इसहफ्ते न्यूज/एजेंसी. दिल्ली
ऐसी भी चर्चाएं थी कि अगर कैप्टन भाजपा में शामिल होते हैं तो उन्हें ही कृषि मंत्री बना दिया जाए। भाजपा कैप्टन के जरिए रूठे किसानों को मनाने की तैयारी करेगी। कृषि कानूनों से जहां केंद्र सरकार का जीना दुभर हो चुका है वहीं आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को इसका नुकसान पहुंचने की आशंका है।
आखिरकार पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर तस्वीर अब साफ होने लगी है। जैसे कयास लग रहे थे, उसके उलट कैप्टन ने वही रास्ता चुना जो एक शाही परिवार चुन सकता है। उन्होंने किसी के साथ चलने के बजाय अपनी पार्टी की घोषणा करने की तैयारी की है। इससे पहले कहा जा रहा था कि वे भाजपा में जा रहे हैं। हालांकि बृहस्पतिवार को उन्होंने खुद इसकी घोषणा कर दी कि वे भाजपा में नहीं जा रहे हैं। हालांकि केंद्रीय गृहमंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह से 50 मिनट की मुलाकात के बाद इसे मानने में अब कोई संशय नहीं होना चाहिए कि कैप्टन और भाजपा के स्वर अब मिल चुके हैं। अगर वे भाजपा में नहीं भी जाएं तो यह पूरी तरह संभव है कि उनकी नई पार्टी भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़े या फिर चुनाव के बाद एकसाथ आ जाएं।
कांग्रेस को आघात
यह केवल पंजाब कांग्रेस नहीं अपितु पूरी कांग्रेस पार्टी के लिए आघात है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उसे छोड़ने का ऐलान कर दिया है। इसकी तैयारी उसी दिन हो चुकी थी जिस दिन कैप्टन राजभवन में अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप कर वापस लौट रहे थे। उन्होंने कहा था कि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आलाकमान किसे मुख्यमंत्री बनाती है, वह जिसे चाहे उसे बनाए। यह भी विदित है कि वे न मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के शपथ ग्रहण समारोह में शरीक हुए और न ही उन्होंने इसके बाद कांग्रेस की नई सरकार के गठन में कोई दिलचस्पी दिखाई। इससे यह साबित हो गया था कि वे कांग्रेस से दूरी बना चुके हैं और अब इससे बाहर आने की तैयारी है।
भाजपा को कैप्टन चाहिए, कैप्टन को भाजपा
यह भी कितना खूब है कि मुख्यमंत्री रहते हुए कैप्टन ने जिन कृषि कानूनों को हमेशा खारिज करने की ही मांग उठाई, अब वे उन्हीं कानूनों में संशोधन की गुहार लेकर केंद्रीय गृहमंत्री शाह से मिलने जा रहे हैं। केंद्र सरकार में इस समय शाह से मुलाकात का मतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर ली। ऐसी भी चर्चाएं थी कि अगर कैप्टन भाजपा में शामिल होते हैं तो उन्हें ही कृषि मंत्री बना दिया जाए। भाजपा कैप्टन के जरिए रूठे किसानों को मनाने की तैयारी करेगी। कृषि कानूनों से जहां केंद्र सरकार का जीना दुभर हो चुका है वहीं आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा को इसका नुकसान पहुंचने की आशंका है। भाजपा के लिए यह मामला न निगलते बनता है और न उगलते। ऐसे में कैप्टन उसके मददगार बन सकते हैं, वहीं भाजपा भी उन्हें सिर माथे पर बैठाएगी।
अपने लिए विकल्प किया तैयार
हालांकि अब जब उन्होंने घोषित कर दिया है कि वे भाजपा में शामिल नहीं होंगे, तब भी इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनकी भाजपा से दूरी रहेगी। कैप्टन का दिल्ली प्रवास ही भाजपा नेताओं से मुलाकात कर अपने लिए विकल्प तैयार करना था। जिसमें वे कामयाब भी रहे। वहीं भाजपा के लिए कांग्रेस की दुर्दशा मनचाही मुराद पूरा होने जैसा है, क्योंकि भाजपा ने तो सपना ही कांग्रेस मुक्त भारत का देखा हुआ है। ऐसे में कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे कद्दावर कांग्रेस नेता अगर कांग्रेस से हटकर अपनी पार्टी बनाते हैं तो यह कांग्रेस के लिए नुकसानदायक ही होगा।
डोभाल से भी मिले तो राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा हुआ मजबूत
बता दें कि कैप्टन मंगलवार को दिल्ली आए थे और तब उन्होंने किसी भी नेता से मुलाकात की बात को खारिज किया था लेकिन बुधवार को ही कैप्टन ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। बृहस्पतविार की सुबह कैप्टन अमरिंदर ने दिल्ली में ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से भी मुलाकात की है। कैप्टन ने एनडीटीवी से कहा, मैं बीजेपी में शामिल नहीं हो रहा लेकिन कांग्रेस छोड़ रहा हूं। इतना अपमान सह नहीं पा रहा। कैप्टन ने कहा, अभी तक मैं कांग्रेस में हूं लेकिन कांग्रेस में रहूंगा नहीं। मैं अपने साथ ऐसा बर्ताव नहीं होने दूंगा।
कैप्टन का कार्यकाल बीता विरोधियों से निपटने में
कांग्रेस के अंदर कैप्टन विरोधी और बाहर कांग्रेस एवं कैप्टन के विरोधी यह कहते नहीं थक रहे कि कैप्टन एक नॉन परफार्मिंग सीएम रहे हैं, हालांकि उनके कार्यकाल में सरकार की ओर से तमाम काम किए गए हैं, योजनाएं लागू की गई हैं। लेकिन कैप्टन का कार्यकाल पूरी तरह से राजनीतिक गिरोहबाजी और विरोधियों के द्वारा समस्याएं पैदा करने में ही बीत गया। ऐसे में इसका आरोप सामूहिक लगना चाहिए कि कैप्टन काम नहीं कर पाए, ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि कैप्टन को काम नहीं करने दिया गया। क्या नवजोत सिंह सिद्धू जोकि पिछले तीन सालों से लगातार कैप्टन पर निशाना साधते आए हैं, को अगर मुख्यमंत्री का पद सौंप दिया जाता तो वे एक परफार्मिंग सीएम बन जाते। कैप्टन ने कांग्रेस आलाकमान के कहने पर 18 सितंबर को पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद उन्होंने अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की।