एक व्यक्ति ने तलवार से हाथ काट दिया था, इस मामले में भी राज्य सरकार ने कड़ा एक्शन लिया था। हालांकि दोनों मामलों की तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन फिर भी जगराओं में आरोपियों ने दुस्साहस को अंजाम देकर राज्य पुलिस बल को ललकारा है। ऐसे में आरोपियों की धरपकड़ कर उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई जरूरी है।
गौरतलब है कि लॉकडाउन के दौरान जब सरकार एवं पुलिस कोरोना संक्रमण की रोकथाम में जुटी है, तब नशा तस्कर अपने मंसूबों को पूरा कर रहे हैं। बीते दिनों सौ करोड़ रुपये की कोकीन के साथ चंडीगढ़ में एक तस्कर को गिरफ्तार किया गया था। अब सामने आ रहा है कि आरोपी तस्कर के साथी ने कुछ दिन पहले भी एक क्विंटल से ज्यादा मात्रा की कोकीन ऑस्ट्रेलिया भेजी थी। जाहिर है, यह नशा तस्करी का बहुत बड़ा मामला है। यह भी संभव है कि नशे की यह खेप पंजाब में ही इस्तेमाल होनी थी। बीते वर्षों में पंजाब के अंदर नशे की डोज लेकर और कच्ची शराब पीकर सैकड़ों की तादाद में लोग मारे गए हैं। खुद पंजाब सरकार ने राज्य में नशे के आदी लोगों के आंकड़े जारी किए थे। जिसमें वर्ष-2019 के दौरान पंजाब में 80 हजार नए लोगों के नशे का आदी होने की बात कही गई है। आंकड़ों के अनुसार पंजाब में हर रोज औसतन 215 नए लोग नशे का शिकार हो रहे हैं।
जनवरी से दिसंबर 2019 के दौरान हेरोइन और चिट्टा के आदी होने वाले युवाओं की संख्या में 35 फीसदी इजाफा हुआ है। रिपोर्ट बताती है कि जनवरी 2019 में हेरोइन के 5439 नए मामले आए थे, जो दिसंबर में बढक़र 8230 पहुंच गए। ये आंकड़े दो वर्ष पुराने हैं, मौजूदा आंकड़े अगर सरकार की ओर से दर्ज किए गए होंगे तो यह संख्या दोहरी हो सकती है।
चंडीगढ़ पीजीआईएमएस व ड्रग एब्यूज संस्था की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में हर महीने 112 लोग नशे के कारण अपनी जान गवां रहे हैं। वहीं, एनसीबी के आंकड़े बताते हैं कि 2007 से 2017 तक नशे के कारण 25 हजार लोगों ने आत्महत्या की। जिसमें से 74 प्रतिशत मामले पंजाब के थे। रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में दस लाख से ज्यादा लोग नशे का शिकार हैं। 20 से 25 साल की उम्र की 1500 लड़कियों के मामले भी अभी तक सामने आ चुके हैं।
पंजाब को लेकर एक फिल्म भी बन चुकी है, जिसमें यहां नशाखोरी के हालात बताए गए थे। उड़ता पंजाब नामक इस फिल्म को सरकार और राजनीतिक दलों ने खारिज किया था, उनका कहना था कि फिल्म के जरिए पंजाब को बदनाम किया गया है। हालांकि जिस प्रकार के आंकड़े खुद सरकार देती है और विभिन्न संस्थाएं अपने सर्वे के द्वारा हालात पता करती हैं, उसके बाद ऐसे आरोपों के लिए कोई जगह नहीं रह जाती।
इस वर्ष जनवरी में भी पंजाब के अंदर जहरीली शराब के मामले सामने आए थे, उस समय राज्य सरकार की ओर से पुलिस को अभियान चलाने के आदेश दिए गए थे। तब गांव और देहात में जहरीली शराब बनाने वालों पर पुलिस ने कार्रवाई की थी, उसे देखकर लग रहा था, जैसे राज्य से नशाखोरी खत्म हो जाएगी। हालांकि कुछ दिन बाद ही यह मुहिम शांत हो गई और जहरीली शराब बनाने वालों और नशा तस्करों को भी जैसे राहत मिली।
पंजाब में यह प्रचलित है कि यहां हर घर किसी न किसी रूप में नशे के जाल में फंसा है। नशे की रोकथाम प्रत्येक चुनाव के दौरान मुद्दा होती है। यह कैसी विडम्बना है कि राज्य सरकार को जिन मसलों के लिए कदम उठाने चाहिएं, वह उनसे इतर ऐसे मामलों में सक्रिय दिखती है, जिनका वास्ता राजनीतिक ज्यादा है। यह भी खूब है कि सत्ताधारी कांग्रेस के अंदर ही बगावत के सुर सुने जा रहे हैं। एक पूर्व कैबिनेट मंत्री तो मुख्यमंत्री के खिलाफ सीधा मोर्चा खोले हुए हैं। ऐसे में सरकार के मुखिया भी उन्हें जवाब देने में ही लगे हैं।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अकाली सरकार के खिलाफ इसी मुद्दे पर जीत दर्ज की थी कि वे राज्य से नशाखोरी और तस्करी को खत्म कर देंगे। हालांकि अब जब विधानसभा चुनाव नजदीक आ गए हैं, तब सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे हैं कि उसने नशाखोरी और तस्करी के खिलाफ क्या कदम उठाए। बेशक, हर राज्य सरकार के पास बताने को बहुत कुछ होता है, लेकिन यह भी सच है कि अगर कोई सरकार वास्तव में अपराध या फिर नशा तस्करी को रोकने का प्रयास करना चाहे तो वह कर सकती है।
मामला वहां फंसता है, जब राजनीतिक रुसूख के चलते अपराधियों को बचाया जाता है और उन्हें मनमर्जी करने की छूट मिलती है। जगराओं में दो एएसआई की फायरिंग में हत्या करके नशा तस्करों ने यह बताया है कि वे कुछ भी कर सकते हैं, हालांकि राज्य सरकार को इस मामले को सामान्य तौर पर नहीं लेना चाहिए। इस मामले की उच्च स्तरीय जांच जरूरी है, वहीं सरकार की ओर से अपराधी तत्वों को यह कड़ा संदेश देने की भी जरूरत है कि उन्होंने नशा तस्करी का धंधा चलाकर ऐसा गुनाह किया है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। जाहिर है, पंजाब की कांग्रेस सरकार यह आरोप नहीं सुनना चाहेगी कि नशाखोरी और तस्करी पर उसने ढीली कार्रवाई की है।