राजनीति

पंजाब में भाजपा अब कभी नहीं जाएगी बादलों के साथ!

आतंकवाद के दौर से अकाली दल के साथ खड़ी रही भाजपा का कृषि कानूनों के बाद अकाली दल ने साथ छोड़ दिया था, पंजाब में यह पहला चुनाव होगा जिसे भाजपा अपने बूते लड़ेगी, मोदी ने शिअद से रिश्ते सुधरने पर लगाया फुलस्टाप

10 फ़रवरी, 2022 02:30 PM
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

इसहफ्ते न्यूज. चंडीगढ़

Punjab vidhansabha election 2022 :  पंजाब में भाजपा (bjp) की स्थिति एक बड़े पेड़ के नीचे गमले में रखे पौधे की तरह रही है। शिरोमणि अकाली दल (Sad) के साथ गठबंधन के दौरान भाजपा ने सदैव छोटे भाई की भूमिका अदा, लेकिन अब पार्टी को अगर अपनी छवि बड़ी होती दिख रही है तो यह वक्त की मांग भी है। एक राजनीतिक दल का प्रथम कार्य अपने आप को स्थापित कर जनता की आवाज बनते हुए सत्ता में भागीदारी करना होता है। भाजपा शिअद के साथ गठबंधन में सत्ता में भी शामिल रही और विपक्ष में भी उसके साथ खड़ी रही। भाजपा ने शिअद के अलावा किसी और के साथ जाना पसंद नहीं किया। अगर कृषि कानून वजूद में नहीं आए होते तो संभव है, आज भी भाजपा, अकालियों की अनुषंगी होती।

 

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान कि पंजाब में भाजपा सबसे विश्वसनीय पार्टी है, के बाद यह तय हो गया है कि अब पार्टी किसी के साथ नहीं चलेगी अपितु दूसरों को साथ लेकर चलेगी। कांग्रेस से बाहर आकर पंजाब लोकहित कांग्रेस बनाने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह अब भाजपा के सहयोगी हैं, वहीं शिअद संयुक्त को भी साथ लिया है। मोदी ने साफ कर दिया है कि अब शिरोमणि अकाली दल के साथ पुराने रिश्ते फिर से कायम होने की उम्मीद कम है। उन्होंने कहा कि अब हमारे रास्ते अलग हैं।

 

बेशक, राजनीति में कब किसकी कहां राहें एक हो जाएं, कोई नहीं जानता। मोदी एक परिपक्व राजनीतिक हैं और वे एक-एक शब्द का मतलब बखूबी समझते हैं। भाजपा से अलग होकर शिअद ने बसपा के साथ गठजोड़ किया है, बसपा का इतिहास है कि गठजोड़ करके उसे निभाना पार्टी नेताओं को नहीं आता। वह चाहे यूपी हो या फिर हरियाणा, बसपा ने गठजोड़ किए लेकिन उन्हें तोड़ दिया। पंजाब में अकालियों के साथ बसपा का गठबंधन चुनाव तक रह सकता है और चुनाव के बाद मनवांछित परिणाम हासिल न होने पर यह गठजोड़ टूटने की आशंका है। ऐसे में शिअद भी भाजपा जैसी विश्वसनीय पार्टी से साथ छूटने का रंज समझ पा रही होगी, हालांकि शिअद नेता इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं करते।

 

मोदी ने यह भी बताया है कि आखिर क्यों भाजपा ने शिअद का साथ निभाया। आतंकवाद के बाद पंजाब की स्थिरता के लिए पार्टी ने अकालियों के साथ चलना मंजूर किया। उनका कहना है कि पार्टी ने अपने हितों की अनदेखी करके राज्य हित के लिए अकाली दल को बड़े सहयोगी के रूप में स्वीकार किया। मोदी का यह कहना अपनी जगह सही हो सकता है, हालांकि यह भी सच है कि जब भाजपा स्वीकार्यता के संकट से गुजर रही थी, उस समय अकाली दल ने न केवल उसे स्वीकार किया अपितु पंजाब में सिख और हिंदुओं के बीच सौहार्द कायम किया। बेशक, यह दोनों की जरूरत थी, क्योंकि अकाली दल ने भाजपा को साथ लेकर खुद पर सिखों की पार्टी होने का लगा ठप्पा भी हटाया।

 

हालांकि अकालियों की बैशाखी बनी भाजपा को इसका नुकसान भी उठाना पड़ा। इतने वर्षों में उसकी अपनी पहचान कायम नहीं हो सकी।
मोदी मीडिया से बहुत कम बात करते हैं, लेकिन अपने साक्षात्कार में उन्होंने जो भी कहा है, वह आज की भारतीय राजनीति की सच्चाई उजागर करने वाला है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में उन्होंने न केवल भाजपा की सोच अपितु वहां के स्थानीय राजनीतिक हालात का भी खाका खींचा है। उन्होंने बेहद मजबूती के साथ जहां योगी आदित्यनाथ के द्वारा यूपी में कराए गए कार्यों की वकालत की है, वहीं भविष्य के लिए भी उनके लिए मार्ग तैयार कर दिया है। भाजपा अपने शुुरुआती दिनों में सुशासन कायम करने का वादा करती रही है, हालांकि पार्टी की राज्य सरकारों पर आरोप हैं, लेकिन फिर भी तुलनात्मक रूप से कानून-व्यवस्था की स्थिति ठीक रही है। यूपी में अपराध का बोलबाला था, जिसे योगी सरकार ने काफी हद तक नियंत्रित किया है। वे अपने विश्वास से जनता को वाकिफ करवा रहे हैं कि योगी ही यूपी के लिए उपयोगी हैं।

 

मोदी पिछले कुछ रोज से कांग्रेस पर लगातार हमलावर हैं। वे ऐसे राजनेता की छवि रखते हैं, जोकि तुरंत पलट कर जवाब नहीं देता। वे सुनते हैं और उस पर मनन करते हैं और फिर समय आने पर उसका जवाब देते हैं। यह जवाब बेहद तीखा होता है। राहुल गांधी ने संसद में भाजपा और मोदी पर जिस प्रकार प्रहार किया था, उसका जवाब अब मोदी रह-रहकर दे रहे हैं और कांग्रेस को इसका प्रत्युत्तर तक नहीं सूझ रहा। मोदी का कहना है कि कांग्रेस ने ही देश का ज्यादा नुकसान किया है। वे अटल बिहारी वाजपेयी और स्वयं को छोडक़र बाकी सभी प्रधानमंत्रियों का मूल कांग्रेस को मानते हैं, इसे उन्होंने कांग्रेस संस्कृति का नाम दिया है। मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बात कहते हैं, लेकिन अब उसका मतलब भी समझा रहे हैं कि वे कांग्रेस की संख्या नहीं अपितु उसकी संस्कृति से मुक्ति की बात कर रहे हैं।

 

कांग्रेस और दूसरे कई दल आज परिवारवाद की राजनीति की पाठशाला बन चुके हैं। इनमें समाजवादी पार्टी और दक्षिण की विभिन्न पार्टियां शामिल हैं। सपा खुद के समाजवादी होने का दावा करती है, समाजवाद की धारणा आखिर एक पार्टी की बपौती कैसे हो सकती है। मोदी ने अब यही समझाया है, उनका कहना है कि खाद्यान्न, पेयजल, स्वास्थ्य व्यवस्था, कृषि के लिए मदद जैसे काम अगर समाजवाद हैं तो फिर भाजपा भी ये सब करती आई है, ऐसे में वह भी समाजवादी है।

 

मोदी का यह कहना प्रासंगिक है कि परिवारवाद, लोकतंत्र के लिए खतरा है। कांग्रेस का इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि सक्षम नेतृत्व के अभाव में पार्टी किस प्रकार दिशाहीन हो सकती है। एक पार्टी को कंपनी की तरह चलाने का खामियाजा यह होता है कि दूसरे लोगों के लिए वहां कोई जगह नहीं रह जाती। सपा, बसपा, कांग्रेस, इनेलो, शिअद, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, डीएमके जैसी पार्टियों की आज यही स्थिति है।

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