हरियाणा

क्या इनेलो फिर से खुद को सत्ता के गलियारों तक पहुंचा पाएगी

इनेलो के दोफाड़ होने के बाद से पार्टी के समक्ष अनेक चुनौतियां रही हैं

26 अगस्त, 2021 09:43 PM

इसहफ्ते न्यूज. चंडीगढ़


हरियाणा में इस समय इनेलो हाशिए की पार्टी बन गई है। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने जिस उम्मीद और हौसले के साथ चुनाव लड़ा था, वह परिणाम आने पर हताशा में बदल गया। पार्टी ने एकमात्र सीट जीती थी, वह भी अपने प्रभाव क्षेत्र वाले ऐलनाबाद हलके से। पार्टी के प्रधान महासचिव अभय चौटाला ने इस सीट को जीतकर इनेलो की साख को बनाए रखा। हालांकि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के समर्थन में अभय चौटाला ने अपने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के जरिए उन्होंने यह संदेश दिया कि किसानों के हित में इनेलो किसी भी हद तक जा सकती है। बेशक, इसमें इनेलो की खुद को सक्रिय राजनीति में बनाए रखने की जद्दोजहद नजर आती है। लेकिन सवाल यही पूछा जा रहा है कि क्या इनेलो फिर से खुद को सत्ता के गलियारों तक पहुंच पाएगी?

पार्टी के समक्ष अनेक चुनौतियां

इनेलो के दोफाड़ होने के बाद से पार्टी के समक्ष अनेक चुनौतियां रही हैं। इनमें से एक यह भी थी कि पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला भर्ती घोटाले में सजा काट रहे थे। हालांकि अब वे बाहर आ चुके हैं। उनके आने से पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह है और वे फिर से एकजुट होने लगे हैं। ओमप्रकाश चौटाला जगह-जगह जाकर पार्टी कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं, इस दौरान वे इनेलो के फिर से सत्ता में आने का दावा भी कर रहे हैं। उनकी मौजूदगी बेशक कार्यकर्ताओं में उम्मीद भरती है, लेकिन वयोवृद्ध हो चुके पार्टी सुप्रीमो अपने प्रयास में कितना सफल हो पाएंगे, इसका अंदाजा ऐलनाबाद उपचुनाव के दौरान हो जाएगा।

बरोदा उपचुनाव के वक्त भी ओमप्रकाश चौटाला पैरोल पर आकर हलके में बस में बैठे-बैठे प्रचार करते थे, हालांकि इनेलो उम्मीदवार को इस चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा था। इनेलो को एक अनुशासित पार्टी माना जाता रहा है, जजपा के गठन के बाद से इनेलो की आभा समाप्त प्राय: हो चुकी है, ऐसे में इनेलो सुप्रीमो की ओर न केवल उनकी पार्टी के कार्यकर्ता और पदाधिकारी टकटकी लगाए हुए हैं, अपितु सत्ताधारी भाजपा-जजपा और विपक्ष में बैठी कांग्रेस भी उन पर नजर बनाए हुए है।

तो ओम प्रकाश चौटाला ही उतरेंगे मैदान में

ओमप्रकाश चौटाला ने पार्टी को फिर से खड़ा करने की कवायद किसानों से शुरू की है। वे दिल्ली बॉर्डर पर बैठे किसान आंदोलनकारियों को समर्थन देने के लिए खुद वहां जा चुके हैं। उन्होंने भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत से भी मुलाकात की है। हालांकि जींद में किसानों के बीच चौटाला पहुंचे थे, तो यह मामला विवादित हो गया था। इसी जींद के उचानाकलां से जजपा नेता एवं उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला विधायक हैं।

क्या यह समझा जाना चाहिए कि जींद, सिरसा, हिसार के इलाके में जहां कभी इनेलो का वर्चस्व रहा है, अब जजपा अपना झंडा गाड़ चुकी है। छह महीने के अंदर ऐलनाबाद में भी उपचुनाव होना है, अभी इसकी घोषणा नहीं हुई है। अभय चौटाला घोषणा कर चुके हैं कि अगर चुनाव आयोग से हरी झंडी मिलती है, तो उनके पिता (ओम प्रकाश चौटाला) ही मैदान में उतरेंगे। ऐलनाबाद इनेलो का गढ़ रहा है। हालांकि इस बार जजपा का उदय भी हो चुका है, जोकि खुद को किसानों के मसीहा चौधरी देवीलाल की सोच का असली संवाहक बता रही है। ऐसे में हलके की जनता को एक नया विकल्प हासिल हो चुका है। भाजपा ने इस सीट को अपने गठबंधन सहयोगी को देने की पहले ही घोषणा की हुई है। हालांकि आखिरी वक्त तक कुछ भी परिवर्तित हो सकता है, लेकिन यह तय है कि इस सीट पर मुकाबला बेहद कड़ा रहने वाला है।

2019 में इनेलो को मिले थे केवल 2.44 फीसदी वोट


आजकल यह प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या इनेलो विधानसभा में फिर से खुद को दहाई के आंकड़े तक पहुंचा पाएगी। पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने राज्य की 90 में से 81 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन केवल ऐलनाबाद से अभय चौटाला को ही जीत मिली। पार्टी प्रत्याशी बहुसंख्यक सीटों पर कहीं मुकाबले में नहीं रहे और मतों का फीसद 2.44 रहा। इसके मुकाबले में इनेलो से अलग हुई जननायक जनता पार्टी (जजपा) को 10 सीटों पर जीत मिली और उसे 14.80 फीसदी मत मिले। तब जजपा ने भाजपा को समर्थन दिया और सरकार में शामिल हुई। इनेलो अब न केवल जजपा के वोट बैंक, बल्कि सत्ता में आने के लिए मतों की प्रतिशतता बढ़ाने की कवायद में लगेगी।


अभय ने संभाला पार्टी को
इनेलो के प्रधान महासचिव और पूर्व विधायक अभय चौटाला ने अपने पिता के जेल में होने के दौरान भी मजबूती के साथ पार्टी को संभाला है। उन्होंने लोकसभा चुनाव में और फिर विधानसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किया। हालांकि पिता ओमप्रकाश चौटाला के रिहा होने के बाद पुन: राजनीति में सक्रिय होने से वे अपने कंधों का बोझ कुछ हल्का महसूस कर रहे होंगे। विभिन्न अवसरों पर अभय चौटाला ने कहा भी है कि उन्होंने अपने तौर पर पार्टी को बचाने का प्रयास किया, लेकिन राजनीतिक स्वार्थ इसमें आड़े आ रहे थे। इनेलो चौधरी देवीलाल की विरासत को संभाले हुए है और आगे भी यही सिलसिला जारी रहेगा। पार्टी का संगठन पहले से बेहतर हुआ है। पुराने नेता और कार्यकर्ताओं के फिर से अपने घर लौटने का चलन शुरू हो गया है।

इनेलो हो गई बुजुर्ग
हालांकि इनेलो को मौजूदा समय में यह जानने की जरूरत भी है कि प्रदेश में उसकी स्वीकार्यता का स्तर क्या है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इनेलो अब बुजुर्ग हो गई है, वहीं उसकी वंशज जजपा एक शिशु की भांति है, जोकि उस बुजुर्ग की जगह ले चुकी है या लेने जा रही है। ऐसे में इनेलो को ऐसे चमत्कारिक नेतृत्व को लाना होगा, जोकि जनता को यह विश्वास दिला सके कि इनेलो अब भी मुकाबले में है। पार्टी सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला को वह दिन याद करना चाहिए, जब एक पुत्र के मोह में उन्होंने अपने दूसरे बेटे और उसके पुत्र को बेदखल कर दिया था, हालांकि उसी पोते दुष्यंत चौटाला ने बेहद कम समय में न केवल एक अलग राजनीतिक संगठन खड़ा किया, अपितु दस कीमती विधानसभा सीटें जीत कर सरकार का हिस्सा बन गए। अगर दुष्यंत चौटाला आज भी इनेलो का हिस्सा होते तो राज्य में इनेलो भाजपा-कांग्रेस के समक्ष एक शक्ति होती। इनेलो कमजोर हुई इसलिए भाजपा को विस्तार मिला और अब जजपा मजबूत हुई है तो इनेलो को कमजोर करके।

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