तेजस्वी /इसहफ्ते न्यूज . चंडीगढ़
एक पोस्टर सामने आया है, कैप्टन 2022. इस पोस्टर में कैैप्टन अमरिंदर सिंह उसी पोज में खड़े हैं, जैसे वे बतौर मुख्यमंत्री अभी कुछ दिन पहले तक सरकारी विज्ञापनों में नजर आते थे। इस पोस्टर को कैप्टन के पूर्व ओएसडी नरेंद्र भांबरी ने जारी किया है। 79 की उम्र में एक रिटायर्ड कैप्टन का यह अंदाज जहां पंजाब को हैरत में डाल रहा है वहीं कांग्रेस के रणनीतिकारों की नींद हराम हो चुकी है। जंग का नियम यही होता है कि हर हाल में जीत हासिल करो। जिंदा रहकर या मर कर। जिंदा रहकर जीत हासिल की तो उस गौरव के साक्षी बनोगे, जोकि दुश्मन नतमस्तक होकर तुम्हें प्रदान करेगा, लेकिन अगर मरकर जीते तो उस हौसले के लिए दुश्मन और वह देश जिसके लिए लड़े, हमेशा तुम्हारा कृतज्ञ रहेगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह को उनका कार्यकाल पूरा होने से पांच महीने पहले यूं रवाना करना, ऐसा दर्द है जिसे वे कभी भूल नहीं सकते। अगर कांग्रेस आलाकमान उन्हें उनका कार्यकाल पूरा करने देता तो यह उनकी जीत और सम्मानित विदाई हो सकती थी लेकिन कैप्टन के राजनीतिक जीवन को मौत देने की यह कोशिश भला कैप्टन और उनके समर्थकों को कैसे रास आ सकती है। यही वजह है कि कैप्टन अब लड़ना चाहते हैं और संभवत: आखिरी लड़ाई।
कैप्टन ने पंजाब राजभवन के बाहर इस्तीफा देने के बाद जो तेवर दिखाए थे, वे टीवी चैनलों की स्क्रीन पर पूरे देश ने देखे हैं, लेकिन अब झटके के बाद संभले कैप्टन ने अपने समर्थकों को खामोशी तोडऩे के निर्देश देकर यह जता दिया है कि वे आलाकमान के इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
कैप्टन फिर लौटेंगे
इंटरनेट मीडिया पर एक पेज आजकल पंजाब की भावी सियासत का चेहरा सामने ला रहा है। इस पर लिखा है- कैप्टन फिर लौटेंगे। वर्ष 2017 में पंजाब की हवाओं में एक सुरसुराहट थी। इसे भांपने वाले लोग कहते थे कि प्रदेश की जनता कुछ नया करने का इरादा रख रही है। यह दौर कांग्रेस के नैराश्य का था। पार्टी के अंदर कोई ऐसा नेता नहीं था, जोकि जनता के दिलों में हिलोर पैदा कर सके और उसे जीत की ओर अग्रसर कर सके। आलाकमान ने यह काम फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह को सौंपा। उस समय करीब 74 साल के रहे कैप्टन की ऊर्जा देखते ही बनती थी। वे जहां विपक्षियों को जवाब दे रहे थे, वहीं कांग्रेस के अंदर बिखरे गुटों को भी साधने में लगे थे।
पूर्व मुख्यमंत्रियों, पूर्व अध्यक्षों, विधायकों, सांसदों के सामने कैप्टन की चुनौती थी कि वे जो कर सकते हैं, वह करके दिखाइए। बेशक, इसके बाद जो हुआ वह कांग्रेस के लिए इतिहास बन गया। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में 77 सीटें जीती थी। इनमें सर्वाधिक मालवा इलाके से 40 सीटें रहीं, वहीं माझा से 22 और मालवा से 15 सीटें रहीं। यह मानने में कोई किंतु-परंतु नजर नहीं आता कि ऐसा कैप्टन के प्रभावी नेतृत्व की वजह से हुआ। बेशक, कैप्टन की कार्यशैली भी एकछत्र होने की रही है, लेकिन अगर उनके नेतृत्व के भरोसे पार्टी को मोदी लहर में इतनी बड़ी कामयाबी हासिल होती है तो फिर इसका श्रेय भी उन्हें क्योंकर नहीं मिलना चाहिए।
अनुभवहीनता की भूमिका हो रही साफ
आज पंजाब कांग्रेस विभाजन के कगार पर खड़ी है तो इसमें किसी की अनुभवहीनता की भूमिका ही दिख रही है। ऐसा सामने आ रहा है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को उनकी कुर्सी से हटाने की तैयारी नवजोत सिंह सिद्धू के प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद से ही शुरू हो गई थी। यह सब इतना अंदरखाने हो रहा था कि कैप्टन को और उनके समर्थकों को इसका भान तक नहीं था। कैप्टन विरोधियों का यह कारनामा इतनी चपलता से और इतनी बारीकी से अंजाम दिया गया है कि कैप्टन गहरे सदमे में पहुंच गए। कैप्टन ने पंजाब राजभवन के बाहर इस्तीफा देने के बाद जो तेवर दिखाए थे, वे टीवी चैनलों की स्क्रीन पर पूरे देश ने देखे हैं, लेकिन अब झटके के बाद संभले कैप्टन ने अपने समर्थकों को खामोशी तोडऩे के निर्देश देकर यह जता दिया है कि वे आलाकमान के इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यही वजह है कि कैप्टन ने कहा है- वे अगला चुनाव जीतने के बाद राजनीति छोडऩा चाहते थे, लेकिन हार कर कभी नहीं छोड़ेंगे। कैप्टन यह भी बताना नहीं भूल रहे हैं कि वे तो खुद ही कुर्सी छोडऩे को तैयार थे, लेकिन आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री बने रहने को कहा। कैप्टन बोले- मैं एक फौजी हूं, मुझे अपने काम के बारे में पता है, और अगर वह मुझे एक बार कह देती तो मैं मुख्यमंत्री पद छोड़ देता।
तो क्या कांग्रेस को अलविदा कहने की है तैयारी
कैप्टन अमरिंदर सिंह की यह यलगार कांग्रेस के लिए नई चुनौती बनने जा रही है। कैप्टन के तेवर ऐसे हैं कि वे किसी भी समय पार्टी छोडक़र अपना संगठन खड़ा करने की घोषणा कर सकते हैं। हालांकि उनकी उम्र को लेकर सवाल उठे हैं, लेकिन उन्होंने इसका जवाब भी दिया है कि उम्र मायने नहीं रखती। एक सैनिक पूरी उम्र सैनिक ही रहता है, वह परिस्थितियों से हार मानकर घर नहीं बैठ जाता। अगर ऐसा होता तो कैप्टन एक बुजुर्ग की भांति अपने घर आकर बैठ जाते और इस आघात को झेलने की कोशिश करते, लेकिन उन्होंने न केवल प्रदेश कांग्रेस के मुखिया नवजोत सिंह सिद्धू को चेताया है, अपितु दिल्ली दरबार में राहुल और प्रियंका गांधी को भी चुनौती दे डाली है। कैप्टन कांग्रेस के उन असंतुष्ट नेताओं में शुमार नहीं हुए थे, जिन्होंने कांग्रेस नेतृत्व बदलने के लिए चिट्ठी लिखी थी। उन्होंने तब इसका विरोध किया था, लेकिन जिस वफादारी का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने ऐसा नहीं किया था, आज वही उन पर भारी पड़ गई है। राहुल और प्रियंका गांधी अभी तक कैप्टन के लिए अनुभव से परिपूर्ण थे लेकिन अब एकाएक वे अनुभवहीन हो गए। गांधी परिवार पर ऐसा हमला वही कर सकता है, जिसने यह विचार लिया होकि अब वह और यहां नहीं रह सकता या रहेगा।
कैप्टन के करियर पर फुलस्टॉप !
वैसे भी यह तय हो चुका है कि कांग्रेस आलाकमान ने कैप्टन के राजनीतिक करियर पर फुलस्टॉप लगाने के लिए ही यह सब किया। अगर आलाकमान चाहता तो आगामी विधानसभा चुनाव तक इंतजार कर सकता था और चुनाव के बाद कैप्टन को दिल्ली दरबार में जगह देकर उनकी सम्मानजनक विदाई का माहौल तैयार करवा सकता था। लेकिन आलाकमान ने सिद्धू के पक्ष में बहती हवा को देखा है, यही वजह है कि कैप्टन ने केसी वेणुगोपाल, अजय माकन व रणदीप सुरजेवाला को भी निशाने पर लिया है। सिद्धू को सीएम न बनने देने की चुनौती भी इसीलिए है कि वे कांग्रेस में रहे तब भी और उससे बाहर आए तब भी, उस व्यक्ति को माफ नहीं करेंगे, जिसकी वजह से उन्हें जबरदस्ती अज्ञातवास में भेजने की कोशिश की गई। बेशक कैप्टन की सक्रियता इस अज्ञातवास से बाहर आने की है, लेकिन अब प्रदेश कांग्रेस और उसकी रहनुमा आलाकमान के रूख से यह निर्धारित होगा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह का राजनीतिक भविष्य क्या मोड़ लेता है।