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जाहिर है, सैनिक का फर्ज अपने देश की रक्षा करना है लेकिन एक आतंकी का एजेंडा अमन और शांति को नष्ट करना है। इसलिए उसके खिलाफ कार्रवाई का अधिकार एक स्वतंत्र देश की सरकार और उसके प्रशासन के पास है। महबूबा मुफ्ती के अलावा घाटी के अन्य नेताओं ने भी ऐसे ही बयान दिए हैं।
घाटी में आतंकियों ने आजकल कश्मीरी पंडितों, सिखों और हिंदूओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया है, यह घाटी को गैरमुस्लिमों से खाली कराने की साजिश है। केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को खत्म करके घाटी में आतंक की रीढ़ तोड़ी है, अब सुरक्षा बलों को यहां व्यापक आजादी हासिल है और वे लगातार अपनी सक्षमता का परिचय देते हुए आतंकियों को खत्म करने में जुटे हैं। हालांकि जिन आतंकियों का एकमात्र मकसद भारतीय सेना और घाटी के बाशिंदों को नुकसान पहुंचाना हो, वे अगर पांच भारतीय जवानों की शहादत के बाद यह समझ रहे हैं कि भारत आतंक की इस लड़ाई को हार जाएगा तो यह उनकी भूल है। उन मांओं और पत्नियों से पूछो, जिन्होंने अपना बेटा और पति खोया है, वे यही कह रही हैं कि उनका बेटा देश के नाम शहीद हो गया। जाहिर है, देश की हिफाजत और उसके लिए कुर्बान होने वालों की न कमी पड़ी थी और न ही आगे रहेगी।
आतंकियों का कायराना हमला
जम्मू के पुंछ में ऑपरेशन के दौरान आतंकियों ने घात लगाकर यह हमला किया। आतंकियों का वजूद उनके कायराना कारनामों से ही है, न वे आमने-सामने आकर लड़ सकते हैं और न ही उनके आका। जोकि देश के अंदर और देश के बाहर दोनों तरफ बैठे हैं। पाकिस्तान में आतंकियों के आका जहां भारतीय सैनिकों की शहादत और नागरिकों की हत्याओं पर जश्न मना रहे हैं, वहीं भारत में भी विपक्षी राजनीतिक दलों को बोलने का सुअवसर मिल गया है। हर बात पर राजनीति करने वाली कांग्रेस के नेताओं ने अब कहा है कि केंद्र की मोदी सरकार ने दावा किया था कि अनुच्छेद 370 के हटाए जाने से घाटी में आतंकवाद खत्म हो गया। लेकिन अब आतंकवाद खत्म नहीं हुआ लेकिन घाटी में भारतीय सैनिक जरूर शहीद हो रहे हैं।
कांग्रेस के स्वर केंद्र के खिलाफ ही क्यों
यह कितना बचकाना और अनुचित बयान जान पड़ता है, जब चीन के साथ संघर्ष में भारतीय जवान शहीद होते हैं, तब भी कांग्रेस के स्वर केंद्र सरकार के ही खिलाफ होते हैं। क्या विपक्ष की राजनीति का यही तरीका होता है कि आतंकियों से लड़ते हुए सैनिक शहीद हों तब भी केंद्र को जिम्मेदार ठहराओ और जब पड़ोसी देश के साथ सीमा पर संघर्ष हो, उसके लिए भी सरकार को दोष दो। आखिर कांग्रेस के नेता कभी किसी मुद्दे पर सरकार के साथ खड़े भी हुए हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर टीवी चैनलों पर लंबी-लंबी बहसों का हिस्सा बनने वाले और बात-बात में सोशल मीडिया पर अपने गैरजरूरी बयान देने वाले नेता उन शहीदों के प्रति बनावटी सम्मान क्यों दिखाते हैं, जोकि अपने फर्ज को अंजाम देते हुए देश के नाम शहीद हो गए। सेना और पुलिस का कार्य देश एवं देश के अंदर सुरक्षा सुनिश्चित करना होता है, यह काम बेहद जोखिमपूर्ण है। आखिर आंतकियों को खत्म करने के ऑपरेशन में गोली यह नहीं देखती कि कौन आतंकी है और कौन सैनिक।
महबूबा आखिर ऐसा कैसे कह सकती हैं
हालांकि नेता जरूर देख रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ऐसा ही वाहियात बयान दिया है, जिसमें उन्होंने आतंकियों की तरफदारी की है। घाटी में सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने वालों की हमदर्द बनने वाली महबूबा मुफ्ती का यह कहना बेहद अनुचित है कि अगर सैनिक मरे तो वह शहीद कहलाता है और कोई अन्य मरे तो वह आतंकी करार दे दिया जाता है। जाहिर है, सैनिक का फर्ज अपने देश की रक्षा करना है लेकिन एक आतंकी का एजेंडा अमन और शांति को नष्ट करना है। इसलिए उसके खिलाफ कार्रवाई का अधिकार एक स्वतंत्र देश की सरकार और उसके प्रशासन के पास है। महबूबा मुफ्ती के अलावा घाटी के अन्य नेताओं ने भी ऐसे ही बयान दिए हैं।
यह पाकिस्तान परस्ती नहीं तो क्या है
आखिर घाटी में रहने वाले नेता देश की सुरक्षा और संसाधनों पर पलने के बावजूद पाकिस्तान परस्ती क्यों कर रहे हैं। उनकी मंशा पाकिस्तान की खुशामद करना क्यों है। एक साथ पांच भारतीय सैनिक शहीद हुए हैं, लेकिन इसका दुख इन नेताओं को नहीं है, क्योंकि अगर उन्होंने इस पर अगर एक शब्द भी बोला तो यह साबित हो जाएगा कि वे भारतीय संविधान को स्वीकार करते हैं। इससे घाटी के उन लोगों की नाराजगी उन्हें झेलनी पड़ेगी जोकि चाहते हैं कि कश्मीर भारत का अंग न रहे। ऐसे नेताओं का आचरण पूरा देश देख रहा है, उनके सामने केवलमात्र पाकिस्तान परस्ती का एजेंडा है, उसी के लिए वे काम कर रहे हैं। कांग्रेस नेताओं के बयानों को पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में भारत विरोध के लिए इस्तेमाल करता है। यह कितनी शर्मनाक और घिनौनी बात है।
देश के समक्ष बढ़ रही चुनौतियां
मौजूदा परिस्थितियों में देश के सुरक्षा बलों के समक्ष चुनौतियां और बढ़ गई हैं। दुनिया के मंच पर बुरी तरह पस्त हो चुका पाकिस्तान बौखलाहट में अपने प्रशिक्षित आतंकियों को किसी भी सूरत में घाटी में पहुंचा रहा है। पिछले कुछ दिनों के दौरान घाटी में पांच नागरिकों की हत्याएं की गई हैं। आतंकियों की पहचान करके उनका सफाया करना बेहद मुश्किल कार्य है, आतंकी आम नागरिकों की आड़ ले रहे हैं। अगर भूलवश किसी सैनिक की गोली से कोई आम नागरिक हताहत हो जाता है तो यह मानवाधिकारों का मामला हो जाता है और विपक्ष फिर अपना शोर मचाता है, लेकिन सुरक्षा बलों की विडम्बना को नहीं समझ पाता। इस समय देश को सेना और सुरक्षाबलों के साथ खड़े होकर उनका हौसला बढ़ाना चाहिए। वहीं देश को उन शहीदों और सामान्य नागरिकों के परिजनों के साथ भी खड़ा होना चाहिए जोकि आतंकवाद से लड़ाई में कुर्बान हो गए। आतंकवाद के खिलाफ भारत की यह जंग उस समय तक बंद नहीं होनी चाहिए, जब तक कि आतंक का समूल नाश न हो जाए।