इसहफ्ते न्यूज. मुंबई
हो सकता है, आर्यन खान को भी जल्द जमानत मिल जाए और फिर सोशल मीडिया पर उनके और उनके परिवार की ओर से थोथे ज्ञान से भरी बातें कही जाएं कि वक्त खराब हो तो ऐसा होता है और हार कर जीतने वाला ही बाजीगर कहलाता है आदि। लेकिन यह पूछा जाएगा कि आखिर ऐसे ओच्छे क्रियाकलाप किए ही क्यों जाते हैं।
मुंबई फिल्म जगत के कलाकारों और उनसे जुड़े लोगों की जिंदगी एकबार फिर उजागर हुई है। पर्दे के पीछे छिपी जिंदगी जीने वाले कलाकारों को जब पुलिस थानों और अदालतों के चक्कर लगाते देखा जाता है तो खास और आम के बीच का भेद मिटता दिखता है। हालांकि एकमुश्त रकम चुका कर आम आदमी पर्दे पर जिन लोगों को देखने पीवीआर में जाता है, जब उन्हें ड्रग्स, अश्लील फिल्में, अंडरवर्ल्ड से नजदीकी और ऐसे ही मामलों में आरोपी देखता है तो उसकी धारणाएं एकपल के हिल जाती हैं, लेकिन फिर जल्द ही उस नए घटनाक्रम को स्वीकार कर लिया जाता है।
मुंबई फिल्म नगरी में ड्रग्स के सेवन का खुलासा नई बात नहीं है, जब तक ऐसी खबरें सामने नहीं आती, तब तक सब सही होता है, लेकिन जैसे ही कोई घटना सामने आती है, उससे जुड़े दूसरे नाम सामने आने लगते हैं। वैसे भी आजकल की जिंदगी दम मारो दम... मिट जाए गम पर आधारित है। सभी दुख-परेशानियों का अंत नशे में नजर आता है। एक हस्ती होना सभी गुनाहों से ऊपर होना हो गया है। पर्दे पर आदर्शवादी छवि पेश कर दर्शकों की आंखों के नूर बनने वाले फिल्मी सितारों के बच्चे किस कदर गलत आदतों के शौकीन हैं, यह भी खुलासा हो गया है। सुपर स्टार शाहरूख खान क्या इसका जवाब देंगे कि उनके बेटे आर्यन खान आखिर कैसे ड्रग्स के मायाजाल में फंस गए। क्या अकूत दौलत होने का मतलब यह है कि जितने भी घिनौने और गैरजरूरी काम हैं, उन सब में हाथ डाल कर रखो और घटिया प्रसिद्धि हासिल करो।
क्रूज में रेव पार्टी करने और ड्रग्स पाए जाने के आरोप में नारकोटिक्स ब्यूरो की आर्यन खान समेत आठ लोगों पर यह कार्रवाई एक लंबी जांच के बाद की गई है। जाहिर है, एनसीबी को भी इसका यकीन नहीं हुआ होगा कि सम्मानित नामों के बच्चे भी ऐसा कर सकते हैं। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के समय यह खुलासा हुआ था कि उन्हें ड्रग्स दी जाती थी, जिसमें कई लोग शामिल थे। इसके बाद एनसीबी ने खुलासा किया था कि फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कलाकारों के बीच ड्रग्स का सेवन आम बात है। एक वायरल वीडियो में तो तमाम बड़े चेहरे ड्रग्स के नशे में दिखाई दिए थे। अगर ये लोग एक प्रतिबंधित चीज का सेवन कर रहे हैं तो फिर यह अपराध है। इसे निजी जिंदगी से जुड़ी चीज नहीं कहा जा सकता।
अब सुपर स्टार शाहरूख खान के पुत्र आर्यन खान जिन्होंने अपनी शिक्षा हाल ही में पूरी की है और जो अब अपने पिता को फिल्मों में सहयोग देने को तैयार हैं, अगर ड्रग्स लेते पकड़े गए हैं तो यह किस प्रकार आज की युवा पीढ़ी के लिए आदर्श हो सकता है। वैसे सभ्यता-संस्कार जैसी बातें आज के समय में नष्ट हो चुकी हैं। अब ऐसा बनावटी संसार चारों तरफ काई की भांति उपज आया है, जिसमें ओच्छे क्रियाकलापों को देखकर गुस्सा नहीं आता और न ही उन्हें समाज के लिए खराब माना जा रहा है। उन्हें जीवन जीने का तरीका समझ लिया गया है।
हो सकता है, आर्यन खान को भी जल्द जमानत मिल जाए और फिर सोशल मीडिया पर उनके और उनके परिवार की ओर से थोथे ज्ञान से भरी बातें कही जाएं कि वक्त खराब हो तो ऐसा होता है और हार कर जीतने वाला ही बाजीगर कहलाता है आदि। लेकिन यह पूछा जाएगा कि आखिर ऐसे ओच्छे क्रियाकलाप किए ही क्यों जाते हैं। एक तरफ ऐसे भी युवा हैं जोकि दिन-रात प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करके अपने और अपने परिवार के लिए सम्मान अर्जित करने की चाह रखते हैं, लेकिन दूसरी तरफ ऐसे अमीरजादे भी हैं जोकि बेहद सस्ती लोकप्रियता के बल पर ऐसे घटिया कामों में संलिप्त होते हैं। क्या जो जिंदगी स्क्रीन पर जी जाती है, वही आम जिंदगी में फिल्मी कलाकार और उनके नवाबजादे जीते हैं।
आजकल सोशल मीडिया पर शाहरूख खान का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें 24 साल पहले वे एक शो में कह रहे हैं कि उनके बेटे को वो सब खुराफाती काम करने चाहिए, जो वे अपनी जवानी में नहीं कर पाए। शाहरुख ने तब कहा था, मैं चाहता हूं कि मेरा बेटा लड़कियों को डेट करे, सेक्स और ड्रग्स का भी मजा ले। वो एक बैड बॉय बने और अगर वह गुड बॉय जैसा दिखाई देने लगा, तो मैं उसे घर से निकाल दूंगा। बेशक, इसे मजाक में कही गई बात कहा जा रहा है, लेकिन अगर पिता के दिलो दिमाग में अपने बेटे की उसके होने से पहले ही ऐसी छवि निर्मित हो गई थी, तो फिर इसमें किसी अन्य की गलती नहीं मानी जानी चाहिए।
फिल्म कलाकारों ने आखिर यह ठेका क्यों ले लिया है कि वे ऑन स्क्रीन आदर्शवादी दिखाई देंगे लेकिन अंदरखाने वे बैडमैन बनकर रहेंगे। अगर ऐसा है तो फिर दर्शकों से छलावा है। बेशक, कलाकार भी व्यक्ति ही हैं, उन्हें दर्शक भगवान बना देते हैं लेकिन क्या उनकी निजी जिंदगी पूरी तरह से निजी होती है। क्या उनकी जिम्मेदारी समाज और उन दर्शकों के प्रति नहीं होती, जोकि उनके जैसा बनने का सपना पाल लेते हैं। क्या बेहतर समाज के निर्माण की जिम्मेदारी गैर फिल्मी लोगों की ही होती है। फिल्म वालों को केवल इसलिए बख्श दिया जाए कि वे फिल्मी हैं, उनके पास पैसा है और क्योंकि उन्हें ऐसी जिंदगी पर्दे पर दिखानी होती है तो वे उसकी रिहर्सल अपनी निजी जिंदगी में भी करते हैं।