तेजस्वी/इसहफ्ते न्यूज . चंडीगढ़
कांग्रेस में यह भागम-भाग आखिर किस वजह से है और इसका कोई समाधान क्यों नहीं निकल पा रहा है। नेताओं के दौडऩे से पार्टी का घर खाली हो रहा है और आलाकमान को जैसे परवाह ही नहीं है, वह नीरो की भांति अपनी सैरगाहों में बंसी बजा रही है।
कांग्रेस आलाकमान के वफादार या वे लोग जिन्हें किसी राजनीतिक दल में रहकर अपना करियर बनाना है, इसे आंतरिक लोकतंत्र की संज्ञा दें, लेकिन देश के सामने कांग्रेस की फूट उजागर हो चुकी है। जिन राज्यों में कांग्रेस को जनमत मिला था, उन्हीं राज्यों में सत्ता को लेकर जैसी कलह मची है वह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को बेचैन कर रही है। उन नेताओं में जी-23 के वे नेता भी शुमार हैं, जिन्होंने बीते वर्ष कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र भी लिखा था। अब फिर वे नेता सक्रिय हो गए हैं, क्योंकि उनसे कांग्रेस की दुर्दशा देखी नहीं जा रही। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने तो एक बार फिर पत्र लिखकर जैसे सोए हुए आलाकमान को जगाने का काम कर दिया है। हालांकि एक अन्य वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने तो अपने जी-23 ग्रुप को सही ठहराया है वहीं यह भी कह दिया कि यह ग्रुप जी हुजूर-23 नहीं है।
यह तब है, जब पंजाब में सत्ता का पार्टी ने मखौल बना रखा है और कभी मुख्यमंत्री बदला जाता है तो कभी प्रदेश अध्यक्ष इस्तीफा देकर अपने घर जा बैठता है। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री जोकि पद पर रहते कृषि कानूनों के धुर विरोधी रहे अब केंद्रीय गृहमंत्री से मुलाकात कर कृषि कानूनों में सुधार के पैरोकार बन रहे हैं। कांग्रेस में यह भागम-भाग आखिर किस वजह से है और इसका कोई समाधान क्यों नहीं निकल पा रहा है। नेताओं के दौडऩे से पार्टी का घर खाली हो रहा है और आलाकमान को जैसे परवाह ही नहीं है, वह नीरो की भांति अपनी सैरगाहों में बंसी बजा रही है। गुलाम नबी आजाद ने अपनी चिट्ठी में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाने और पार्टी अध्यक्ष का चुनाव कराने की मांग उठाई है।
यह भी खूब है कि सिब्बल ने भी इस पत्र को लिखे जाने की पुष्टि करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जल्द कराए जाने की मांग उठाई है। यानी सभी को पता है कि कांग्रेस रसातल में जा रही है और उसे बाहर निकालने के लिए काम किए जाने की जरूरत है, लेकिन इसके बावजूद इस पर अमल नहीं हो रहा। कुछ नए लोगों को पार्टी में लाया जा रहा है, जिन्हें आलाकमान यानी सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी की गैर उपस्थिति में भर्ती किया जाता है और फिर वे लोग कांग्रेस को जहाज की संज्ञा देते हुए इसे डूबने से बचाने की गुहार लगाते हैं। अगर बाहरी लोगों को भी यह लग चुका है कि कांग्रेस डूबता जहाज है तो फिर इसके अंदर बैठे लोगों को यह क्यों नहीं लग रहा। संभव है, कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं का यही दर्द है, जोकि उन्हें साल रहा है।
कपिल सिब्बल का यह कहना असहाय होना दिखाता है कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे पास फिलहाल कोई अध्यक्ष नहीं है, हमें जल्द से जल्द एक निर्वाचित अध्यक्ष की जरूरत है। सिब्बल और आजाद ऐसे नेता हैं, जोकि आलाकमान की ओर से गहरे आघात के बावजूद कांग्रेस में ही बने हुए हैं, उनके जैसे और भी नेता हो सकते हैं जोकि कांग्रेस से बाहर नहीं जाना चाहते, ऐसा वे उस विचारधारा का समर्थन करने की वजह से नहीं कर रहे, जो कभी कांग्रेस की परिपाटी रही है।
हर पार्टी का अपना स्वरूप और विचार है, फिर कांग्रेस से अपना सफर शुरू करने वाले क्यों इसे अलविदा कहें। अगर कहीं समस्या है तो उसे दूर किया जाना चाहिए। हाल-फिलहाल तो समस्या यही है कि आलकमान की जगह ऐसा कोई नेतृत्व हो जोकि सभी पक्षों को लेकर आगे बढ़े और परिवारवाद का यह दौर कांग्रेस में खत्म हो। वैसे भी एक परिवार के नाम पर चल रही कांग्रेस में अगर नेताओं के अंदर इतनी बेचैनी है तो इसकी वजह यही है कि पार्टीजनों के पास नेतृत्व नहीं है।
जाहिर है, सिब्बल जैसे नेता चुप साध कर नहीं बैठ सकते। गुलाम नबी आजाद ने जब बोलना चाहा तो उन्हें पूरी तरह से चुप करा दिया गया। कांग्रेस चाहती तो उन्हें पार्टी में अगवा नेता बनाकर रख सकती थी लेकिन आजाद उन नेताओं की पांत में शामिल हैं, जोकि वह बोलते हैं जो दिल में आता है। कपिल सिब्बल की नजर पंजाब में जारी सियासी घमासान पर भी है।
उन्होंने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के आरोप कि कांग्रेस में घमासान का फायदा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान उठा सकता है, को एक तरह से दोहराते हुए कहा है कि पाकिस्तान इस उठापटक से फायदा हासिल कर सकता है। सिब्बल ने कहा कि सीमांत राज्य में अस्थिरता के हालात ठीक नहीं होंगे। कांग्रेस पार्टी को लोग लगातार छोडक़र जा रहे हैं। उनका यह कहना पंजाब में जारी उठापटक पर निशाना है, क्योंकि जिस तरह से पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाया गया है, वह उन टकसाली कांग्रेसियों को परेशान कर रहा है, जोकि बरसों से पार्टी की सेवा कर रहे हैं और इसके जरिए अपने भविष्य को देखते हैं।
कपिल सिब्बल का यह कहना समय की मांग है कि हर कांग्रेसी को यह सोचना चाहिए कि कैसे पार्टी को मजबूत किया जा सकता है। पार्टी को जो भी छोड़ गए हैं, उन्हें वापस बुलाया जाना चाहिए क्योंकि अकेले कांग्रेस ही इस देश में लोकतंत्र को बचा सकती है। जाहिर है, कांग्रेसजन दीवार पर लिखी इस इबारत को नहीं पढ़ पा रहे हैं कि पार्टी का यह बिखराव उसके लिए भारी पड़ रहा है। हवा में जिस प्रकार चद्दर उड़ती है और एक कोना पकड़ो तो दूसरा उड़ता है, दूसरा पकड़ो तो तीसरा और फिर चौथा। इस प्रकार कांग्रेस मजबूत सरकार और पार्टी के समक्ष अपना संतुलन खोती जा रही है।
बिहार विधानसभा चुनाव हो या पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पार्टी को ऐसी कामयाबी हासिल नहीं हुई है, जिसका वह डंका पीट सके। वहीं पंजाब में जहां एक नेता के बूते पार्टी ने दस साल बाद शिअद को हरा कर सरकार बनाई थी, वहां भी अब संशय के बादल मंडरा रहे हैं। जनता किस पर भरोसा करेगी, एक पार्टी पर या फिर उन बदलते चेहरों पर। लगता है, किसी भी क्षण कोई भी चेहरा बदला जा सकता है और उसकी जगह कोई दूसरा थोपा जा सकता है। बदलाव जरूरी होता है, लेकिन अगर यह समय और परिस्थति के मुताबिक नहीं होगा तो संकट ही लेकर आएगा, तब यह बदलाव भी नहीं कहलाएगा। कांग्रेस को खुद को बदलना होगा लेकिन गोल-गोल घूमकर नहीं अपितु लंबी दूरी चलने के लिए। खुद को देश की सबसे पुरानी पार्टी कहलाने के नाम पर वोट लेने के बजाय पार्टी को मौजूदा हालात में बेहतर करके दिखाना होगा।