इसहफ्ते न्यूज . सुरेंद्र
पढ़ाई की थी कम्प्यूटर के कलपुर्जों की लेकिन किस्मत ले आई फूलों की क्यारियों में। अब फूलों के पौधों की पौध तैयार कर उनकी बिक्री से लाखों रुपये का बिजनेस कर रहे हैं। यह कहानी एक कम्प्यूटर इंजीनियर की है, जिनका नाम है हरीश कुमार। वे चाहते तो बतौर कम्प्यूटर इंजीनियर कहीं अच्छे पैकेज पर नौकरी कर सकते थे लेकिन उन्हें धुन सवार थी तो अपना बिजनेस करने की। हरीश कुमार उन युवाओं के लिए प्रेरक हैं, जोकि नौकरी न करके अपना खुद का व्यवसाय खड़ा करना चाहते हैं। उनकी इस कामयाबी के सफर की कहानी।
हरीश कहते हैं- फूलों से बेहद प्यार था, उनकी रुमानियत दिल बाग-बाग कर देती है, सोचा फूलों को लेकर कुछ करूं। इसके बाद विदेशी कंपनियों के सहयोग से हाइब्रिड फूलों की पौध तैयार कर उसे बेचने का इरादा बनाया। हरीश बताते हैं, मैंने बीएससी इलेक्ट्रॉनिक्स में स्नातक किया है, इसके बाद कंप्यूटर इंजीनियर का डिप्लोमा भी किया। हरीश की कामयाबी इसलिए भी सराहनीय है कि उन्होंने न केवल खुद का बिजनेस स्थापित किया है, अपितु सैकड़ों लोगों को रोजगार भी उपलब्ध करा रहे हैं।
सब्जियों की पौध भी कर रहे तैयार
हरीश के इस बिजनेस में चार राज्यों के किसान उनसे जुड़े हुए हैं। मूल रूप से हरियाणा में अम्बाला कैंट के रहने वाले हरीश मघरपुर में 2 लाख रुपये में 5 एकड़ ज़मीन लीज पर लेकर फूलों की पौध तैयार करने व बेचने का कार्य पिछले तीन वर्ष से कर रहे हैं। पौध के इस लघु व्यवसाय में हरीश को 25 लाख रुपये की कमाई होती है, जोकि सारा खर्च निकाल कर है। उन्होंने एक आधुनिक प्लांट स्थापित किया है, इसमें 4 पॉली हाउस स्थापित किये हैं, जिनमें वे किसानों के ऑर्डर पर खीरा, शिमला मिर्च, टमाटर, ब्रोकली व तीखी मिर्च की नर्सरी तैयार करने का कार्य भी करते हैं। वे कहते हैं की पॉली हाउस पर सरकार ने 65 प्रतिशत अनुदान दिया जिससे उनकी काफी मदद हो गई।
पहले पुणे से मंगवाते थे पौधे
हरीश कुमार बताते हैं कि फूलों की पौध तैयार कर उसका विक्रय करना घाटे का सौदा नहीं है। अगर समय सही हो तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। यह 4 वर्ष की मेहनत का परिणाम है, जिसके चलते वे इस मुकाम तक पहुंचे हैं। वे पिछले 15 वर्ष से फूलों की नर्सरी का काम कर रहे हैं, शुरुआत में वे पुणे की नर्सरी से बाईरोड पौधे मंगवाते थे। इस कार्य में खर्च ज्यादा आता था व नुकसान की ज्यादा आशंका रहती थी। इसके बाद उन्होंने ट्रेन के जरिए पौध को मंगवाना शुरू किया लेकिन ट्रेन में व्यवस्था ऐसी होती थी की पौध नर्सरी को उलटा करके रख दिया जाता था जिससे नर्सरी बेकार हो जाती थी।
फिर स्थापित किया अपना प्लांट
इन दुश्वारियों से सबक लेते हुए उन्होंने अपना प्लांट स्थापित करने का निर्णय लिया। इसके बाद गर्मी व सर्दी के मौसम में तैयार होने वाले फूलों की पौध तैयार करना प्रारंभ किया। उन्होंने सभी पॉली हाउस में वीडमैट की विशेष व्यवस्था की हुई है। सभी प्रकार की पौध ट्रे में उगाते हैं, ट्रे का संपर्क जमीन से होने से अनेक प्रकार की समस्याओं के आने का खतरा बना रहता है, इसलिए वीडमैट पर ट्रे में पौधे रखते हैं। वीडमैट से दो फायदे होते हैं। खरपतवार बाहर नहीं आते व किसी भी प्रकार का वायरस पौध में प्रवेश नहीं कर पाता। हरीश कुमार के अनुसार फूलों की पौध में भी इंफेक्शन का खतरा बना रहता है। वे प्लांट में किसी भी व्यक्ति को प्रवेश नहीं देते व फूलों व सब्जियों की नर्सरी बाहर ही देते हैं।
400 के करीब नर्सरियां जुड़ी हैं
पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, यूपी व हिमाचल में चंडीगढ़ की 400 के करीब नर्सरियां वर्तमान में उनके साथ जुड़ी हुई हंै, जिन्हें वे तैयार पौध की बिक्री करते हैं। उन्होंने बताया कि सहारनपुर से करीब 150, देहरादून से 100, हिमाचल से 50, चंडीगढ़ से 100 के करीब किसान उनसे विभिन्न श्रेणियों की पौध लेकर अपना व्यवसाय करते हैं। विभिन्न फूलों की पौध को तैयार करने के लिए वे कोकोपीट का प्रयोग करते हैं। कोकोपीट नारियल का बुरादा होता है, जिसमें फूलों की पौध तैयार होती है। वे कहते हैं की पौध तैयार करने का कार्य वर्ष भर चलता रहता है। सर्दी के मौसम में मांग ज्यादा रहती है।
इन पौधों की नर्सरी कर रहे तैयार
इस दौरान गेंदा, पिटूनिया, डैंट्स, स्टॉक, होल्लीहॉक, सालविया, गज़निया, वेरबिना, कैलेंडुला, एस्टर, पैन्सी, डेहलिया, बिगोनिया, फ्रेंचकारनेशन, सिने नेरिया, कोलियस, गुडेटिया, डेज़ी आदि की पौध तैयार करते हैं। गर्मी के मौसम में वे विन्का, पोर्तुलका एनॉलेजमेंट, कोलियस, सनफ्लॉवर, टोरेनिया, जीनिया आदि फूलों की प्यौध तैयार करने पर जोर देते हैं। गर्मी व सर्दी के मौसम में तैयार होने वाली पौध को शहरी लोग गमलों में घरों में रखते हैं।
हरीश कुमार के अनुसार वे कोकोपीट का इंतजाम तमिलनाडु से करते हैं, क्योंकि वहां पर नारियल का कार्य बड़े स्तर पर होता है। यह 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलता है। इसे पानी में डालने पर यह फूल जाता है और 5 किलो की सिल्ली 40 किलो तक बन जाती है। कोकोपीट का इस्तेमाल वे मात्र एक बार ही कर पाते हैं। इस कार्य में उनका दोस्त अमित उनका सहयोग करता है।
सर्दियों में पौध की मांग ज्यादा
हरीश के अनुसार फूलों की मांग सर्दियों में ज्यादा रहती है। अभी सर्दी के मौसम की बिक्री शुरू हो गई है यह बिक्री सितंबर से अक्तूबर तक रहती है। गर्मी की पौध के लिए फरवरी में तैयारी करते हैं। एक रुपया प्रति पौधा किसानों को तैयार करने पर देते हैं। उन्होंने बताया कि वे ट्रे में बीज डालने की मशीन से बिजाई करते हैं। हाइब्रिड का बीज अमेरिका, जर्मनी, जापान व नीदरलैंड की कंपनियों से लेते हैं।