इसहफ्ते न्यूज. सुरेंद्र
सुल्तान ने मशरूम उत्पादन में वह सपना साकार कर दिखाया है, जोकि इस पेशे में उतरे उद्यमियों का सपना होता है। सुल्तान ने इस व्यवसाय में मेहनत कर कम समय में इसे फर्श से अर्श पर पहुंच दिया है। मशरूम उत्पादन में उनका वर्ष भर का करोड़ों का टर्नओवर है।
खेती हो या अन्य व्यवसाय सभी में कामयाबी हासिल करने के लिए मजबूत इच्छा शक्ति व हौसले का होना जरूरी है। ऐसी ही मजबूत इच्छा शक्ति और जीवट से बुनी सफलता की कहानी है कुरुक्षेत्र के बाखली गांव के सफेद बटन मशरूम उत्पादक सुल्तान की। सुल्तान 60 एकड़ के जमींदार हैं। वे कहते हैं, उनके गांव में माता-पिता का एकमात्र सपना बच्चों को विदेश भेजने का रहा है, लेकिन उन्होंने विदेश नहीं अपितु अपने ही देश में रहकर कुछ खास करने की सोची। सुल्तान ने मशरूम उत्पादन में वह सपना साकार कर दिखाया है, जोकि इस पेशे में उतरे उद्यमियों का सपना होता है। सुल्तान ने इस व्यवसाय में मेहनत कर कम समय में इसे फर्श से अर्श पर पहुंच दिया है। मशरूम उत्पादन में उनका वर्ष भर का करोड़ों का टर्नओवर है।
खेती की नई तकनीक बनी आधार
सुल्तान ने मशरूम के क्षेत्र में कम पैसों से भले ही शुरुआत की हो, लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई। उन्होंने कृषि क्षेत्र में नई तकनीक अपनाकर बिजनेस का साम्राज्य स्थापित कर दिखाया है। वे अब आधुनिक तरीके से मशरूम का उत्पादन करते हैं। उनके पास मशरूम उत्पादन की वह सभी मशीन उपलब्ध हैं जो इस क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती हैं। इस कार्य में उन्होंने विभिन्न बैंकों से ऋण लेकर करोड़ों रुपये की लागत से प्रोसेसिंग यूनिट, कम्पोस्ट यार्ड व मशरूम का बीज तैयार करने के आधुनिक यंत्र अपने खेत में स्थापित कर सफेद क्रांति की दिशा में कदम बढ़ाया है।
सरकार से मिला अनुदान का सहयोग
राज्य सरकार व बागवानी विभाग ने भी इस कार्य में विभिन्न उपकरणों पर अनुदान देकर उनका सहयोग किया है। सुल्तान सिंह बताते हैं की उन्होंने हैक एग्रो मुरथल व डीएमपी सोलन से सप्ताह भर का प्रशिक्षण लिया है। इस कार्य में कृषि विज्ञान केंद्र कुरुक्षेत्र का विशेष सहयोग रहा। सुल्तान ने आसपास के गांवों के 250 महिला व पुरुषों को इस क्षेत्र में रोजगार दिया है। उनसे प्रेरित होकर 150 किसानों ने मशरूम उत्पादन में कदम रखा है। राज्य सरकार की ओर से उन्हें 1 लाख की राशि के साथ मशरूम रत्न अवार्ड से सम्मानित भी किया गया है। सुल्तान कहते हैं की मशरूम का यह व्यवसाय बहुत कम लागत से शुरू किया जाने वाला ऐसा व्यवसाय है, जिसके साथ युवा जुड़कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।
चाचा से देखकर सीखा और इस तरफ बढ़े
मशरूम उत्पादक सुल्तान सिंह कहते हैं, उन्होंने होटल मैनेजमेंट में ग्रेजुएशन भी किया है। वे भी नौकरी करना चाहते थे, लेकिन चाचा बलकार मशरूम की खेती करते थे उनको देख कर मेरी रुचि भी मशरूम की तरफ बढ़ी। उन्होंने बताया कि शुरुआत में वे मात्र 20 शैड से मशरूम का उत्पादन करते थे, लेकिन 2016 आते-आते उन्होंने इसमें विस्तार दिया और इसे 110 शैड तक पहुंचाया। उनके अनुसार एक शैड में 2000 बैग लगते हैं। वे कहते हैं, भले ही यह व्यवसाय साधारण नजर आता हो लेकिन इसमें मेहनत काफी करनी पड़ती है।
एक शैड पर खर्च होते हैं सवा 2 लाख
मशरूम उत्पादन के लिए कॉलिंग मिट्टी, लकड़ी के बांस, फसलों के अवशेष, पराली, प्लास्टिक की आवश्यकता होती है, जिस पर लाखों रुपये खर्च आता है। उनके अनुसार एक शैड को तैयार करने पर करीब सवा 2 लाख रुपये खर्च आता है व एक शैड में करीब 50 क्विंटल मशरूम का उत्पादन होता है जिसकी मार्केट में 70 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिक्री होती है। उनके अनुसार साल में 1 करोड़ 10 लाख रुपए के आसपास बचत होती है।
टेस्टी फूड के साथ किया कॉन्ट्रेक्ट
मार्केटिंग के लिए उन्होंने टेस्टी फूड से 1 साल का कॉन्ट्रेक्ट किया हुआ है। सुल्तान कहते हैं कि वे मशरूम के अलावा मशरूम का बीज भी तैयार करने का कार्य करते हैं। उनके अनुसार वे रोजाना 20 क्विंटल मशरूम का बीज तैयार करते हैं, जिसको हरियाणा, पंजाब, जम्मू, हिमाचल, यूपी, राजस्थान और दिल्ली के व्यवसायी खरीदते हैं। उनका कहना है कि वैसे देखा जाए तो मशरूम की आयु 2 दिन की ही होती है। वह लोगों की मशरुम खरीदते भी हैं और उसे बेचते भी हैं।
मशरूम उत्पादन की मिट्टी भी सोना
सुल्तान सिंह ने बताया कि मशरूम उत्पादन में उपयोग होने वाली मिट्टी भी खेती के लिए सोना है। इसे मशरूम उत्पादन में एक बार इस्तेमाल किया जा सकता है। उसके बाद वे इस मिट्टी को खेतों में डालते हैं, जिससे यूरिया की कमी पूरी होती है। वे कहते हैं, यदि किसान खेत में दो बैग यूरिया के डालते हैं व 1 बैग मशरूम की मिट्टी का डालें तो यह मिट्टी दो यूरिया के बैग का कार्य करते हैं। वे कहते हैं की महिलाएं भी इस कार्य के साथ जुडक़र स्वदेशी उत्पादन कर अपनी दशा बदल सकती हैं।