पंजाब

पिछले माह तक ऐसी खबरें आ रही थीं कि कैप्टन और सिद्धू के बीच सुलह हो जाएगी

20 मई, 2021 01:02 PM

इसहफ्ते न्यूज

चंडीगढ़, 9 अगस्त

श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी मामले को लेकर पंजाब सरकार और कांग्रेस के अंदर जैसा घमासान चल रहा है, वह न केवल सरकार की सेहत खराब कर रहा है, अपितु पार्टी को भी भंवर में डाल रहा है। सरकार के मुखिया के तौर पर कैप्टन अमरिंदर सिंह जिस प्रकार अधिकारियों के प्रति नरम दिख रहे हैं, उस वजह से पार्टी के अंदर जहां उनका विरोध बढ़ रहा है, अपितु प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ और सहकारिता मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा के इस्तीफे ने भी इस बवाल को हवा दी है। बेशक, मुख्यमंत्री ने दोनों के इस्तीफे फाड़ दिए, लेकिन यह सवाल तो बना ही रहेगा कि आखिर दोनों को इस्तीफा देने की नौबत क्यों आई। जाहिर है, जाखड़ एवं रंधावा पार्टी और सरकार के मोर्चे पर बेअदबी मामले में सरकार की ढीली कार्रवाई से खफा हैं। यहीं से पूरे मामले की शुरुआत होती है। सबसे बढक़र कांग्रेस नेता एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने भी मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चो खोला हुआ है। हालांकि यह भी पहली बार हो रहा है, जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिद्धू को चेताया है। दरअसल, पिछले महीने तक ऐसी खबरें आ रही थीं कि कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू के बीच सुलह हो जाएगी। सिद्धू को मुख्यमंत्री ने अपने फार्म हाउस पर भी बुलाया था, लेकिन चाय पर यह चर्चा कुछ ही देर में खत्म हो गई। इसके बाद वापस आकर सिद्धू ने ट्वीट भी कर दिया। इसके बाद से वे अपने ट्वीट के माध्यम से कैप्टन अमरिंदर पर तंज कसते आ रहे हैं।

नवजोत सिंह सिद्धू एक क्रिकेटर रहे हैं। वे एक बेहतरीन बल्लेबाज थे। बल्लेबाजों को रक्षात्मक होकर खेलना पड़ता है, मौका मिलते ही वे आक्रामक भी हो जाते हैं। हालांकि सियासत में सिद्धू कभी भी रक्षात्मक नहीं रहे हैं, वे हमेशा आक्रामक होकर बयानों की बल्लेबाजी करते आए हैं। उनका भाजपा से कांग्रेस में आगमन दिल्ली में बैठी हाईकमान के जरिए हुआ था। सिद्धू को एक अच्छा वक्ता माना जाता है, कांग्रेस में उनके आगमन का आधार यही था। वर्ष 2017 में कांग्रेस में आकर वे प्रदेश अध्यक्ष या फिर उपमुख्यमंत्री बनने की चाहत पाले हुए हैं। हालांकि उनकी यही चाहत न केवल मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ उनके टकराव की वजह बनी है, अपितु स्वयं को पंजाब कांग्रेस में सबसे ऊपर समझने की सिद्धू की धारणा भी उन्हें कांग्रेसियों और सरकार से दूर करती है। स्थानीय निकाय विभाग जैसा अहम विभाग हासिल करने के बावजूद सिद्धू की महत्वाकांक्षाएं कम नहीं हुई थी। वे मुख्यमंत्री के समकक्ष हो गए थे और फिर एक दिन उनसे उनका विभाग वापस ले लिया गया। यह कार्रवाई मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की ओर से सिद्धू के रवैये को देखते हुए की गई थी, इसके बाद से सिद्धू और कैप्टन पंजाब में दो किनारों की भांति हो गए हैं, जिनका मिलना मुश्किल नजर आता है।
बेअदबी मामले पर कांग्रेस के अंदर ही उठते सवालों को अगर सुलगते रखने में सिद्धू अपनी भूमिका का लगातार निर्वाह कर रहे हैं तो इससे मुख्यमंत्री का आहत होना स्वाभाविक है। बेशक, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जाखड़ और मंत्री रंधावा को मनाना उनके लिए आसान है। यही वजह भी है कि उन्होंने दोनों के इस्तीफे उसी समय फाड़ भी दिए। लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू के संबंध में कैप्टन अमरिंदर सिंह की खरी-खरी से प्रदेश कांग्रेस में कैप्टन और सिद्धू के बीच खाई और चौड़ी हो गई है। कैप्टन की यह चुनौती सिद्धू के लिए चेतावनी है कि वे उनके खिलाफ चुनाव लड़ कर देख लें, उनका हश्र भी पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल जेजे सिंह की तरह न हो जाए। सिद्धू की बयानबाजी को कैप्टन ने अब सीधे-सीधे अनुशासनहीनता साबित कर दिया है। वे यह भी कह चुके हैं कि सिद्धू को अगर किसी और पार्टी में जाना है तो वे जाएं, उन्हें नहीं रोका जाएगा। कैप्टन ने तो सिद्धू से यह भी पूछ लिया है कि वे साफ करें कि कांग्रेस के सदस्य हैं या नहीं। वे बातें यही जता रही हैं कि कैप्टन सिद्धू के विरोध और उनकी बयानबाजी से आजिज आ चुके हैं। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब में अगला चुनाव लडऩे का भी ऐलान किया है। प्रदेश कांग्रेस उनके लिए अभियान भी चला रही है। ऐसे में अपने विरोधियों को एकजुट न होने देने और अपने खिलाफ पार्टी एवं सरकार में माहौल बनने से रोकने के लिए वे खुलकर सामने आ चुके हैं।
सिद्धू के संबंध में यह प्रचारित किया गया है कि वे प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी चाहते हैं। हालांकि प्रदेश कांग्रेस पंजाब की सियासत में सिख और हिंदू का संतुलन बनाकर चलना चाहती है, यही वजह है कि मुख्यमंत्री के सिख होने की वजह से उसने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को हिंदू रखा है। पार्टी में संतुलन बनाए रखने की यह नीति समझी जा सकती है, लेकिन कैप्टन का यह तर्क भी अपनी जगह उचित है कि उनकी कैबिनेट में सभी मंत्री सिद्धू से सीनियर हैं। ऐसे में उन्हें कैसे एक उच्च पद सौंप दिया जाए। बेशक, कैप्टन ने पार्टी हाईकमान की मर्जी को अहमियत दी है, लेकिन फिर भी यह कहने से नहीं चूके कि अगर सिद्धू के संबंध में हाईकमान उनसे पूछेगी तो वे इसकी स्वीकृति नहीं देंगे। सिद्धू को कांग्रेस में संजीवनी हाईकमान से मिलती रही है, यही वजह है कि वे मुख्यमंत्री के खिलाफ भी बोल पा रहे हैं। सिद्धू को कांग्रेस में लाने की वजह हाईकमान खूब समझती है, लेकिन अब मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की साफगोई के बाद हाईकमान इस मामले को किस प्रकार देखेगी यह देखने वाली बात होगी।
पंजाब में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। निकाय चुनाव में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया था, हालांकि इस वर्ष कोरोना संक्रमण ने पंजाब एवं सरकार के समक्ष गंभीर चुनौती खड़ी कर दी हैं। अगले वर्ष के आखिर तक कैसे हालात रहेंगे और सरकार के प्रति जनता की क्या भावनाएं रहेंगी, इस सबके अलावा कांग्रेस और सरकार के अंदर कैप्टन विरोधियों के जोड़-जमा-घटा का भी पार्टी के प्रदर्शन पर असर रहेगा। सबसे बढक़र कैप्टन और सिद्धू के बीच जारी तकरार मायने रखेगी। संभव है, सिद्धू इतनी आसानी से कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे, वे सवालों के तीर दाग कर अपना आधार पार्टी और जनता में बनाए रखेंगे। वे यह साबित करने में लगे हैं कि बेअदबी मामले को सरकार ने दबाने का प्रयास किया है, लेकिन वे ऐसा नहीं होने देंगे। उनका ट्वीट भी है कि हमारी लड़ाई न्याय और दोषियों को दंडित करने के लिए है। वे यह कहने से पीछे नहीं हटे हैं कि 'नेतृत्व पर सवाल है, मंशा पर बवाल है।' पंजाब की राजनीति में इस बार अनेक समीकरण बन-बिगड़ रहे हैं। भावी घटनाएं नेताओं का भविष्य तय करेंगी।

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