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हरीश रावत ने जैसा ट्वीट लिखा है, उसे पढ़कर आजकल की राजनीति के अनूठेपन का भी अंदाजा होता है। वे अपने ट्वीट में इसकी तकलीफ जाहिर कर रहे हैं कि संगठन में उन्हेंं सहयोग नहीं मिल रहा है।
कांग्रेस का इसे लोकतांत्रिक होना कहा जा सकता है कि यहां नेता अपनी भड़ास निकालने के लिए पब्लिक मंच का इस्तेमाल करते हैं। फिर आलाकमान जागता है और नाराज नेता से पूछता है कि बताइए क्या किया जाए। पंजाब में अपने मुख्यमंत्री को ही बाहर का रास्ता दिखाने में प्रतिभागी रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत के विद्रोही तेवर आलाकमान को परेशान कर रहे हैं। यह एकाएक हुआ और फिर एक नेता के दिल की टीस सामने आ गई। सच्चाई क्या है, यह तो हरीश रावत ही जानें लेकिन विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़े उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए यह खतरे की घंटी ही है।
आजकल सोशल मीडिया भड़ास मिटाने का सर्वसुलभ साधन है, न पार्टी के वरिष्ठ नेतृत्व को जानकारी होती और न ही किसी बैठक या चर्चा-विमर्श की जरूरत। बस एक ट्वीट और काम शुरू। हरीश रावत ने जैसा ट्वीट लिखा है, उसे पढ़कर आजकल की राजनीति के अनूठेपन का भी अंदाजा होता है। वे अपने ट्वीट में इसकी तकलीफ जाहिर कर रहे हैं कि संगठन में उन्हेंं सहयोग नहीं मिल रहा है। अब जिनसे सहयोग नहीं मिल रहा है, उनकी भी उत्कंठा होगी, लेकिन फिर अगर पार्टी नेतृत्व का कोई निर्देश है तो उसके मुताबिक चलना होगा। हालांकि बावजूद इसके एक राजनीतिक दल में अगर मतभेद नहीं होंगे तो फिर वहां लोकतंत्र भी नहीं होगा। इस तरह से कांग्रेस में खूब लोकतंत्र है, लेकिन यह लोकतांत्रिक आजादी पार्टी को नुकसान भी पहुंचा रही है। पंजाब इसका हालिया उदाहरण है।
कांग्रेस महासचिव एवं राज्य चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष रावत ने अपने ट्वीट में लिखा है कि है, न अजीब सी बात, चुनाव रूप समुद्र में तैरना है। सहयोग के लिए संगठन का ढांचा अधिकांश स्थानों पर सहयोग के हाथ आगे बढ़ाने के बजाय मुंह फेर कर खड़ा हो जा रहा है या नकारात्मक भूमिका निभा रहा है। जिस समुद्र में तैरना है, सत्ता ने वहां कई मगरमच्छ छोड़ रखे हैं, जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदे मेरे हाथ-पांव बांध रहे हैं। मन में बहुत बार विचार आ रहा है कि हरीश रावत अब बहुत हो गया, बहुत तैर लिए, अब विश्राम का समय है। दरअसल, हरीश रावत के इस ट्वीट में समुद्र विधानसभा चुनाव हैं, और जिन्हें वे मगरमच्छ बता रहे हैं, वे सत्ताधारी पार्टी भाजपा के नेता।
वैसे यह दिलचस्प है कि उन्होंने सत्ताधारी दल के नेताओं को मगरमच्छ की संज्ञा दी है। न जाने क्यों, क्या सोच कर उन्होंने यह लिखा। क्योंकि चुनाव वह फिर चाहे पंच का हो या फिर विधायक या सांसद का। हमेशा समुद्र की तरह ही जोखिम भरे होते हैं। अब समुद्र में मगरमच्छ तो होंगे ही, उनसे मुकाबला भी होगा। लेकिन इसकी जानकारी केवलमात्र हरीश रावत को होना और आलाकमान को इसका इल्म न होना पार्टी संगठन की तैयारियों की पोल खोलता है। उत्तराखंड में भाजपा ने अपने मुख्यमंत्रियों को लगातार बदला है, इसकी वजह विकास कार्यों के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाना भी है।
पंजाब में मुख्यमंत्री को बदलने के पीछे मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू की जिद रही है। पहले उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ रार रखी और फिर जब अध्यक्ष की कुर्सी मिल गई तो कैप्टन को बाहर करवा दिया। अब कमोबेश यही स्थिति उत्तराखंड में बन गई है, हालांकि यहां पार्टी सत्ता में नहीं है, लेकिन संगठन में खलबली जरूर है। यही वजह है कि पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह रावत के संबंध में ट्वीट कर रहे हैं, आप जैसा बोते हैं, वैसा ही काटते हैं। भविष्य के प्रयासों अगर कोई हैं के लिए शुभकामनाएं। बताया जा रहा है कि पार्टी प्रभारी समेत अन्य केंद्रीय नेता सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लडऩे की बात कह रहे हैं, जबकि हरीश रावत अपने नेतृत्व में चुनाव चाहते हैं।
पंजाब प्रदेश प्रभारी का पद भी उन्होंने चुनाव को देखते हुए छोड़ा था, रावत को कांग्रेस के जीतने पर मुख्यमंत्री पद का अहम दावेदार माना जा रहा है। हालांकि अब पार्टी में ही विरोधियों के सामने आने के बाद उनका रास्ता मुश्किल भरा हो गया है। ऐसे में उन्होंने आलाकमान पर दबाव बनाने के लिए यह शिगुफा छोड़ा कि वे काम नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि दूसरे ही पल उनका यह पोस्ट भी आ गया कि उनका राजनीति से संन्यास का इरादा नहीं है।
मालूम हो, कांग्रेस में इस ट्वीटबाजी को लेकर जहां सत्ताधारी भाजपा की ओर से टिप्पणियां आ रही हैं, वहीं कांग्रेस के अंदर भी खूब चर्चा है। कांग्रेस में ग्रुप 23 के नेताओं ने भी टिप्पणी की है। यह ग्रुप उन असंतुष्ट नेताओं का समूह माना जाता है जोकि नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठा रहा है। एक नेता ने मौजूद परिस्थिति पर कहा, पहले असम, फिर पंजाब और अब उत्तराखंड। पार्टी को डुबाने में कोई कसर न रह जाए। वैसे यह समझा जाना जरूरी है कि कांग्रेस में अपनी बात मनवाने के लिए क्या एकमात्र रास्ता बगावत का ही रह गया है।
पंजाब में कांग्रेस का प्रयोग कितना सफल रहा है, यह जल्द मालूम हो जाएगा, ऐसे ही दूसरे प्रदेश जहां पार्टी एकजुटता का दावा करती है, लेकिन उसकी अंदरखाने टूट उसकी तैयारियों को चोट पहुंचा रही है। ऐसे में आलाकमान को ही यह देखना होगा कि उचित क्या है। बकौल रावत जिनके आदेश पर तैरना है, उनके नुमाइंदे अगर हाथ-पैर बांधेंगे तो फिर कैसे तैरा जाएगा। वैसे, वरिष्ठ नेताओं को अब विश्राम लेने की सोचना गलत भी नहीं है, इससे युवाओं को आगे आने का मौका मिलेगा।