बैंक की नौकरी की सैलरी से ज्यादा कमाता है सोनीपत का यह किसान

कोरोना काल में बैंक ने कपिल का ट्रांसफर गुजरात के लिए किया तो पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते वे नहीं गए, नौकरी से इस्तीफा दे दिया और राज्य सरकार की योजनाओं के सहारे फलों की खेती शुरू की

15 फ़रवरी, 2022 11:21 PM
कपिल अपने बाग में अमरूद के पौधों के साथ।

सुरेंद्र सिंह

हरियाणा सरकार बागवानी को बढ़ावा देने के लिए अहम प्रयास कर रही है। सरकार की योजनाओं का लाभ अनेक जागरूक किसान ले रहे हैं। कोरोना की वजह से पैदा हुए विषम हालात के बीच सरकार द्वारा संचालित बागवानी की अनेक योजनाओं ने किसानों को कुछ नया और हटकर करने का मौका भी दिया है। जिससे अनेक किसानों के लिए यह आपदा अवसर में बदल गयी। इसी कड़ी में सोनीपत के गांव शहजादपुर के रहने वाले कपिल ने उदाहरण पेश किया है।

 

कपिल ने एक एकड़ में बागवानी का अपना व्यवसाय शुरू किया और आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए। आज वे प्रगतिशील किसानों में शुमार ऐसे किसान हैं, जोकि बागवानी से अपनी आय अर्जित कर रहे हैं और दूसरे किसानों को भी इस दिशा में अग्रसर होने को प्रेरित कर रहे हैं। वे मेरा पानी मेरी विरासत योजना पर भी काम कर रहे हैं।

 

बैंक में कर रहे थे कैशियर की नौकरी
कपिल ने बैंक में कैशियर की अपनी नौकरी को छोड़ कर बागवानी के क्षेत्र में कदम रखा है। आज के समय में नौकरी ही जब सभी की चाहत है, तब उनका बैंक की नौकरी छोडक़र बागवानी करना अनोखी बात लगती है, लेकिन इसके पीछे एक कहानी है।

कपिल बताते हैं, बैंक ने कोविड काल के दौरान उनका ट्रांसफर सोनीपत से गुजरात कर दिया था, गुजरात जाकर काम करना उनके लिए मुनासिब नहीं था। पारिवारिक जिम्मेदारियां उन्हें यहीं रहने को कह रही थी और फिर उन्होंने गुजरात न जाकर बैंक की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और यहीं ठहर गए। लेकिन सवाल यही था कि अब क्या किया जाए। और फिर उन्हें बागवानी का आयडिया आया। उन्होंने दो साल बागवानी में अथक मेहनत की।

वे कहते हैं, उस समय मेरे सामने कुछ अलग कर गुजरने की इच्छा थी और मुझे लगा कि फलों की खेती के जरिए कमाई की जा सकती है। इस समय बैंक की सैलरी से कहीं ज्यादा उनकी बागवानी से कमाई हो रही है।


इसकी शुरुआत कैसे की?

कपिल बताते हैं, राज्य सरकार की तरफ से उन्हें साढ़े सात हजार की सब्सिडी मिली वहीं खेती के उपकरणों पर भी उन्हें सब्सिडी हासिल हुई। सरकार के साथ और अपने निजी प्रयास से उन्होंने शुरुआत की तो आसपास के गांव कुरूड़, सांधल, जैसीपुर, उलेदपुर के किसानों ने भी इसकी शुरुआत कर दी। कपिल के अनुसार वे एक एकड़ में 150 किवंटल से ज्यादा की पैदावार हासिल कर लेते हैं। अमरूद के एक पेड़ से 20 से 25 किलो फल आसानी से मिल जाता है। जमीन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए रोटेशन में अमरूद के अलावा नींबू भी लगाते हैं और उनका अचार तैयार करते हैं। उनके खेत में लगा एक अमरूद आधा किलो से ज्यादा वजन का होता है।

 

  • 8 प्रकार के अमरूद हैं बाग में
  • कपिल ने बताया की वे खेतों में 8 किस्म के अमरूद की खेती करते हैं। इन अमरूदों ने ताइवान अमरूद की किस्म को भी मात दे रखी है। कपिल को अपने अमरूदों को बेचने के लिए सब्जी मंडी नहीं जाना पड़ता है, बल्कि लोग खुद उनके पास आते हैं। इसके साथ ही एडवांस ऑर्डर देकर जाते हैं, जोकि अपने आप में उपलब्धि है। उनके अमरूद 200 से 250 रुपये किलो के भाव में बिकते हैं। दूर-दूर से लोग उनसे अमरूद की खेती करने के टिप्स लेने भी आते हैं।
  • खेत में दूसरे फलों के पौधे भी
    कपिल के बाग में 40 पौधे आड़ू, 60 पौधे नींबू और 80 केले के पौधे हैं। इनसे जो उत्पादन होता हैं उसकी मार्केट में 200 से 250 रूपये किलों के हिसाब से बिक्री हो जाती है। वे कहते हैं, जब वे गेहूं की खेती करते थे तो हमेशा घाटे में रहते थे। गेहूं का घाटा धान में व धान का घाटा गेहूं की पैदावार से पूरा करते थे, लेकिन बागवानी ने उनके हालात पूरी तरह बदल दिए। वे अपने बाग में गाय का गोबर व देशी गुड़ का प्रयोग उर्वरक के लिए करते हैं।

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