इसहफ्ते न्यूज. चंडीगढ़
केंद्र सरकार ने संसद में यह स्वीकार किया है कि ऑक्सीजन की कमी से किसी कोरोना संक्रमित की मौत नहीं हुई है। हालांकि सरकार का दावा है कि राज्यों से जो रिपोर्ट हासिल हुई, उसी के आधार पर उसने यह बात कही है। केंद्र सरकार के इस बयान पर देशभर में भारी बवाल हुआ है, अप्रैल, मई के उन महीनों को कैसे भूला जा सकता है, जब अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों के लिए बिस्तर उपलब्ध नहीं थे और ऑक्सीजन की भारी किल्लत थी।
संक्रमण प्रभावित राज्यों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली, चंडीगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार और तमाम राज्यों में हालात ऐसे हो गए थे कि ऑक्सीजन सिलेंडरों की काला बाजारी हो रही थी। आखिर फिर कोई कोई कैसे मना कर सकती है कि उसके यहां ऑक्सीजन की कमी से किसी संक्रमित की मौत नहीं हुई। बेशक, अनेक कोरोना संक्रमितों की मौत में विभिन्न कारणों का हाथ रहा, लेकिन अनेक ऐसे भी मरीज रहे हैं, जिन्हें ऑक्सीजन की किल्लत का सामना करना पड़ा। अब हरियाणा विधानसभा के मॉनसून सत्र के दौरान भी संसद जैसा घटनाक्रम ही सामने आया है।
राज्य सरकार ने विधानसभा में कहा कि ऑक्सीजन की कमी से राज्य में किसी भी संक्रमित की मौत नहीं हुई। जाहिर है, यह अत्यंत संवेदनशील मुद्दा है और विपक्ष के नेता एवं पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इसे उठा कर उचित ही किया है। हरियाणा में कोरोना से निपटने की तैयारी और प्रबंध समय के साथ सुधरते गए हैं, लेकिन राज्य में भी अस्पतालों में बिस्तरों की कमी रही है और ऑक्सीजन की किल्लत भी सामने आई है। निजी अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से अनेक संक्रमितों की मौत हुई है, ऐसे में मुख्यमंत्री मनोहर लाल की ओर से रिपोर्ट के आधार पर यह दावा करना कि ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई, सही नहीं है।
हुड्डा ने इस मामले को उठाते हुए कहा था कि सीएम का दावा है कि राज्य में ऑक्सीजन की कमी से एक भी मौत नहीं हुई। हालांकि हुड्डा ने दावा किया कि रेवाड़ी, गुरुग्राम और हिसार में अनेक मौतें ऑक्सीजन की कमी से हुई हैं। हालांकि मुख्यमंत्री ने रिपोर्ट के हवाले से माना कि हिसार में अस्पताल प्रशासन की लापरवाही की वजह से मौतें हुई हैं। ऑक्सीजन की उपलब्धता सरकार की जिम्मेदारी थी, लेकिन समय रहते उसने इसका अंदाजा तक नहीं लगाया कि कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ सकती है। जिस समय हालात बेकाबू होने लगे, तब केंद्र सरकार से मांग की गई। वैसे, कमोबेश यही स्थिति दूसरे राज्यों में भी देखने को मिली है।
दिल्ली सरकार के संबंध में तो सामने आया है कि यहां जरूरत से कहीं ज्यादा ऑक्सीजन मांगी गई, इसकी वजह यह रही कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार चाहती थी कि किसी भी हालत में उसके यहां संक्रमित मरीजों का मामला न बिगड़े, ताकि उस पर कोई आंच न आए। हालांकि सरप्लस हुई ऑक्सीजन अगर दूसरे राज्यों को उपलब्ध करा दी जाती तो क्या वहां मरीजों की जान नहीं बच सकती थी। बहरहाल, हरियाणा सरकार ने विपक्ष के दबाव में अपने यहां ऑक्सीजन की कमी से मौतें हुई या नहीं, कि उच्च स्तरीय कमेटी से जांच कराने का भरोसा दिलाया है। गौर इस पर भी होना चाहिए कि नेता विपक्ष हुड्डा ने कहा है कि वैश्विक महामारी के लिए सरकार को दोषी नहीं ठहराया जा रहा है, लेकिन सरकार के इंतजाम और ऑक्सीजन एवं अन्य दवाओं की उपलब्धता पर तो प्रश्न उठाए ही जा सकते हैं।
कोरोना संक्रमण के दौरान मरीजों को दवाओं से ज्यादा मेडिकल ऑक्सीजन की जरूरत हुई है। हिसार से अनेक ऐसे मामले मीडिया में सामने आए हैं कि किस प्रकार अस्पताल प्रबंधन इसका भरोसा दिलाता रहा कि ऑक्सीजन है, वहीं मरीज के तिमारदार इधर-उधर हुए तो कुछ देर में मरीज की मौत होना घोषित कर दिया गया। यह भी दर्दनाक रहा है कि निजी अस्पतालों में इलाज के नाम पर लाखों रुपये रोजाना मरीजों के तिमारदारों से बटोरे गए। अब विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता के संज्ञान लेने के बाद पंचकूला में ऐसे निजी अस्पतालों पर कार्रवाई की गई है और उनसे अतिरिक्त रकम वापस दिलाई गई है। वास्तव में राज्य सरकार को अपने सरकारी और निजी अस्पताल प्रबंधन से इसकी समुचित रिपोर्ट हासिल करनी ही चाहिए कि क्या वास्तव में ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत नहीं हुई।
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा था कि वह कोरोना संक्रमण से मारे गए लोगों के परिवारों को मुआवजा नहीं दे सकती, हालांकि बाद में सर्वोच्च न्यायालय के दबाव में उसने यह मुआवजा देना स्वीकार किया है, लेकिन मुआवजे की रकम राज्य सरकारें खुद तय करेंगी। वास्तव में कोरोना महामारी के होने पर सवाल नहीं पूछे जाएंगे, क्योंकि यह तो वैश्विक समस्या है, लेकिन इससे निपटने के सरकारी तौर-तरीकों पर जरूर सवाल खड़े होंगे। चुनाव के वक्त विपक्ष उन कोताही को मुद्दा बनाएगा, जोकि सरकार के स्तर पर रह गई। ऐसे में सरकार अगर विधानसभा में यह स्वीकार कर रही है कि ऑक्सीजन की कमी से मौत नहीं हुई तो उसे इस दावे की पुष्टि के लिए फिर से प्रभावी तरीके से अपने अधिकारियों से जवाबतलबी करनी चाहिए।
लोकतंत्र में सरकार का दायित्व लोक कल्याणकारी होना होता है, लेकिन अब सत्ताधारी राजनीतिक दल के लिए सरकार खुद को हमेशा सत्ता में बनाए रखने का जरिया हो गया है। यही वजह है कि वह देश को चलाने का दावा करता है, लेकिन कोरोना जैसी महामारी के वक्त अपने हाथ झाड़ कर खड़ा हो जाता है। वह जनता को उसके हाल पर छोड़ देता है, कोरोना काल में इंसान की हकीकत सामने आ चुकी है, हालांकि सरकारों की कलई भी खुल गई है।
अभी तक कोई ऐसी महामारी नहीं आई थी, जिसमें सरकारों के पसीने छूट जाएं, कोरोना संक्रमण से उन्हें यह सबक लेना चाहिए कि जिस जनता के बूते वे सत्ता में सुशोभित होते हैं, उसके दुख दर्द को दूर करना सरकार का ही दायित्व है। हालांकि बहुत बार लगता है, जैसे जनता को अपने लिए सुविधा और सहूलियत मांगने का अधिकार नहीं है, वह अस्पतालों में बगैर दवा, बगैर बिस्तर, बगैर ऑक्सीजन मरती रहे, लेकिन राज्य और केंद्र सरकार अपने रिकॉर्ड में इसका जिक्र कभी नहीं रखेंगी ताकि उनका भविष्य बेदाग रहे और इतिहास में कभी उन पर सवाल न उठने पाएं।