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पंजाब जिसकी शांति पूरे भारत के लिए मायने रखती है, अगर वहां पर आतंकी, नशीले पदार्थों और उपद्रवी घटनाओं को प्रश्रय मिलेगा तो यह देश के लिए नुकसानदायक होगा। संभव है, कल को राजनीतिक दल अन्य सुरक्षा एजेंसियों की पंजाब में मौजूदगी पर सवाल उठाने लग जाएं।
पंजाब में बीएसएफ का दायरा सीमा से 15 किलोमीटर से बढ़ाकर 50 किलोमीटर करने पर आखिर इतना ऐतराज क्यों हो रहा है। बीएसएफ का कार्य सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा और नशीले पदार्थों की रोकथाम समेत अन्य सुरक्षा कार्य शामिल हैं। पंजाब में सुरक्षा एजेंसियों को ऐसे इनपुट मिल रहे हैं कि राज्य की सुरक्षा एवं व्यवस्था को पाकिस्तान तार-तार करने को तैयार है। राज्य में लगातार नशीले पदार्थों, हथियारों की खेप पहुंचाई जा रही है। इन हालात में अगर केंद्र सरकार बीएसएफ के क्षेत्राधिकार को बढ़ा रही है तो इसका विरोध किए जाने का क्या तुक है।
अगर दुश्मन देश हमला कर दे और केंद्र सरकार वहां सेना लगा दे तो क्या तब भी राज्य के विपक्षी दल यह शोर मचाएंगे कि यह उनके क्षेत्राधिकार में दखल है। यह मामला राज्य का नहीं है अपितु देश का है। और जब देश का मसला सामने आता है तो पंजाब में राजनीतिक दल इसे स्वीकार करने को तैयार क्यों नहीं होते हैं। आतंकवाद पंजाब में कैसे उपजा था और उसकी वजह से किस प्रकार हजारों निर्दोष लोगों की जानें चली गई, इसका अंदाजा राजनीतिक दलों को क्यों नहीं है। कांग्रेस के नेताओं के बयान न जाने क्यों इतने राजनीतिक होते हैं, कि उनसे देश की लोकतांत्रिक स्वतंत्रता ही खतरे में पड़ती नजर आने लगती है। कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी का कहना है कि ऐसा करके केंद्र का इरादा कुछ और करने का है। यह कुछ और का इशारा राष्ट्रपति शासन लगाने की तरफ है। क्या वास्तव में ऐसा कुछ हो सकता है, कांग्रेस की केंद्र सरकारों के वक्त राज्यों में जिस प्रकार धड़ल्ले से राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता था, क्या कांग्रेस नेता उन्हीं स्मृतियों को अभी तक संजोए हुए हैं। क्या यह केंद्र में सरकार चला रही एक पार्टी को बदनाम करने की साजिश नहीं है। क्या देश का भला सोचने की एकमात्र जिम्मेदारी कांग्रेस के पास है?
गौरतलब है कि शिरोमणि अकाली दल ने भी बीएसएफ का सीमा दायरा बढ़ाने पर कड़ी आपत्ति जताई है। पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल ने तो चंडीगढ़ में पंजाब राजभवन के बाहर धरना भी दिया। उन्होंने इसके लिए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी पर आरोप लगाया है कि उन्होंने केंद्र से साठगांठ करके ऐसा कराया है। जाहिर है, राजनीतिक बयानों का कोई ओर-छोर नहीं होता। वे बारिश की तरह बरसते हैं और फिर सीवरेज में भी बह निकलते हैं। बीएसएफ देश का सम्मानित सुरक्षा बल है, उसकी मौजूदगी में भारत की सीमाएं सुरक्षित हैं, क्या कभी ऐसी किसी घटना का राजनीतिक जिक्र करेंगे, जिसमें बीएसएफ ने अपने दायरे से बाहर जाकर काम किया हो।
अगर ऐसा नहीं है तो फिर सुरक्षा बल को उसके काम से रोकना भी अपराध ही ठहराया जाएगा। पंजाब जिसकी शांति पूरे भारत के लिए मायने रखती है, अगर वहां पर आतंकी, नशीले पदार्थों और उपद्रवी घटनाओं को प्रश्रय मिलेगा तो यह देश के लिए नुकसानदायक होगा। संभव है, कल को राजनीतिक दल अन्य सुरक्षा एजेंसियों की पंजाब में मौजूदगी पर सवाल उठाने लग जाएं। विपक्ष ने इसे कानून-व्यवस्था का मसला बताते हुए कहा है कि आखिर केंद्र सरकार ऐसे कदम उठाने से पहले राज्यों से सलाह क्यों नहीं लेती। यह भी खूब है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस पर ऐतराज जताया है।
उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने इसे राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण और देश के संघीय ढांचे पर हमला करार दिया है।
यह कितनी विचित्र बात है कि जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को खत्म किया जाता है तो घाटी के विपक्षी राजनीतिक दलों के साथ कांग्रेस भी इस पर हाय-तौबा मचाने में अग्र रहती है। आजकल घाटी में आतंकी वारदातें अगर बढ़ रही हैं तो कुतर्क दिया जा रहा है कि सरकार ने कहा था कि अनुच्छेद जिसके जरिए कश्मीर को विशेष दर्जा हासिल है, खत्म करने के बाद आतंकवाद खत्म हो जाएगा, लेकिन यह तो अभी भी जारी है। हालांकि अनुच्छेद 370 के पहले और बाद की स्थिति में आए बड़े परिवर्तन की बात कोई नहीं करता।
देश की आजादी के बाद से ही जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के बूते आतंकवाद का जैसा नंगा नाच हुआ है, उसे खत्म करने के लिए ऐसा साहसिक और कड़ा फैसला जरूरी था, इसी तरह पंजाब में सीमा पार आतंकी गतिविधियों की रोकथाम के लिए बीएसएफ के क्षेत्राधिकार में बढ़ोतरी भी आवश्यक थी। अवैध घुसपैठ की रोकथाम के लिए ऐसा किया जाना आवश्यक है। तृणमूल कांग्रेस ने आगाह किया है कि इसके दुष्परिणामों का सामना करना पड़ेगा, हालांकि यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि आखिर वे दुष्परिणाम किस प्रकार के होंगे। देश की संसद में पारित कानून के जरिए बीएसएफ का गठन किया गया है, आखिर राजनीतिक दल देश की सेनाओं और सुरक्षा बलों पर विश्वास क्यों नहीं करते हैं। उनका भी राजनीतिकरण क्यों कर दिया गया है, उन्हें भी केंद्र में सत्ताधारी राजनीतिक दल के संगठन के रूप में क्यों देखा जा रहा है।
गौरतलब है कि कांग्रेस में ही इस बात का एका नहीं है कि बीएसएफ के सीमा क्षेत्राधिकार को बढ़ाने का विरोध हो या फिर इसका समर्थन। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब में घुसपैठ, नशीले पदार्थों की तस्करी आदि के जरिए राज्य में सुरक्षा के हालात पर चिंता जताई थी, अब वे केंद्र के इस फैसले का स्वागत कर रहे हैं। हालांकि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भी केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के दौरान राज्य के सामने सीमा पार से सुरक्षा की चुनौतियों को साझा करते हुए बॉर्डर को पूरी तरह सील करने को कहा था। इस मुलाकात के कुछ दिन बाद ही केंद्र ने बीएसएफ के क्षेत्राधिकार को बढ़ाकर 50 किलोमीटर कर दिया।
कांग्रेसी कैप्टन अमरिंदर सिंह की इसके लिए आलोचना कर रहे हैं कि उन्होंने केंद्र के फैसले का समर्थन क्यों किया और अगर किया तो फिर इसकी मांग अपने मुख्यमंत्री रहते क्यों नहीं की। वास्तव में देश की सुरक्षा के मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए। भारत ऐसा देश है, जिसके दुश्मन चारों तरफ से उसे घेरे बैठे हैं, अगर हम अपने अंदर ही एकमत नहीं होंगे तो ऐसे दुश्मनों से लडऩे में हमें अतिरिक्त ऊर्जा लगानी होगी। संघीय ढांचा तब ही कायम रहेगा, जब देश की सुरक्षा भी कायम रहेगी।