इसहफ्ते न्यूज . चंडीगढ़
पंजाब कांग्रेस की आतंरिक जंग अब दिलचस्प होने लगी है। जिस आलाकमान ने अभी चंद रोज पहले ही नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश प्रधान बनाया है, वही अब ईंट से ईंट बजाने की बात करने लगे हैं। पूछा यह जा रहा है कि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आखिर सिद्धू अपनी ही पार्टी में किसकी ईंट से ईंट से बजाएंगे। वैसे यह भी अहम बात है कि आखिर सिद्धू किन अधिकार की बात कर रहे हैं। क्या उन्हें कोई बतौर अध्यक्ष काम करने से रोक रहा है। अगर उनके बयानों को देखें तो यही निष्कर्ष निकलता है कि उन्हें फैसले लेने से रोका जा रहा है। हालांकि इसके बाद भी यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि आखिर सिद्धू को इतनी आजादी क्यों चाहिए। क्या यह काफी नहीं है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की नाराजगी और विरोध के बावजूद आलाकमान ने सिद्धू को प्रधान की कुर्सी सौंपी है।
सलाहकारों के लिए सिद्धू खामोश क्यों
यानी उनकी काबिलियत पर आलाकमान को भरोसा है और यह उम्मीद भी है कि वे प्रदेश कांग्रेस के हालात बेहतर करते हुए जनता से उसका जुड़ाव और गहरा करेंगे। हालांकि हो इसके उलट रहा है। यह भी विचित्र है कि सिद्धू ने अपने सलाहकारों के गैरजरूरी और देश एवं पार्टी विरोधी बयानों के संबंध में न कोई स्पष्टीकरण दिया और न ही कोई कार्रवाई की। वे खामोश रह कर अपने सलाहकारों का ही समर्थन करते रहे। प्रदेश प्रभारी हरीश रावत की सख्ती के बाद बेशक, एक सलाहकार मालविंदर सिंह माली ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने मुख्यमंत्री समेत अन्य कांग्रेस एवं अकाली नेताओं से जान का खतरा बता कर ऐसा शिगुफा छोड़ दिया, जिसका जवाब तो संभव है सिद्धू के पास भी नहीं होगा। अगर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के साथी एक नेता को उनकी ही सरकार से जान का खतरा हो जाए तो फिर आम जनता का क्या?
सिद्धू का मिजाज है एकल नेतृत्व का
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच यह तकरार अब एकदम साफ हो चुकी है। सिद्धू की बतौर ताजपोशी के बाद से इसका अंदाजा था कि वे पार्टी में कैप्टन धड़े को एकतरफ करके आगे बढ़ेंगे। सिद्धू का मिजाज एकल नेतृत्व करने का है। वे प्रदेश प्रधान की कुर्सी भी चाहते हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री का ताज भी। यही वजह है कि उन्होंने हाईकमान से फैसले लेने देने की आजादी मांगी है। उनका यह कहना कि अगर उन्हें फैसले लेने दिए गए तो वे पंजाब से कांग्रेस को अगले 20 सालों तक नहीं जाने देंगे, से अहसास होता है कि वे सभी पदों पर अपनी पसंद के लोग चाहते हैं वहीं उन सभी निर्णयों जिनके द्वारा सरकार और पार्टी नियंत्रित हो, भी अपने हाथ में चाहते हैं।
कैप्टन के नेतृत्व में ही अगला चुनाव
इसका सीधा अभिप्राय यह भी है कि सिद्धू बतौर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को न अभी देखना चाहते हैं और न ही भविष्य में। सिद्धू का यह फैसले लेने देने वाला बयान भी प्रदेश प्रभारी के उस बयान के बाद आया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि कैप्टन अमरिंदर के नेतृत्व में ही कांग्रेस प्रदेश में अगला चुनाव लड़ेगी। यानी सिद्धू चाहे कितनी मेहनत कर लें, उसका फल मिलेगा तो कैप्टन अमरिंदर सिंह को ही। यही बात सिद्धू को खटक गई है, उनका उग्र रवैया प्रदेश पार्टी और आलाकमान को यह संदेश दे रहा है कि आखिर उनकी मर्जी के बगैर कैसे इसका निर्णय हो गया कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ही अगले विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रमुख चेहरा होंगे और वे ही मुख्यमंत्री भी बनेंगे। वहीं रावत का यह बयान भी सिद्धू को नागवार गुजरा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि सिद्धू यह न समझें कि कांग्रेस उन्हें ही सौंप दी गई है। इन बयानों का मतलब प्रदेश प्रभारी की ओर से अनुशासनहीनता रोकने की कोशिश हो सकता है, लेकिन सिद्धू के दर्शनी घोड़ा न बनने के बयान से यह भी जाहिर हो जाता है कि उन्हें अपने दायित्व में दखल पसंद नहीं आ रही।
इधर कुआं, उधर खाई वाली स्थिति
आलाकमान के लिए यह इधर कुआं, उधर खाई वाली स्थिति है कि वह इस समय न तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की अनदेखी कर सकती है और न ही नवजोत सिंह सिद्धू की। कैप्टन राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं, बीते साढ़े चार साल वे कांग्रेस के बुजुर्ग नेताओं से दूरी बनाए हुए थे, लेकिन अब एकाएक उन्हें वे सभी याद आने लगे। वे अब पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भ_ल के आवास पर चाय पीने पहुंच रहे हैं, वहीं रूठे हुए विधायकों, सांसदों को डिनर दे रहे हैं। कैप्टन पार्टी में जहां अपने समर्थकों की तादाद बढ़ा रहे हैं, वहीं सिद्धू और उनके समर्थकों के बयानों के जरिए पार्टी के लिए खड़ी हो रही मुश्किलों से भी हाईकमान को वाकिफ करवा रहे हैं। हालांकि सिद्धू भी सक्रिय हैं और वे भी कैप्टन विरोधी नेताओं को अपने पाले में लाने में व्यस्त हैं।
किसकी ईंट से ईंट बजाएंगे
अब सवाल यह भी आ खड़ा हुआ है कि सिद्धू के ईंट से ईंट बजाने के मायने किसके लिए हैं और क्या इस बयान को देकर वे पार्टी में अपने समर्थकों की संख्या बढ़ा पाएंगे। सिद्धू और कैप्टन के बीच का यह विवाद कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता है। यह तय है कि आलाकमान कैप्टन अमरिंदर सिंह को सिद्धू के लिए मंच के पीछे नहीं भेजेगी। लेकिन क्या सिद्धू अब भी प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे। सिद्धू मुखर हैं और परिणाम की परवाह किए बगैर अपनी राय रखते हैं, उनकी साफगोई लोगों को पसंद आती है। लेकिन अपनी ही पार्टी के खिलाफ ऐसी सख्त शब्दावली का इस्तेमाल उनके उन प्रयासों पर पर्दा डाल रहा है, जोकि वे शुरू किए हुए हैं।
कैप्टन खेमा हो रहा बाग-बाग
सिद्धू और उनसे जुड़े नेताओं के विवादित बयानों से कैप्टन खेमे को राहत मिल रही है, क्योंकि इससे सिद्धू खेमे के नंबर बढ़ नहीं रहे अपितु कम हो रहे हैं। नए प्रधान सिद्धू को चाहिए तो यह था कि वे काबिल नेताओं को जिम्मेदारी सौंपते हुए पूरी पार्टी को आगे लेकर चलते, वहीं मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके धड़े को भी सिद्धू को बतौर प्रधान स्वीकार करना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसका प्रतिफल पूरी पार्टी को भुगतना पड़ रहा है।