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ABG Shipyard Limited itself drowned in the ocean of debt
कुछ समय के अंतराल पर अगर किसी घोटाले का खुलासा न हो तो लगता ही नहीं कि हम भारत में रह रहे हैं। घोटालों की ऐसी फेहरिस्त है कि उनके नाम गिनते-गिनते सुबह से शाम हो जाए। अब एक और बहुत बड़े घोटाले का खुलासा हो रहा है। सीबीआई ने कथित तौर पर 22,842 करोड़ रुपये की बैंक धोखाधड़ी में एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड और उसके पूर्व सीएमडी और अन्य पर केस दर्ज किया है। कहा जा रहा है कि अगर इतनी बड़ी रकम की अनियमितता पाई गई तो यह देश की अब तक की सबसे बड़ी बैंकिंग धोखाधड़ी होगी।
इससे पहले नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक को लगभग 13 हजार करोड़ रुपये का चूना लगाया था। तब उसे भारत के बैंकिंग इतिहास की सबसे बड़ी बैंकिंग धोखाधड़ी कहा गया था। मामले में शिकायत दर्ज कराने में देरी के आरोप पर भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने कहा कि एबीजी शिपयार्ड का अकाउंट एनसीएलटी की प्रक्रिया के तहत लिक्विडेशन के दौर से गुजर रहा है। मालूम हो, बैंकों से धोखाधड़ी के मामले में कंपनी के खिलाफ एसबीआई ने पहली बार नवंबर 2019 में शिकायत दर्ज कराई थी। इसके बाद एक और शिकायत दिसंबर 2020 में की गई। बैंक ने कहा है कि शिकायत दर्ज कराने में कोई देरी नहीं हुई है।
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- गौरतलब है कि यह घोटाला तब सामने आया है, जब एसबीआई की ओर से कहा गया है कि कंपनी को दो दर्जन बैंकों के कंसोर्टियम ने कर्ज दिया था। लेकिन खराब प्रदर्शन की वजह से नवंबर 2013 में इसका खाता एनपीए बन गया। कंपनी को उबारने की कई कोशिशें हुई हैं, लेकिन ये सफल नहीं रहीं। हालांकि आईसीआईसीआई बैंक इस कंसोर्टियम का नेतृत्व कर रहा था। लेकिन सबसे बड़े सार्वजनिक बैंक होने के नाते सीबीआई में एसबीआई ने ही शिकायत दर्ज कराई।
- वहीं जैसा कि लग ही रहा था, इस महाघोटाले के सामने आने के बाद विपक्ष खासकर कांग्रेस ने हमला बोल दिया है। कांग्रेस की ओर से कहा गया है कि एनसीएलटी, अहमदाबाद में एबीजी शिपयार्ड के लिक्विडेशन का मामला 2017 में गया। इसके बाद 2019 में कंपनी के लोन और बैंक खातों को फ्राड घोषित कर दिया गया। इसके पांच महीनों के बाद एसबीआई ने एबीजी शिपयार्ड से जुड़े लोगों के खिलाफ एफआईआर के लिए शिकायत दर्ज कराई। उनका कहना है कि यह सीधे-सीधे जनता के पैसे की चोरी थी, लेकिन सीबीआई, एसबीआई और मोदी सरकार ने इस पूरे मामले को ब्यूरोक्रेटिक जाल में फंसा कर उलझा दिया। कांग्रेस का कहना है कि लिक्विडेशन प्रक्रिया में कंपनी को भेजे जाने के पांच साल के बाद दो दर्जन से अधिक बैंकों से धोखाधड़ी के मामले में शिकायत क्यों दर्ज हुई। वर्ष 2019 में ही जब कंपनी का खाता फ्राड घोषित हो चुका था तो उसके खिलाफ एफआईआर क्यों नहीं हुई।
इस संबंध में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी ट्वीट करते मोदी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने दावे के साथ कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में अब तक 5,35,000 करोड़ रुपये के बैंक फ्राड हो चुके हैं- 75 सालों में भारत की जनता के पैसे से ऐसी धांधली कभी नहीं हुई। लूट और धोखे के ये दिन सिर्फ मोदी मित्रों के लिए अच्छे दिन है। वहीं भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने भी ट्वीट कर कहा कि हिजाब पर नहीं, देश में बैंकों के हिसाब (घोटालों) पर आंदोलन करो मेरे प्यारे देशवासियों। यही हालात रहे तो देश बिकते देर नहीं लगेगी और हम ऐसा होने नहीं देंगे।
- हालांकि इस मामले में भाजपा ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा है कि एबीजी शिपयार्ड को यह लोन यूपीए-2 सरकार में दिया गया था, लेकिन जब मोदी सरकार आई तो उसने इस धोखाधड़ी को अंजाम देने वाले प्रमोटरों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। गौरतलब है कि किसी कंपनी के बैंक खाते को फ्राड तब कहा जाता है जब कर्ज देने वाले बैंकों की संयुक्त मीटिंग में फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट पर चर्चा होती है। जब खाते को फ्राड घोषित कर दिया जाता है तो शुरुआती शिकायत सीबीआई में की जाती है। इसके बाद जांच के लिए और जानकारी जुटाई जाती है।
कुछ मामलों में जब और अतिरिक्त अहम जानकारियां जुटा ली जाती है तब दूसरी शिकायत की जाती है। यही शिकायत सीबीआई की जांच का आधार बनती है। एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड का कामकाज गुजरात में होता है। कंपनी गुजरात के दाहेज और सूरत में पानी के जहाज बनाने और उनकी मरम्मत का काम करती है। अब तक कंपनी 165 जहाज बना चुकी है। इनमें से 46 विदेशी बाजारों के लिए थे।
दरअसल, एसबीआई की शिकायत में कहा गया गया है कि विश्वव्यापी मंदी की वजह से कंपनी का कारोबार चरमरा गया। कमोडिटी की मांग में आई गिरावट से शिपिंग इंडस्ट्री को झटका लगा है। कंपनी के जहाज बनाने के कई ठेके रद्द हो गए, लिहाजा जहाज बनने के बाद भी इन्वेंट्री में पड़े रह गए। इससे कंपनी के पास वर्किंग कैपिटल की कमी हो गई और यह घाटे में आ गई। इसके बाद से कंपनी डूबने लगी, पानी के जहाज बनाने की इंडस्ट्री में 2015 से ही मंदी है। इस मामले में यह भी सामने आ रहा है कि कर्ज किसी दूसरे मकसद से लिया गया और पैसों का उपयोग दूसरे काम में किया गया।
देश में ऐसे मामलों की लंबी सूची है, जिसमें कारोबारियों ने बैंकों से लोन लिया लेकिन फिर कंपनी के डूबने के बाद विदेश भाग गए। सवाल यह है कि आखिर इन कंपनियों को लोन बैंक किस आधार पर दे देते हैं, आम आदमी अगर एक किस्त भी न भर पाए तो बैंक उसका जीना हराम कर देते हैं, लेकिन इन बड़ी कंपनियों पर फिर भी मेहरबानी बनी रहती है, ऐसे में राजनीतिक संरक्षण के बगैर ऐसे अपराध को अंजाम नहीं दिया जा सकता।