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रूस, यूक्रेन में युद्ध से क्या बाकी दुनिया खुद को दूर रख पाएगी

अमेरिका का यूक्रेन को समर्थन यूक्रेन के लोगों को आश्वस्त करता होगा, लेकिन जिस प्रकार से रूस और अमेरिका आमने-सामने आ गए हैं, वह वैश्विक शांति के लिए सही नहीं है

14 फ़रवरी, 2022 12:54 AM
आज के समय में युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं रह गया है। फाेटो पिक्साबे

इसहफ्ते न्यूज

war in Russia, Ukraine : दुनिया के दो देशों के बीच अगर युद्ध होता है तो क्या बाकी दुनिया के देश इससे खुद को अलग रख पाएंगे? यह इतिहास है कि जब भी देशों के बीच संघर्ष होता है तो इससे पूरी दुनिया अशांत होती है। शेयर बाजार धड़ाम हो जाते हैं, पेट्रो केमिकल के दाम बढ़ जाते हैं, खाद्यान्न महंगा हो जाता है और तमाम ऐसी वस्तुएं जिनका आयात-निर्यात होता है, का संकट पैदा हो जाता है। रूस और यूक्रेन के बीच जारी शीतयुद्ध कब युद्ध में बदल जाए, कोई नहीं जानता। अमेरिका का यूक्रेन को समर्थन यूक्रेन के लोगों को आश्वस्त करता होगा, लेकिन जिस प्रकार से रूस और अमेरिका आमने-सामने आ गए हैं, वह वैश्विक शांति के लिए सही नहीं है।

आजकल पूरी दुनिया में संघर्ष जारी है, घोषित और अघोषित रूप से देशों के बीच टकराव हो रहे हैं। यूक्रेन के हालात ऐसे ही हैं, जैसे भारत और चीन के। हालांकि भारत, यूक्रेन नहीं है और भारत से टकराना आज की तारीख में चीन और पाकिस्तान जैसे देशों के लिए बेहद आत्मघाती है। बावजूद इसके चीन की ओर से भारत के समक्ष ऐसी ही चुनौतियां कायम की जा रही हैं। चीन अपने पड़ोसी ताइवान के लिए जहां मुश्किलें कायम किए हुए है, वहीं अन्य छोटे देशों के लिए भी उसकी ओर से अड़चन पैदा की जा रही हैं। चीन खुद को ताकतवर देश समझता है और अपने मुताबिक एशिया महाद्वीप पर शासन का इच्छुक है, हालांकि भारत जैसे लोकतांत्रिक और विकसित होती अर्थव्यवस्था वाले देश की मौजूदगी उसे जहां का तहां थामे है।


  • यूक्रेन सोवियत गणराज्य से अलग हुआ एक स्वतंत्र देश है, जिसने अब रूस से सरोकार खत्म करके यूरोपीय देशों के साथ संबंध कायम कर लिए हैं। अमेरिका का उसे सहयोग रूस को खल रहा है। रूस इस बात से परेशान है कि अमेरिका, यूके्रन के बहाने उसके बेहद नजदीक पहुंच रहा है। शीतयुद्ध के समय जब पूरी दुनिया दो ध्रुवी थी, उसके बाद अब ऐसा हो रहा है, जब अमेरिका और रूस साफ तौर पर एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच बातचीत भी हुई है। इस दौरान बाइडन ने पुतिन से यूक्रेन की सीमा पर अपने सैनिकों को हटाने के लिए कहा है, वहीं यह चुनौती भी दी है कि अगर यूके्रन पर हमला होता है तो अमेरिका इसका जवाब देने को तैयार है।

 

  • यह अच्छी बात है कि दोनों देश अब भी बातचीत का दौर कायम रखे हुए हैं। आज के समय में युद्ध किसी समस्या का समाधान नहीं रह गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति का यह कहना कि यूक्रेन पर आक्रमण का अंजाम व्यापक मानवीय पीड़ा के रूप में सामने आएगा और इससे रूस की छवि भी धूमिल होगी, सच है। इसका अहसास रूस के राष्ट्रपति और उनके रणनीतिकारों को भी होगा, लेकिन वर्चस्ववादी और विस्तारवाद की भूख एक देश के मुखिया को आक्रामक होने पर मजबूर कर रही है। इस बीच अमेरिका की इस मामले में मौजूदगी इसका परिचायक है कि वह अफगानिस्तान में तालिबान के खिलाफ अपने मिशन की विफलता से घटी प्रतिष्ठा को और कम नहीं होने देना चाहता, क्योंकि इस समय उसने पैर पीछे खींचे तो दुनिया की सरदारी का उसका ताज हमेशा के लिए छिन जाएगा और रूस बढ़त हासिल कर लेगा।

 


हालांकि भारी सैन्य जमावड़े के बावजूद रूस इस बात से इनकार कर रहा है कि वह यूक्रेन पर आक्रमण करने वाला है। रणनीतिक रूप से यह रूस की चाल हो सकती है, यही वजह है कि व्हाइट हाउस कह रहा है कि वह रूस के राष्ट्रपति के फैसलों और इरादों को लेकर अटकलें नहीं लगा सकते। हम हर परिस्थिति के लिए तैयार हैं। अगर वह कूटनीति का रास्ता अपनाना चाहते हैं तो हम उनके साथ हैं। अगर वह आगे बढऩा चाहते हैं तो हम निर्णायक रूप से जवाब देने के लिए अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम करेंगे। मालूम हो, रूस की 1 लाख से ज्यादा सेना ने यूके्रन की तीन तरफ से घेरेबंदी पूरी कर ली है।

रूसी नौसेना ने अपने महाविनाशक युद्धपोतों को यूक्रेन के पास काला सागर में तैनात कर दिया है। इसके बाद यूक्रेन में रह रहे अमेरिकी नागरिकों से राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपील की कि वे तत्काल यूक्रेन छोड़ दें।

यूक्रेन संकट के समय भारत की भूमिका क्या रहेगी, यह केंद्र सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। रूस रणनीतिक रूप से भारत का सहयोगी देश है और उसके साथ भारत के संबंध हमेशा एक दोस्त के रहे हैं। रूस के संबंध चीन के साथ भी हैं, वहीं चीन, भारत के लिए चुनौतीपूर्ण है। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के साथ जो तनातनी जारी है, उसके संबंध में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने क्वाड की बैठक में कहा कि चीन की ओर से समझौते तोड़ने की वजह से हालात बिगड़े।

 

अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया ने रणनीतिक साझेदारी के रूप में इस संगठन को स्थापित किया है। हालांकि चीन की ओर से कहा गया है कि उसे रोकने के लिए यह संगठन बनाया गया है। बेशक, बदलते वैश्विक परिदृश्य में ऐसे संगठन की ताकत का अहसास इसी बात से हो जाता है कि क्वाड के देश चीन की बढ़ती ताकत से परेशान हैं और उसे नियंत्रित करने के लिए एक मंच पर आए हैं। दक्षिण एशिया में भारत समेत ऑस्ट्रेलिया, जापान के लिए चीन से भारी खतरा है। चीन अपनी विस्तारवादी सोच से छोटे देशों को परेशान कर रहा है, ऐसे में उसका मुकाबला जरूरी है। यूक्रेन को अपनी मौलिकता बनाए रखने का अधिकार है, ऐसे में भारत की सहानुभूति उसके साथ होनी चाहिए। इस मामले में व्यापक सोच के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है।

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