इसहफ्ते न्यूज.
परमार सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास जाहिर कर रहे थे, तब माना जा रहा था कि वे कोई सख्त कदम उठा सकते हैं। उन्होंने लिखा था कि उनकी आवाज किसी शोर में डूब गई है, लेकिन उनकी खामोशी दूर तक सुनाई देगी। इस्तीफा देकर उन्होंने अपनी खामोशी को आवाज दे दी है।
हिमाचल प्रदेश में सत्तासीन भाजपा के लिए तीन विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट की हार पचा पाना इतना आसान नहीं है। यह तब है, जब मंडी लोकसभा सीट पर भी पार्टी को कांग्रेस के हाथों करारी हार मिली है, जबकि यह सीट मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की गृह सीट है, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से जीत दर्ज करने वाली भाजपा के साथ तीन साल में ही ऐसा क्या हुआ कि जनता का उससे विमोह हो गया। पार्टी के अंदर क्या चल रहा है, इसकी भनक अब पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष कृपाल परमार के इस्तीफे से भी मिलती है। परमार की ओर से अपने इस्तीफे में लिखी शब्दावली पर गौर करें तो उन्होंने पार्टी के अंदर तानाशाही को इसकी वजह बताया है।
भाजपा में तानाशाही का आरोप
भाजपा जोकि खुद को विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी होने का दावा करती है, के अंदर तानाशाही का आरोप अटपटा लगता है। हालांकि बीते कुछ वर्षों में जबसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पार्टी के राष्ट्रीय पटल पर आए हैं, अनेक नेता अलग-थलग होते गए हैं। एक जमाने में वे भाजपा के पर्याय होते थे, लेकिन अब या तो अपने घरों में बैठ कर भाजपा के मार्गदर्शक होने का बनावटी रूतबा हासिल किए हुए हैं या फिर दूसरी पार्टियों की शोभा बढ़ाने को मजबूर हैं। यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ के बारे में ज्यादा स्पष्ट तो कुछ भी नहीं है, लेकिन एकाएक भाजपा में एकछत्र राज कायम होता गया है। तब हिमाचल प्रदेश भाजपा में भी क्या ऐसा ही कुछ हो रहा है? परमार पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं, हालांकि उन्होंने पार्टी नहीं छोड़ी है।
अपने त्यागपत्र में परमार ने कहा कि पिछले 4 साल से पार्टी में उनकी अनदेखी हो रही है, जिसे वे और बर्दाश्त नहीं कर सकते। उन्होंने यह भी कहा कि वे पार्टी के सच्चे कार्यकर्ता हैं और इसके लिए काम करते रहेंगे। मालूम हो, यह पत्र भाजपा राज्य कार्यसमिति की बैठक से पहले आया है।
इस नाराजगी की एक वजह यह भी है कि बीते दिनों हुए उपचुनाव में पार्टी ने कांगड़ा जिले की फतेहपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के इच्छुक परमार को पीछे करते हुए बलदेव ठाकुर को टिकट दे दी थी। हालांकि ठाकुर भी यहां जीत का मुंह नहीं दे पाए। यह भी सामने आया है कि वे उस समय बागी होकर चुनाव लड़ने का मन बना चुके थे, लेकिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने उन्हें समझा लिया था, जिसके बाद वे मान गए थे। हालांकि उनके मन में कसक बाकी थी, और इसी कसक के चलते उन्होंनेे उपचुनाव से दूरी बनाए रखी, वे पार्टी के घोषित उम्मीदवार बलदेव ठाकुर के प्रचार के लिए भी नहीं गए। ठाकुर इस उपचुनाव में पांच हजार वोट से हार गए, वोट का यह अंतर बहुत बड़ा नहीं है, संभव है अगर परमार भी प्रचार के दौरान साथ खड़े दिखते तो पार्टी उम्मीदवार को जीत हासिल हो जाती। खैर, इसके बाद पार्टी में उनके प्रति नकारात्मक धारणा बनने का डर था और यही हुआ भी। हालांकि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के नजदीकी होने के बावजूद परमार न तो टिकट हासिल कर पाए थे और न ही बाद में पार्टी के अंदर अपने लिए जगह कायम रख पाए। अब उन्होंने यही आरोप लगाते हुए कि उन्हें किसी न किसी तरह अपमानित किया गया, इस्तीफा दे दिया।
मालूम हो, परमार को पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का बेहद करीबी माना जाता है। वे साल 2002 से 2006 तक राज्यसभा के सदस्य रहे और उन्हें कांगड़ा के सबसे बड़े भाजपा नेताओं में से एक माना जाता है। उन्होंने राज्य परिवहन निगम के उपाध्यक्ष के रूप में भी दायित्व संभाला है। यह भी सामने आया है कि वे पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास जाहिर कर रहे थे, तब माना जा रहा था कि वे कोई सख्त कदम उठा सकते हैं। उन्होंने लिखा था कि उनकी आवाज किसी शोर में डूब गई है, लेकिन उनकी खामोशी दूर तक सुनाई देगी। इस्तीफा देकर उन्होंने अपनी खामोशी को आवाज दे दी है। लेकिन मुख्यमंत्री और पार्टी की ओर से अभी इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है। क्या यह माना जा सकता है कि परमार के आरोपों में सच्चाई है।
इन आरोपों में कितनी सच्चाई है, इसकी पुष्टि तो नहीं की जा सकती, लेकिन संभव है, अपनी अपेक्षाओं को पूरा न होते देख परमार बागी हो गए हैं और अब उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा है कि पार्टी में उन्हेंं अपमानित किया जा रहा है। बहरहाल, उपचुनाव के ठीक बाद प्रदेश उपाध्यक्ष का इस्तीफा पार्टी की सेहत का खुलासा भी कर रहा है, अभी उपचुनाव का परिणाम आने के बाद इसे पूरी पार्टी के लिए एक सबक बताया गया है, कहा गया कि महंगाई और किसान आंदोलन की मार ने भाजपा को शिकस्त दे दी। इसके बाद का घटनाक्रम तुरंत बदला है, चुनाव परिणाम के अगले ही रोज जहां पेट्रोल-डीजल के रेट कम हुए वहीं अब प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि कानून भी वापस लेने की घोषणा कर दी।
हिमालच प्रदेश के संदर्भ में देखें तो मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इस हार को उनकी सरकार के अंतिम मूल्यांकन के रूप में नहीं देखने की बात कही है। वे इसे सिर्फ अलर्ट बता रहे हैं, हालांकि वे यह कहना भी नहीं चूकते कि इस हार से पार्टी को अति आत्मविश्वास से भी छुटकारा प्राप्त होगा। वे किस अति आत्मविश्वास की बात कर रहे हैं, क्या पार्टी को यह लग रहा है कि वह इस पहाड़ी राज्य में अजेय हो चुकी है।
वीरभद्र के देहांत के बाद तो नहीं उपजा यह अति आत्मविश्वास
संभव है यह अति आत्मविश्वास कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के देहांत के बाद राज्य में कांग्रेस के किसी कद्दावर नेता की गैरहाजिरी से उपजा हो, लेकिन अब तीन हलकों और एक लोकसभा सीट पर हार से भाजपा नेताओं का यह भ्रम टूट जाना चाहिए। पार्टी अर्की, फतेहपुर और जुब्बल-कोटखाई विधानसभा सीटों के साथ मंडी की लोकसभा सीट पर भी हार गई। हिमाचल प्रदेश में अगले वर्ष अक्तूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में पार्टी के लिए यह हार सबक हो सकती है, लेकिन परमार जैसे वरिष्ठ नेता के इस्तीफे की वजह तो पार्टी को खोजनी ही होगी, यह असंतोष अन्य नेताओं में भी हो सकता है।