सुरेंद्र
किसी जमाने में ऊंट की सवारी को शान की सवारी समझा जाता था। बदलाव के इस दौर ने इसे भी पछाड़ कर रख दिया है। अब न तो ऊंट नजर आते व न ही उनके घुंघरूओं की झंकार ही सुनाई पड़ती। एक दो गांव में रेत के टिब्बों में इनकी झंकार कभी-कभी जरूर सुनाई पड़ जाती है। आधुनिकता का इस व्यवसाय पर इतना प्रभाव पड़ा की अब तो नाममात्र पशुपालक हैं जो ऊंट पालन का व्यवसाय कर रहे हैं। जिला चरखी दादरी के एक छोटे से गांव लाड में आपको लेकर चलते हैं।
बड़े जोखिम हैं ऊंट पालने में
तहसील बाढड़ा के तहत आने वाले इस गांव के किसान सरसों, ग्वार, बाजरा व जौ की खेती करते हैं, किसी जमाने में यहां ऊंट पालन का व्यवसाय खूब होता था, लेकिन अब यह बेहद सीमित हो गया है। सोमवीर मान इसी गांव के हैं और वे ही एक मात्र ऐसे पशुपालक हैं जो आज भी इस पुश्तैनी व्यवसाय के साथ जुड़े हैं। सोमवीर मान कहते हैं की वे आठवीं पास हैं और उनकी रोजी-रोटी इसी व्यवसाय के सहारे चलती है। वे कहते हैं की ऊंट पालन जोखिम भरा कार्य है। गांव में बड़े -स्तर पर टिब्बे हैं व रेतीली जमीन है जो एक प्रकार से ऊंट पालन के अनुकूल जरूर है, लेकिन महंगाई के कारण बड़े स्तर पर लोगों ने ऊंट पालन बंद कर दिया है। वे कहते हैं की ऊंट में शुष्क पर्यावरण में जीने की जबरदस्त क्षमता होती है। इसीलिये उसे रेगिस्तान का जहाज कहा जाता है।
सोमवीर बताते हैं की इस व्यवसाय को चलाने के लिए उन्हें नाको चने चबाने पड़ते हैं। उनकी तीन पीढ़ियां ऊंट पालने का पुश्तैनी व्यवसाय करती आ रही हैं। वर्तमान में वे इस व्यवसाय के साथ जुड़कर इसे आगे बढ़ा रहे हैं। वे कहते हैं की उनके पास अलग-अलग नस्ल के 5 ऊंट हैं जिनकी कीमत लाखों में है। उनके पास बेहतरीन नस्ल सातौर नस्ल का चार वर्ष का व बीकानेरी नस्ल का 3 वर्ष का ऊंट का एक बच्चा है। बाड़मेरी नस्ल का उनका ऊंट अब बुढ़ा हो चला है। उसकी उम्र 22 वर्ष है जिससे वे अब काम नहीं लेते। वे कहते हैं की उसकी मौत होने पर वे उसका काज (सामाजिक समारोह) जरूर करेंगे।
ऊंट नचाने के मिलते हैं 20 से 25 हजार
मान ने उन्होंने बताया की उनके पास कमाई का कोई ठोस जरिया नहीं है। जमीन भी कम है। ऊंट की बदौलत विवाह-शादियों व प्रदर्शनियों में जो पैसा मिलता है, उससे वे अपना व घर का खर्च चलाते हैं। एक विवाह के कार्यक्रम में वे 20 से 25 हजार रूपये ऊंट नृत्य के लेते हैं, जो महंगाई के दौर में कम है। वे कहते हैं, पहले एक महीने में 10 से 12 विवाह समारोह में ऊंट के नृत्य कराने का मौका मिलता था, तब अच्छी ग्राहकी हो जाती थी, लेकिन अब बड़ी मुश्किल से एक 1 या 2 मौके ही मिल पाते हैं। इन कार्यक्रमों में वे ऊंट, घोड़ी व बकरी को नचाने का कार्य करते हैं। वे कहते हैं की आधुनिकता की इस मार ने व्यवसाय चौपट कर दिया है। लोगों की रूचि ऊंट नृत्य से हट कर अब डीजे की तरफ चली गई है। लोग ऊंची आवाज में गाने सुनना पसंद करते हैं। इस स्थिति में वे ग्राहक का इंतजार करते हैं। कई बार पूरे सीजन में एक भी ग्राहक नहीं मिलता व उन्हें मायूसी हाथ लगती है।
मेलों में लेकर जाते हैं ऊंटों को
सोमवीर मान के अनुसार वे जीविका चलाने के लिए राजस्थान के नागौर, पुष्कर, नौलागढ़ व पंजाब के मुक्तसर में लगने वाली प्रदर्शनियों व मेलों में पहुंचते हैं। जहां उनका लक्ष्य इनाम जीतने का होता है, इसलिए वे प्रदर्शनियों में तैयारियों के साथ जाते हैं व इनाम जीतते हैं। वे कहते हैं की आज भी उन्हें अपने ऊंट बाहुबली, हिंद केसरी, तूफान का सहारा है। उनका हिंद केसरी ऊंट चैपियन रहा है। भिवानी मेले में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने उनके ऊंट की तारीफ की थी व 51 हजार रूपये देने की घोषणा भी की थी। वे कहते हैं की वे काफी पैसा ऊंट की सजावट पर लगाते हैं। उनके पास सभी ऊंट प्रशिक्षित हैं। उनके अनुसार वे पहले एक महीना उन्हें आधुनिक गानों पर नाचने का प्रशिक्षण देते हैं। घोड़ी हो, बकरी हो या ऊंट सभी संकेत समझते हैं व महीने भर में पारंगत हो जाते हैं। सभी को प्रेम की जरूरत है। बिना प्यार के पारंगत करना मुश्किल है।
नाचना ऐसे सिखाते हैं ऊंट को
मान कहते हैं की ऊंट एवं अन्य पशुओं को नृत्य सिखाने का यह प्रशिक्षण वे सूत की चारपाई पर देते हैं। उनका पारंगत ऊंट एक पाइप को जिसमें दोनों तरफ आग लगी है, उसे मुंह में रख कर दौड़ता है तो लोग तालियां बजाकर उसका स्वागत करते हैं। वे कहते हैं उनका ऊंट विवाह या अन्य बड़े आयोजनों में मुख्य अतिथि को पगड़ी पहनाने का हुनर रखता है व शादी- विवाह के अवसर पर दुल्हा दुल्हन को वर माला भी पहना कर उनका स्वागत करता है। संकेतों पर नृत्य करना उनके ऊंट, घोड़ी, बकरी की आदत में शुमार है। वे कहते हैं की उनके पास काले व तेलिया रंग के ऊंट हैं जिन्हे वे खेत में अलग से शैड में रखते है। उनके पास पशुओं के लिए पानी की पूरी व्यवस्था है।
रोजाना 50 लीटर पानी पी जाता है एक ऊंट
उनका कहना है की एक अकेला ऊंट 8 महीने भर में 40 क्विंटल तुड़ी व रोजाना 50 लीटर पानी पीता है। ठंड के मौसम में गुड़, फिटकरी व तेल तिल्ली और कई अन्य सामान उन्हें सर्दी से बचाव को ध्यान में रखकर देना पड़ता हैं। इस मौसम में वे उन्हें पाव देशी घी, आधा लीटर गाय का दूध रोजाना देते हैं, तभी पशु मस्त रहते हैं और इससे उनमें कमजोरी नहीं आती। सोमवीर मान के अनुसार वे समय-समय पर पशुओं का टीकाकरण भी कराते हैं ताकि बीमारियों से बचाव हो सके। उनका कहना है की सरकार को व्यवसाय पर ध्यान देना चाहिए।