इसहफ्ते न्यूज. चंडीगढ़
मुख्यमंत्री मनोहर लाल यह कहने से भी नहीं चूके कि शुरू में जब शादी होती है तो कुछ दिन एक दूसरे को समझने में लग जाते हैं, जजपा के साथ जब भाजपा का गठबंधन हुआ तो यही दिक्कत सामने आई थी। हालांकि अब हम जजपा वालों को और जजपा वाले हमें अच्छी तरह समझ गए हैं।
हरियाणा में साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव की 24 अक्तूबर को जब सुबह मतगणना शुरू हुई तो पूरा प्रदेश और देश लगभग यह मान कर बैठा था कि भाजपा की मनोहर सरकार को फिर से अगले पांच साल के लिए जनमत मिलने ही जा रहा है। हालांकि दोपहर होते-होते भाजपा जहां 40 सीटों पर ठहर गई वहीं कांग्रेस ने 31 सीटों पर बाजी मार ली थी लेकिन इस बीच सबसे ज्यादा चौंकाने वाली अगर कोई बात थी तो यह कि कुछ दिन पहले ही गठित की गई जजपा ने कीमती 10 सीटें जीत ली थी। यह पार्टी के लिए ऐतिहासिक क्षण थे। हालांकि इससे पहले इनेलो से अलग होकर गठित की गई जननायक जनता पार्टी यानी जजपा को स्थापित करने वाले युवा दुष्यंत चौटाला का संघर्ष सभी ने देखा था। जींद में पार्टी समर्थकों की उस अपार भीड़ से जब दुष्यंत चौटाला साथ चलने की गुहार लगा रहे थे तो प्रदेश के राजनीतिक तबकों में कुलबुलाहट थी, लेकिन किसी को यकीन नहीं था कि दुष्यंत चौटाला ही प्रदेश के अगले उपमुख्यमंत्री बनेंगे। उनकी पार्टी ने दस विधानसभा सीटें जीत कर पहली बार में ऐसा कीर्तिमान बना दिया था, जोकि अविस्मरणीय है।
भाजपा ने दिया था 75 पार का लक्ष्य
भाजपा जिसने 75 पार सीटों का लक्ष्य अपने लिए रखा था, इस चुनाव में महज 40 सीटों पर सिमट गई थी। पिछली बार की तुलना में पार्टी को 7 सीटों का नुकसान हुआ था। ऐसा क्यों हुआ, इसकी तमाम वजह हैं, पार्टी का ओवर कॉन्फिडेंस जहां उस पर भारी पड़ा वहीं उसके मंत्रियों की जनता से दूरी ने भी प्रदर्शन पर असर दिखाया। इसके अलावा नई पार्टी जजपा के गठन से भी मतदाता को एक नया विकल्प हासिल हुआ। खैर, यह भी खूब था कि उस समय मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने प्रचार के दौरान दुष्यंत को बेहद हल्के अंदाज में लिया था। हिसार से इनेलो के सांसद के तौर पर दुष्यंत चौटाला जब तब भाजपा सरकार की नाक में दम किए रहते थे। उस समय भी स्वास्थ्य मंत्री का पदभार संभाल रहे अनिल विज के साथ दुष्यंत की तकरार जगजाहिर हो गई थी। हालांकि समय, संघर्ष और साहस की बुनावट देखिए कि आज वही युवा मुख्यमंत्री मनोहर लाल के कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। अब जजपा का शानदार भविष्य सामने है और भाजपा को उसके साथ चलने के लिए विवश होना पड़ रहा है।
राजनीति है अनंत संभावनाओं का मंच
दरअसल, राजनीति अनंत संभावनाओं का मंच है, यहां जो साहस के साथ आगे कदम बढ़ाता है, और जनता की आकांक्षाओं को ईमानदारी के चश्मे से पढ़ पाता है, वह कामयाबी हासिल करता ही है। पिछले दिनों मीडिया कर्मियों ने जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से भाजपा-जजपा के अगले तीन साल में गठबंधन पर टिप्पणी मांगी तो उन्होंने इससे इनकार किया था। हालांकि उन्होंने यह जरूर कहा कि देवीलाल परिवार के साथ गठबंधन के पुराने अनुभवों का भाजपा को लाभ मिलेगा। कृषि कानूनों के विरोध के दौरान किसान संगठनों, विपक्षी राजनीतिक दलों ने जजपा से भाजपा से गठबंधन तोड़ कर अलग होने को कहा था। इसका मकसद सरकार को अस्थिर करने का था, हालांकि जजपा की ओर से उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने बेहद मजबूती से कहा था कि इसकी कोई जरूरत नहीं है, अगर कृषि कानून वास्तव में अनुचित हुए तो वे खुद इस्तीफा देकर बाहर आ जाएंगे।
गठबंधन को सहेजे हैं दोनों नेता
अब मुख्यमंत्री मनोहर लाल जहां इस गठबंधन को सहेजे हुए हैं, वहीं उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी लंबी पारी खेलने के इच्छुक हैं। यही वजह है कि हरियाणा की सियासत को संभालने के साथ ही वे दिल्ली दरबार में भाजपा के नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों से भी मिलना नहीं भूल रहे हैं। वहीं मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी मानते हैं कि हरियाणा में भाजपा-जजपा की राजनीतिक दोस्ती भविष्य में भी बरकरार रहेगी। जजपा खुद को पूर्व उपप्रधानमंत्री एवं इनेलो संस्थापक ताऊ देवीलाल जोकि दुष्यंत चौटाला के पड़दादा हैं, का असली वारिस मानती है।
ऐसे में मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी चौधरी देवीलाल और उनके परिवार के भाजपा के साथ रिश्तों की दुहाई दे रहे हैं। जनसंघ के समय से ही देवीलाल के साथ भाजपा नेताओं का संपर्क रहा है। बेशक, ओमप्रकाश चौटाला का मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने नाम नहीं लिया लेकिन यह जरूर कहा कि चौटाला परिवार के साथ भाजपा का कई बार सत्ता में साथ रहा है। वे यह कहने से भी नहीं चूके कि शुरू में जब शादी होती है तो कुछ दिन एक दूसरे को समझने में लग जाते हैं, जजपा के साथ जब भाजपा का गठबंधन हुआ तो यही दिक्कत सामने आई थी। हालांकि अब हम जजपा वालों को और जजपा वाले हमें अच्छी तरह समझ गए हैं।
मुख्यमंत्री के इस कथन में यह भाव छिपा है कि दुष्यंत चौटाला विकासपरक सोच के युवा हैं और वे यह बेहतर तरीके से समझते हैं कि प्रदेश में अगर अपने राजनीतिक संगठन को मजबूत बनाना है तो ऐसा विकासपरक योजनाओं और सोच से ही होगा। यही वजह है कि अपने राजनीतिक एजेंडे निजी क्षेत्र की नौकरियों में हरियाणा के युवाओं को 75 फीसदी आरक्षण दिलाने के लिए उन्होंने जी-जान लगा दी थी। सरकार के इस कदम की देश में आलोचना भी हुई है, लेकिन अपने वादे को पूरा करके दुष्यंत चौटाला ने भविष्य की राह आसान बना ली है। यही वादा भाजपा ने भी किया था, ऐसे में दोनों पार्टियों की सोच ने इस कानून को अमलीजामा पहना दिया।
ऐलनाबाद उपचुनाव में होगी फिर परीक्षा
एक स्थिर सरकार प्रदेश और देश का भविष्य उज्जवल कर सकती है। मनोहर-दुष्यंत की यह जोड़ी जहां अपनी पारी पूरी करने की चाह रखती है, वहीं अगले तीन साल बाद पूरे दम-खम से फिर चुनाव के मैदान में उतरने को अभी से तैयार दिखती है। हालांकि बरोदा उपचुनाव में गठबंधन को कांग्रेस के हाथों मात खानी पड़ी थी और अब ऐलनाबाद उपचुनाव जहां उनका मुकाबला इनेलो के दिग्गज ओमप्रकाश चौटाला से संभव है, को मनोहर-दुष्यंत की टीम को अपना हुनर दिखाना होगा। यह इलाका एक समय इनेलो का गढ़ था, लेकिन अब यहां जजपा भी अपने कदम जमा चुकी है, ऐसे भी संकेत हैं कि भाजपा यह सीट जजपा को देने को तैयार है। ऐसे में यह मुकाबला जजपा और इनेलो के बीच भी संभव है, लेकिन रेफरी भाजपा यानी मुख्यमंत्री मनोहर लाल ही रहेंगे।