इसहफ्ते न्यूज स्टाफ
विश्व की महाशक्ति अमेरिका ने जिस प्रकार अफगानिस्तान में पीठ दिखाई है, उससे जहां अमेरिकियों को उपहास का पात्र बनना पड़ रहा है, वहीं पूरी दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के कमजोर पडऩे का खतरा भी पैदा हो गया है। अफगानिस्तान में एक निर्वाचित सरकार को हटा कर जिस प्रकार तालिबान ने अपनी सत्ता स्थापित की है, वह अमेरिका के वैश्विक हित में खड़ा होने के दावे को चकनाचूर करती है।
मालूम हो, अमेरिका ने वियतनाम युद्ध में भी ऐसा ही प्रदर्शन किया था। पूर्वी एशियाई इस देश में अमेरिका ने कम्युनिज्म को खत्म करने के लिए जंग का ऐलान किया था, लेकिन फिर हालात उस पर भारी पडऩे लगे, तब अमेरिका ने अपने कदम पीछे खींच लिए थे। अब अफगानिस्तान में यही तस्वीर फिर दिख पड़ रही है। दो दशक तक अफगानिस्तान की रेत में तालिबान से जंग लड़ते रहे अमेरिका को अपना फैसला भारी पड़ सकता है। मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने निर्वाचन के लिए जनता के समक्ष अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी का ऐलान किया था और चुनाव जीतने के बाद उन्होंने इस वादे को पूरा किया।
मालूम हो, अमेरिका ने वियतनाम युद्ध में भी ऐसा ही प्रदर्शन किया था। पूर्वी एशियाई इस देश में अमेरिका ने कम्युनिज्म को खत्म करने के लिए जंग का ऐलान किया था, लेकिन फिर हालात उस पर भारी पडऩे लगे, तब अमेरिका ने अपने कदम पीछे खींच लिए थे। अब अफगानिस्तान में यही तस्वीर फिर दिख पड़ रही है। दो दशक तक अफगानिस्तान की रेत में तालिबान से जंग लड़ते रहे अमेरिका को अपना फैसला भारी पड़ सकता है।
वियतनाम युद्ध में अमेरिका के लिए ऐसे हालात बने थे कि उसे अपने राजनयिकों को देश से बाहर निकालने के लिए साइगॉन में अपने दूतावास के ऊपर हेलीकॉप्टर उतारने पड़े थे, अब अफगानिस्तान में भी ऐसा ही हो रहा है, यहां भी अपने राजनयिकों को बाहर निकालने के लिए अमेरिका ने तीन हजार के करीब सैनिकों को बगराम हवाई अड्डे पर तैनात किया है। इसे ताकत का गुरूर ही कहा जाएगा कि अमेरिका हमेशा से दूसरे देशों के मामलों में अपनी टांग अड़ाता आया है, लेकिन जैसे ही उस पर बनती है, वह अपने भाग खड़ा होता है। वियतनाम में कम्युनिस्ट शासन को खत्म करने की चाह में शक्ति और धन का प्रयोग करने वाले अमेरिका को अब अफगानिस्तान में तालिबान ने धूल चटा दी है। यह तब है, जब तालिबान की मौजूदगी किसी भी प्रकार से न अफगानिस्तान के लिए सही है और ही दुनिया के लिए।
गौरतलब है कि मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बेहद कट्टर प्रतिद्वंदी और रिपब्लिकन सीनेटर मिच मैककोनेल सहित कई अमेरिकी सांसदों ने अफगानिस्तान में सैनिकों की वापस की तुलना वियतनाम युद्ध के आखिर में वर्ष 1975 में साइगॉन से दबे पांव वापसी से की है। मिच मैककोनेल ने कहा कि हमारे दूतावास से कर्मचारियों की कटौती और सैनिकों की जल्दबाजी में वापसी काबुल में पतन की तैयारी की तरह लगती है। मालूम हो, रिपब्लिकन पार्टी के हाउस रिप्रजेंटेटिव और हाउस आम्र्ड सर्विसेज कमेटी के सदस्य माइक रोजर्स ने भी बीते दिनों एक बयान में मौजूदा घटनाक्रम को राष्ट्रपति बाइडेन का साइगॉन मोमेंट करार दिया था।
29 अप्रैल 1975 की वह घटना जब अमेरिकी राजनयिक कर्मचारियों को अमेरिकी दूतावास की छत से हेलीकॉप्टरों के माध्यम से निकाला गया को अमेरिकी नापसंद करते हैं। वियतनाम युद्ध 1955 से लेकर 1975 तक लड़ा गया था। इस दौरान अमेरिका ने अपने सहयोगी दक्षिणी वियतनाम को उत्तरी वियतनाम की कम्युनिस्ट सरकार से बचाने के लिए अपनी सेना भेजी थी। उस समय उत्तरी वियतनाम की कम्युनिस्ट सरकार को रूस का साथ हासिल था। इस युद्ध के दौरान अमेरिका ने दो राष्ट्रपति देखे।