हरियाणा

372 आईओ सस्पेंड कर गृहमंत्री विज ने दिया संदेश- उन्हें यूं ही नहीं कहा जाता सियासत का गब्बर

हरियाणा के इतिहास में पहली बार ऐसी कार्रवाई, जिसने सरकार के समक्ष भी खड़ी की मुश्किल। मुख्यमंत्री मनोहर लाल हाल ही में कर चुके हैं हरियाणा पुलिस की प्रशंसा, क्या विज खफा तो नहीं?

24 अक्टूबर, 2023 02:11 PM
Home minister Anil vij.

इसहफ्ते न्यूज/चंडीगढ़ 

Haryana Home minister Anil vij suspend 372 IO in police:  हरियाणा में गृहमंत्री अनिल विज का यह फरमान ऐतिहासिक और देश की शासन व्यवस्था में नायाब उदाहरण है कि एक वर्ष से लंबित मामले नहीं निपटाने वाले 13 जिलों के 372 पुलिस जांच अधिकारियों को सस्पेंड करने के उन्होंने आदेश जारी किए हैं। किसी भी राज्य में अभी तक ऐसा नहीं हुआ है। दशहरे के पर्व पर उन्होंने जैसे बुराई के अंत के लिए अपने तुणीर से एक बाण चल दिया है।

गृहमंत्री विज की है दबंग छवि

गृहमंत्री अनिल विज की दबंग छवि है। वे हरियाणा की राजनीति के वर्तमान समय के ऐसे पुरोधा हैं, जिनके नाम और जिनके काम पर संपूर्ण भरोसा किया जा सकता है, यही वजह है कि उन थानों, एसपी के कार्यालयों में लाइन लगाने से ज्यादा बेहतर लोग विज के अम्बाला स्थित आवास के बाहर पंक्तिबद्ध होना पसंद करते हैं, क्योंकि उनके दरबार में शिकायत पहुंचने का मतलब ही यह हो जाता है कि अब कोई भी उस शिकायत की अनदेखी नहीं कर सकता।

 

अपराधियों से होती है साठगांठ

यह वास्तव में बहुत बड़ी बुराई है कि पुलिस के पास शिकायत होती है, लेकिन उस पर केस दर्ज नहीं किया जाता, क्योंकि अपराधियों की पुलिस से साठगांठ होती है। अगर किसी तरह से केस दर्ज हो भी जाए तो उस पर कार्रवाई नहीं की जाती, क्योंकि तब फिर अपराधी अपना प्रभाव दिखाते हैं और पुलिस उनकी जेब में पनाह ले चुकी होती है। अगर यह जनता की मंशा है कि राज्य के गृहमंत्री उन पुलिस अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई करें जोकि किसी मामले की फाइलों को साल या उससे ज्यादा समय तक दबा कर बैठे हैं, उस पर कार्रवाई नहीं कर रहे तो यह जनता को न्याय दिलाने की दिशा में प्रभावी कदम है।

 

 

विज अपने दरबार से करते हैं अधिकारियों से जवाबतलबी

विज उसी दरबार के दौरान जिलों में एसपी को फोन करके उनसे जवाबतलबी करते हैं, थाना अधिकारियों पर कार्रवाई के आदेश देते हैं। यह उनकी कार्यप्रणाली है कि वे यह नहीं कहते कि हो जाएगा, चिंता मत करो। हम करवा देंगे आदि। वे सीधे संबंधित पुलिस अधिकारी से पूछते हैं कि अभी तक क्यों नहीं हुआ। उनके इसी अंदाज की जनता दीवानी है। पूरे प्रदेश से उनके पास लोग इसी उम्मीद में आते हैं। उनका यह कहना जांच अधिकारियों के निलंबन का सच जाहिर करता है कि लोग न्याय के लिए धक्के खा रहे हैं, उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते।

 

एक माह पहले मांगा था स्पष्टीकरण 

बताया गया है कि गृहमंत्री की ओर से बीते माह इसके आदेश दिए गए थे कि उन सभी जांच अधिकारियों (आईओ) से स्पष्टीकरण मांगा जाए, जिन्होंने एक वर्ष से उनके पास दर्ज एफआईआर का निपटारा नहीं किया है। यह सभी के लिए चौंकाने वाली बात है कि ऐसे मामलों की संख्या 3229 से ज्यादा है। बेशक, संभव है अनेक ऐसे मामले भी हों, जिनकी जांच और जिनके निपटान में समय लग रहा है, लेकिन ऐसे भी बहुत से मामले होंगे, जिन्हें बहुत पहले और आसानी से निपटाया जा सकता था।

 

हरियाणा पुलिस में बढ़े हैं जवान, अधिकारी

देश के किसी भी राज्य की पुलिस की कार्यप्रणाली छिपी नहीं है, हरियाणा में बीते कुछ समय के दौरान पुलिस कर्मचारियों की संख्या में इजाफा हुआ है। इसके बावजूद थानों में आई शिकायतों का निपटारा समय पर नहीं हो पाता। कहा जाता है कि थानों में अगर शिकायतें कम आएं तो समझो कि अपराध कम हो गया है। हालांकि हकीकत यह होती है कि अपराध कभी कम नहीं होता, केवल उसको दर्ज करने के आंकड़े कम या ज्यादा हो चुके होते हैं। हरियाणा में कानून और व्यवस्था की स्थिति दूसरे राज्यों की तुलना में ठीक है, लेकिन सरकार को यह समझना चाहिए कि जनता सिर्फ इससे संतुष्ट नहीं हो सकती। गृहमंत्री अनिल विज हर थाने में खुद मौजूद नहीं हो सकते, न ही उनसे हर कोई संपर्क साध सकता है। तब यह जरूरी है कि बगैर किसी आदेश के स्वाभाविक रूप से थानों में काम हो। शिकायतकर्ता की शिकायत ली जाए, उस पर जांच हो और अपराधी को अदालत के कठघरे में पहुंचाया जाए ताकि आगे की कार्रवाई हो सके।

 

बढ़ते अपराध हर सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण

वास्तव में यह प्रत्येक सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है कि अपराध बढ़ रहे हैं और उस गणना में पुलिस कर्मचारियों की तादाद नहीं है। हरियाणा में 20 हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं, मामलों के निपटान में होने वाली देर इस वजह से हो सकती है। लेकिन यह फिर भी गौण मामला है, सबसे ज्यादा जरूरी अपराध की रोकथाम के लिए प्रतिबद्ध होने की है। पुलिस प्रणाली की सजगता किसी इलाके में अपराध रोक सकती है। ऐसे में यह मामला व्यवहारिक होना चाहिए। इस पर किसी तरह की राजनीति की गुंजाइश नहीं है।

 

पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों को यह समझना होगा कि अगर पुलिस की नौकरी में वे आए हैं तो उनका ध्येय जनता को सुरक्षा प्रदान करना और उन्हें न्याय दिलाना है। लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है, जनता की अनदेखी नहीं की जा सकती। सुशासन तभी कायम होगा, जब जनता संतुष्ट होगी।

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