इसहफ्ते न्यूज. चंडीगढ़
हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षाओं में विवादित प्रश्न पूछने का इतिहास पुराना है। वर्ष 2018 में तो हद ही हो गई थी, जब ब्राह्मण समाज के संबंध में बेहद अपमानजनक प्रश्न पूछा गया था, इसके बाद जब प्रदेश के ब्राह्मण समाज ने इस पर घोर आपत्ति जताई तो खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को आगे आकर जहां माफी मांगनी पड़ी वहीं आयोग के चेयरमैन को सस्पेंड करते हुए परीक्षा के पेपर को तैयार करने वाली कंपनी पर भी एफआईआर की अनुशंसा की गई। इसके अलावा प्रकाशक को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया। वहीं उच्च स्तरीय आयोग से पूरे मामले की जांच के भी आदेश दिए गए। उस आयोग की रिपोर्ट का क्या हुआ, यह तो सामने नहीं आ पाया है लेकिन तत्कालीन चेयरमैन को इस गलती के लिए भारी नुकसान झेलना पड़ा है। अब नया मामला पुलिस सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों को लेकर है।
ब्राह्मण समाज के बारे में पूछा था अनुचित सवाल
गौर होकि हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग की ओर से 2018 में 10 अप्रैल को हूडा के जूनियर इंजीनियर सिविल पद के लिए परीक्षा ली गई थी। परीक्षा में प्रश्न नंबर-75 में पूछा गया था कि हरियाणा में कौन-सा अपशकुन नहीं माना जाता है? विकल्प में खाली घड़ा, फ्यूल भरा कास्केट, काले ब्राह्मण से मिलना, ब्राह्मण कन्या को देखना दिया गया था। सही उत्तर ‘ब्राह्मण कन्या को देखना’ दिया गया था। जाहिर है, ऐसे सवालों पर समाज में सिर्फ ब्राह्मण समाज का रुष्ट होना नहीं बनता है, अपितु यह पूरे समाज के लिए बेहद निंदनीय घटना थी। भाजपा जिसे ब्राह्मण, वैश्य समाज का काडर वोट हासिल है, की सरकार में ऐसी कोताही होना बेहद संवेदनशील मामला था। बेशक, सीएम के प्रयास से मामला सुलझ गया लेकिन संभव है हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग ने कोई सबक नहीं सीखा और यही वजह है कि तीन साल बाद एकबार फिर प्रदेश में भर्ती परीक्षा में विवादित सवालों की झड़ी लग गई।
सामान्य ज्ञान के प्रश्न ऐसे तो नहीं होते
हरियाणा में हाल ही में हुई पुलिस सब इंस्पेक्टर (महिला-पुरुष) भर्ती परीक्षा में पूछे गए सवालों पर एक नजर डालते हैं। इसमें पूछा गया कि हरियाणा में ऐसे कौन से सांसद हैं, जिनके पिता की मृत्यु हाल ही में हुई है। फिर पूछा गया कि हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज की खासियत क्या है। एक और सवाल हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के चेयरमैन भोपाल सिंह खदरी के नाम में खदरी का क्या अभिप्राय है आदि। आखिर ऐसे सवालों को क्या सामान्य ज्ञान से जुड़ा माना जाए। क्या सामान्य ज्ञान की परीक्षा में ऐसे ही सवाल होने चाहिए। किसी मंत्री, आयोग के चेयरमैन से संबंधित निजी प्रश्न पूछकर क्या आयोग अपनी ही जगहंसाई नहीं करवा रहा। माना जाता है कि परीक्षार्थी के पुस्तक ज्ञान के अलावा उससे सरकार, राजनीति, समाज को लेकर घट रही घटनाओं को लेकर प्रश्न पूछे जाएंगे, जिनका वास्ता व्यक्तिगत नहीं अपितु सामूहिक या व्यापक परिप्रेक्ष्य में हो। बेशक, एक और प्रश्न कि हरियाणा में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष कौन हैं, भी पूछा जा सकता है, लेकिन क्या यह राजनीतिक रंगत देने वाला सवाल नहीं है, क्योंकि फिर तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष या फिर जजपा, बसपा आदि के संबंध में प्रश्न पूछे जाने चाहिए।
सरकार पर नौकरी खत्म करने के आरोप
गौरतलब है कि हरियाणा की गठबंधन सरकार पर पहले ही नौकरियां खत्म करने का आरोप लग रहा है, वहीं परीक्षा की तारीखों में बदलाव भी सरकार के खिलाफ जा रहा है। दूरदराज केंद्र बनाने का मामला भी सुर्खियों में है। आयोग का दावा है कि प्रदेश में 31 मार्च तक 25 हजार युवाओं को नौकरियां दी गई हैं, और अभी तक 82 हजार नौकरियां सरकार दे चुकी है। बेशक, सरकार के ये दावे अपनी जगह हैं, लेकिन अभी
भी प्रदेश में विभिन्न विभागों में पद खाली हैं और इस वजह से काम प्रभावित हो रहा है।
आयोग अब करेगा कड़ी कार्रवाई
वैसे, यह अच्छी बात है कि हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग ने परीक्षा में विवादित सवालों के मामले में अब कड़ी कार्रवाई का मन बनाया है। ऐसी रिपोर्ट है कि आयोग ने जहां भविष्य में गैर जिम्मेदाराना सवाल न पूछे जाने के निर्देश दिए हैं, इसके अलावा आयोग ने पेपर सेट करने वाली कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर उससे अनुबंध तोड़ लिया है, वहीं उसे किया जाने वाला भुगतान रोकते हुए उससे भविष्य में पेपर सेट न कराने का निर्णय भी लिया है। ऐसा किया जाना जरूरी है, क्योंकि पेपर सेटर कंपनी को आयोग की ओर से निर्देशित नहीं किया जाता कि उसे कैसे सवाल सेट करने हैं, संबंधित कंपनी के प्रोफेशनलिज्म को देखते हुए यह माना जाता है कि उसकी ओर से जो सवाल सेट किए जाएंगे वे प्रासंगिक होंगे और परीक्षार्थी के सामान्य ज्ञान को जानने के लिए मानक का कार्य करेंगे।
आयोग में नहीं पढ़ा जाता प्रश्न पत्र
यही वजह है कि आयोग के चेयरमैन की ओर से दलील दी गई है कि प्रश्न पत्र सेट होने के बाद आयोग के चेयरमैन या फिर आयोग के प्रतिनिधि की ओर से उसे पढ़ा नहीं जाता है, और न ही यह पता होता है कि परीक्षा में क्या-क्या पूछा जाना है। सरकार का मानना है कि ऐसा होना अनुचित है, लेकिन इसका विकल्प क्या हो सकता है, क्येांकि प्रश्नपत्र को आयोग की ओर से पढ़ा जाना फिर सवालों के घेरे में होगा। वैसे यह भी खूब दलील है कि परीक्षार्थियों की ओर से इन विवादित प्रश्नों पर कोई सवाल नहीं खड़े किए गए हैं। परीक्षार्थियों को सहज प्रश्न ही भाएंगे, ऐसे में अगर उनसे यह पूछ जाता है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष का क्या नाम है तो इसको बताने में किसी को क्या परेशानी हो सकती है। हालांकि विपक्षी राजनीतिक दलों को यह जरूर परेशान करेगा। और इस बार विपक्ष की ओर से ही सवाल उठाए गए हैं।