इसहफ्ते न्यूज . चंडीगढ़
पंजाब में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटे राजनीतिक दलों के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा सामने लाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। इस समय अकाली दल की ओर से ही यह तय है कि अगर पार्टी सत्ता में आई तो कौन मुख्यमंत्री बनेगा। लेकिन कांग्रेस, भाजपा और आप की ओर से अभी तक इसका साहस नहीं दिखाया गया है कि मुख्यमंत्री पद के चेहरे की घोषणा की जाए। ऐसे में इसका भी आकलन हो रहा है कि चुनावी तैयारियों जल्दी शुरू करने का क्या आप को फायदा मिलने जा रहा है, वहीं कांग्रेस की गुटबाजी उस पर भारी पड़ने वाली है। इसके अलावा किसान संगठनों के राजनीतिक दल भी क्या कोई गुल खिला पाएंगे। पंजाब इस बार के विधानसभा चुनाव में किस तरफ जाएगा?
हालांकि आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने पत्ते खोले हैं। उन्होंने दूसरे दलों के सामने चुनौती पेश करते हुए सांसद भगवंत मान का नाम मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश कर दिया है, लेकिन एक अटकल के साथ। अटकल यह है कि पंजाब के लोगों की राय लेकर वे सीएम के चेहरे की घोषणा करेंगे। अब यह पार्टी ही जानती है कि वह किन लोगों से राय लेगी और वे लोग किसके नाम पर अपनी राय देंगे।
एकदम स्पष्ट वर्डिक्ट देने की बजाय केजरीवाल का मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने का तरीका दिलचस्प है। पार्टी की ओर से एक मोबाइल नंबर जारी किया गया है, जिस पर बताया गया है कि लाखों की तादाद में लोगों ने अपनी राय जाहिर की है। यह अच्छी बात है, क्योंकि चुनाव आयोग भी इस बार वर्चुअल तरीके से चुनाव करवा रहा है। ऐसे में फोन के जरिए, सोशल मीडिया के जरिए ही लोगों से संवाद किया जा सकता है। आप संयोजक केजरीवाल का दावा है कि ऐसा पहली बार हो रहा है, जब फोन के जरिए सीएम फेस की राय ली जा रही है।
केजरीवाल ने कहा है कि उन्होंने पहले भगवंत मान का नाम मुख्यमंत्री चेहरे के लिए तय कर लिया था, वहीं मान से भी पूछा कि आपके नाम की घोषणा कर देते हैं, लेकिन फिर उन्होंने इससे इनकार करते हुए लोगों से राय लेने को कहा। वैसे आम आदमी पार्टी से बड़ा लोकतंत्र और किस पार्टी में होगा, जहां किसी के नाम की मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषणा की जा रही हो और जिनके नाम की घोषण हो रही हो, वे कहें कि पहले जनता की राय ले लेते हैं।
पंजाब की जनता इस बार भारी परिवर्तन के मूड में है। राज्य में राजनीतिक समीकरण बहुत पेचीदा हैं और हर गली-मोहल्ले में एक पार्टी खड़ी दिख रही है। सत्ताधारी कांग्रेस जहां अपने काम के बूते वोट मांग रही है तो अकाली दल उसे फिर मौका देने की मांग कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी अपने दिल्ली मॉडल के नाम पर पंजाब की कायापलट करने का दावा कर रही है तो भाजपा का कहना है कि अब वह प्रदेश में स्वतंत्र है और केंद्र में भी उसकी सरकार है, इसलिए जनता उसे वोट देगी तो वह वारे-न्यारे कर देगी। वहीं कृषि कानूनों की वापसी करवा कर जोश में आए किसान संगठन भी पंजाब की भलाई करने का डंका पीट रहे हैं।
इस चुनावी जंग में किसकी कैसी तैयारी है, इसका खुलासा भी होने लगा है। आप ने सबसे पहले अपने 109 उम्मीदवार घोषित किए हैं, इसके बाद शिअद-बसपा गठबंधन ने 114 उम्मीदवारों की घोषणा की है। लेकिन भाजपा और कांग्रेस की ओर से अभी तक कोई उम्मीदवार नहीं उतारा गया है। कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक दिल्ली में हुई लेकिन इस दौरान स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्यों में एकराय नहीं बन सकी। पंजाब कांग्रेस के अंदर यह खींचतान हर स्तर पर है और पार्टी में हर नेता का अपना एक गुट बना हुआ है।
कांग्रेस में रवायत है कि आलाकमान ही उस नेता का नाम सामने लाती है, जिसे वह मुख्यमंत्री देखना चाहता है। कांग्रेस शासित राज्यों में मुख्यमंत्री का नाम इसी तरीके से घोषित किया जाता रहा है, लेकिन पंजाब में इस रवायत को तब चुनौती मिलती दिखती है, जब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू कहते हैं कि कांग्रेस हाईकमान नहीं बल्कि लोग तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा। हालांकि उनकी इस पेशकश को उपमुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा तब काउंटर करते दिखते हैं, जब वे कहते हैं कि विधायक ही तय करेंगे कि मुख्यमंत्री कौन होगा।
मालूम हो, सिद्धू और रंधावा के मतभेद बहुत पहले से उजागर हैं, रंधावा अपना इस्तीफा सिद्धू के चरणों में रख देने की बात भी कह चुके हैं। सिद्धू का मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के साथ भी टकराव जगजाहिर है। कांग्रेस नेता इस समय अपने-अपने तौर पर प्रचार कर रहे हैं। यह तब है, जब कांग्रेस हाईकमान चुनाव प्रचार कमेटी का गठन कर चुकी है और पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ को इसका प्रधान बनाया जा चुका है। हालांकि जाखड़ भी न सिद्धू और न ही चन्नी के साथ मेलजोल रख पा रहे हैं। प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक के मसले पर भी उन्होंने पंजाब सरकार या मुख्यमंत्री चन्नी के साथ खड़े न होकर निष्पक्ष बयान दिया था।
बीच-बीच में सिद्धू चन्नी सरकार पर हमलावर हो रहे हैं। हालिया उन्होंने अपना एक एजेंडा भी घोषित किया है, जिसमें न मुख्यमंत्री को और न ही किसी अन्य नेता को साथ लिया है। पंजाब मॉडल पेश कर चुके सिद्धू को पार्टी से समर्थन नहीं मिल रहा है, वहीं सुखजिंदर रंधावा, मनीष तिवारी, सुनीज जाखड़, प्रताप बाजवा, शमशेर सिंह दूलो, रवनीत बिट्टू समेत कई नेता एक-दूसरे पर सवाल दाग रहे हैं। इस बीच हलकों में कांग्रेस नेताओं ने अपने होर्डिंग लगवाए हैं, जोकि चर्चा का विषय बन चुके हैं, इन होर्डिंगों पर केवल उन विधायकों या स्थानीय नेताओं की फोटो हैं, जोकि बताती हैं कि वे किसी धड़े में शामिल होने की बजाय अपनी मौलिकता को बनाए रखना चाहते हैं।
शिरोमणि अकाली दल की सियासत इस बार चुनौतीपूर्ण नजर आ रही है। पार्टी के उम्मीदवारों में वह जोश नजर नहीं आ रहा है और न ही पार्टी की ओर से आक्रामक तेवर दिखाए जा रहे हैं। कृषि कानूनों के विरोध के दौरान भाजपा से अपना रास्ता अलग कर लेने वाली शिअद को बसपा से कितनी मदद मिलेगी, यह कुछ दिनों में मालूम हो जाएगा लेकिन कहीं न कहीं पार्टी को अपने फैसले पर मलाल होगा। पार्टी नेता आम आदमी पार्टी को बढ़त मिलने को पेड सर्वे का कमाल बता रहे हैं।
बहरहाल, पंजाब की जनता इसका मन बनाने में जुटी है कि इस बार किसे सत्ता सौंपी जाए, चंडीगढ़ की तर्ज पर अगर परिवर्तन आएगा तो यह चौंकाने वाला होगा, लेकिन फिर जनता है, जनार्दन है न जाने कितनों पर उसका दिल आ जाए। इस बार पंजाब में दलों की भरमार भी है, अगर जनता ने एक त्रिशंकु विधानसभा ला दी तो फिर कौन किसके साथ जाएगा, यह भी बड़े मंथन का विषय होगा।