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1982 में 'डिस्को डांसर' से शुरू हुआ था डिस्को किंग बप्पी लाहिड़ी युग

'बंबई से आया मेरा एक दोस्त, दोस्त को सलाम करो... गाकर देश को दीवाना बनाने वाले बप्पी आज हमारे बीच नहीं है, कुछ ही समय में संगीत प्रेमियों ने जहां एक महान गायिका लता मंगेशकर को खाे दिया, वहीं अब इन महान संगीतकार, गायक ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया

16 फ़रवरी, 2022 10:32 PM
1986 में बप्पी लाहिड़ी ने 33 फिल्मों के 180 गीत रिकॉर्ड्स किए थे, उनका नाम 'गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्डस' में दर्ज हो गया था। फोटो टि्वटर

प्रदीप सरदाना
वरिष्ठ पत्रकार

हिंदी फिल्मों के यूं तो कई ऐसे गीत हैं, जिन्हें सुनकर पांव थिरकने लगते हैं लेकिन जिन गीतों पर पैर थिरकने के साथ दिल भी झूम उठे, ऐसे कई गीत बप्पी लाहिड़ी ने ही दिए.

बप्पी लाहिड़ी के निधन से फ़िल्म संगीत के 'पॉप-डिस्को संगीत' के एक युग का अंत हो गया. बड़ी बात यह है कि ये युग उन्होंने ही शुरू किया था.

इसे संयोग कहें या कुछ और कि बप्पी लाहिड़ी सचिन देव बर्मन के दीवाने थे. उन्हीं की शास्त्रीय धुनों से प्रभावित होकर वह फ़िल्मों में आए लेकिन मायानगरी ने बप्पी दा की शास्त्रीय धुनों को दरकिनार कर उन्हें 'डिस्को किंग' बना दिया.

बॉलीवुड में तीन साल में बना ली अपनी जगह
कुछ बांग्ला फ़िल्मों के बाद हिंदी फ़िल्मों में बतौर संगीत निर्देशक बप्पी लाहिड़ी की शुरुआत 1973 की फ़िल्म 'नन्हा शिकारी' से हुई थी. उस समय लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल, कल्याणजी आनंद जी और आरडी बर्मन जैसे कई दिग्गज संगीतकारों की धूम थी. ये राजेश खन्ना, जितेंद्र, धर्मेन्द्र, सुनील दत्त, शशि कपूर और अमिताभ बच्चन जैसे नायकों का ज़माना था. लेकिन बप्पी लाहिड़ी ने दिग्गज संगीतकारों के बीच भी सिर्फ़ तीन साल में ऐसी जगह बना ली थी कि वह जल्द ही ज्यादातर नायकों की पहली पसंद बन गए.

फ़िल्म 'जख्मी' के गानों से मिली पहचान

बप्पी लाहिड़ी की जिस फ़िल्म के संगीत ने पहली बार युवा दिलों को छुआ, वो थी 'जख़़्मी'. 1975 में प्रदर्शित निर्माता ताहिर हुसैन (आमिर ख़ान के पिता) की 'जख़़्मी' के गीत इतने लोकप्रिय हो गए कि संगीत कंपनियों के ही नहीं, फ़िल्म उद्योग के कितने ही लोगों के होश उड़ गए.

फ़िल्म के पांचों गीतों में कुछ इतना अलग, इतना नया था कि आज भी उन गीतों की लोकप्रियता बरकरार है.

चाहे वह लता मंगेशकर का गाया गीत -'अभी अभी थी दुश्मनी' हो या फिर किशोर कुमार का गाया 'जख़़्मी दिलों का बदला चुकाने, आए हैं दीवाने दीवाने' या फिर किशोर -आशा भोसले का 'जलता है जिया मेरा भीगी भीगी रातों में' और लता-सुषमा श्रेष्ठ का गाया -आओ तुम्हें चाँद पर ले जाएं'.

साथ ही, फ़िल्म में एक वह गीत- 'नथिंग इज इंपोसिबल' भी था जिसमें किशोर, रफी के साथ ख़ुद बप्पी लाहिड़ी ने भी अपनी आवाज़ दी थी, यह गीत भी तब लोकप्रिय हुआ था.

कम पैसे वाले फिल्म प्रोड्यूसर्स के 'आरडी बर्मन'

बस इस फ़िल्म की सफलता के बाद बप्पी दा ने फिर अंत तक कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा, हालांकि फ़िल्म उद्योग के कुछ लोगों के साथ बहुत से अन्य संगीत प्रेमियों को उनका यह नया संगीत रास नहीं आया.

उन पर कई आरोप भी लगते रहे, यह भी कहा जाने लगा "यह डिस्को संगीत हमारे देश में चलने वाला नहीं, दो चार साल बाद बप्पी लाहिड़ी की यह लहर फुर्र हो जाएगी, यह चार दिन की चाँदनी है, यह फूहड़ संगीत है वगैरह." लेकिन बप्पी दा के गीतों की चाँदनी चार दिन की नहीं, दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई.

असल में बप्पी लाहिड़ी की सफलता के चार खास कारण थे. एक तो यह कि वह युवाओं की नब्ज़ बहुत अच्छे से समझ रहे थे, दूसरा वह फटाफट धुनें बनाते थे. तीसरा बड़े गायक-गायिकाएं बप्पी दा की प्रतिभा और व्यवहार के कायल थे. किशोर कुमार तो उनके मामा ही लगते थे इसलिए उनके साथ काम करने के लिए कोई भी सिंगर झट से हां कर देता था. चौथा कारण ये था कि वह तब अन्य संगीत निर्देशकों की तुलना में पैसे कम लेते थे.

वे कभी-कभी इस शर्त पर भी काम करने को तैयार हो जाते थे कि यदि फ़िल्म हिट हो जाए तो बाकी पैसे बाद में दे देना इसलिए तब बप्पी दा को 'गऱीब फिल्म निर्माताओं का आरडी बर्मन' कहा जाने लगा था.

इस सबके चलते वह पहले मुंबई के छोटे फ़िल्मकारों के साथ दक्षिण के फ़िल्म निर्माताओं के बीच भी घर कर गए, 'जख़़्मी' के ठीक बाद आई बप्पी दा की 'चलते-चलते' अपने शीर्षक गीत के कारण ही उस बरस की एक सुपर हिट म्युजक़िल साबित हुई.

संगीतकार के साथ गायक के तौर पर भी उभरे
किशोर कुमार का ख़ुशी और दुख, दो मूड में गाया गीत-'चलते चलते मेरे ये गीत याद रखना, कभी अलविदा न कहना' आज भी किशोर कुमार के ऑल टाइम्स 10 हिट गानों में एक है, जब किशोर कुमार का 1987 में निधन हुआ था तब उन्हें भी इसी गीत से श्रद्धांजलि दी जा रही थी और आज बप्पी दा को भी.

उनकी फ़िल्में 'आपकी खातिर' 'टूटे खिलौने' और 'लहू के दो रंग' सब एक के बाद एक कामयाब होते गए.

'आपकी खातिर' में बप्पी दा के गाये एक गीत 'बंबई से आया मेरा एक दोस्त, दोस्त को सलाम करो, रात को खाओ पियो दिन को आराम करो', ने तो तब ऐसी धूम मचाई, जिसकी गूंज आज तक कायम है, इसी गीत ने इन्हें संगीतकार के साथ गायक के रूप में भी स्टार बना दिया.

जब 'डिस्को डांसर ने एक पूरी पीढ़ी को दीवाना बना दिया
लेकिन बप्पी की सफलता की इससे भी बड़ी कहानी 1980 के दशक में तब लिखी गई, जब 1982 में 'डिस्को डांसर' रिलीज हुई. यही वह फिल्म है जिसने बप्पी लाहिड़ी युग शुरू किया.

विजय बेनेडिक्ट का गाया -आय एम डिस्को डांसर, पार्वती खान का गया -जिमी जिमी, उषा उत्थुप का गाया -कोई यहां नाचे नाचे, सुरेश वाडेकर-उषा मंगेशकर का -गोरों की ना कालों की और बप्पी का गाया 'याद आ रहा है तेरा प्यार', फिल्म के ऐसे गीत थे जिनसे फिल्म संगीत की हवा ही बदल गई.

इस फिल्म ने बप्पी लाहिड़ी को तो सफलता-लोकप्रियता का नया शिखर दिया ही, साथ ही, फिल्म के नायक मिथुन चक्रवर्ती इसी फिल्म से बॉलीवुड के रॉक स्टार बन गए, बप्पी दा की तरह मिथुन भी तब गरीब फ़िल्मकारों के अमिताभ बच्चन कहे जाने लगे.

रूस में आज भी गूंजता है 'जिमी जिमी'
'डिस्को डांसर' में बप्पी दा के गीतों की एक बड़ी बात और भी हुई, वह यह कि इसके गीतों का जादू देशों की सीमा लांघता हुआ रूस और चीन के लोगों के सिर चढक़र बोलने लगा.

रूस में इससे पहले सिर्फ और सिर्फ राज कपूर के गीत 'आवारा हूँ' की धूम थी, इससे वहां भारत की पहली बड़ी पहचान तब तक यही गीत था लेकिन करीब 30 साल बाद 'आवारा हूं' के रूस में एकाधिकार में 'डिस्को डांसर' ने सेंध लगा दी, 'आय एम ए डिस्को डांसर' और 'जिमी जिमी' जैसे गीत पूरे रूस में गूंज उठे.

मॉस्को में बरसों से रह रहे हिन्दी फिल्म संगीत के अच्छे जानकार और संगीत प्रेमी इंद्रजीत सिंह बताते हैं- "आज भी रूस में 'जिमी जिमी' गीत युवाओं की बड़ी पसंद बना हुआ है, मिथुन तो इससे रूस में लोकप्रिय हुए ही जबकि इस गीत की लोकप्रियता का आलम यह है कि वहां आज भी भारतीय नागरिकों को देख वहाँ के लोग हंसते हुए 'जिमी जिमी' गाकर यह बताने का प्रयास करते हैं कि हम हिंदुस्तान को, वहाँ की फिल्मों को, फिल्म संगीत को खूब जानते हैं."

 

'गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्डस' में दर्ज है बप्पी का नाम
बप्पी लाहिड़ी ताबड़तोड़ संगीत तैयार करते जा रहे थे, 1986 में बप्पी लाहिड़ी ने 33 फिल्मों के 180 गीत रिकॉर्ड्स करके अपना नाम 'गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्डस' में दर्ज करा लिया था.

बप्पी लाहिड़ी के दक्षिण के फ़िल्मकारों से जुडऩे से जहां जितेंद्र, राजेश खन्ना जैसे नायकों की फिल्मों के बड़े संगीतकर बन गए. वहीं प्रकाश मेहरा से जुडऩे के कारण अमिताभ बच्चन की 'नमक हलाल' और 'शराबी' जैसी फिल्मों को उन्होंने नया कलेवर दिया

जितेंद्र ने बप्पी के संगीत में 'हिम्मतवाला', 'तोहफा', 'मवाली', 'जस्टिस चौधरी', 'जानी दोस्त', और 'सिंहासन' जैसी कई फिल्में कीं. राजेश खन्ना के साथ 'आज का एमएलए रामअवतार', 'मास्टर जी', 'बेवफ़ाई' और 'मकसद' सहित और भी कई फिल्में हैं, जिनमें बप्पी ने संगीत दिया.

अमिताभ की कई फिल्मों में बप्पी का सुपर हिट संगीत
अमिताभ बच्चन की 'नमक हलाल' के सभी गीत सुपर हिट थे, जैसे -'रात बाकी', 'जवानी जानेमन हसीन दिलरुबा', 'पग घुंघरू बांध', 'थोड़ी सी जो पी ली है' और 'आज रपट जाएं तो हमें ना उठइयो'.

ऐसे ही 'शराबी' के भी सभी गीत जबरदस्त लोकप्रिय हुए, जैसे - 'दे दे प्यार दे', 'जहां चार मिल जाएँ', 'मुझे नौ लखा मँगा दे', 'इंतिहां हो गयी इंतज़ार की' और 'मंज़िलें अपनी जगह हैं.

थोड़ा नहीं, बहुत सोना लगता है...
'कलियों का चमन तब बनता है' एक ऐसा रीमिक्स है जिसने बप्पी लाहिड़ी को दोबारा लोकप्रियता के उस शिखर तक पहुँचा दिया जहाँ वे 1980 के दशक के मध्य में थे.

वह सोने के गहनों से लदे रहते थे, उनके गहने अक्सर फिल्म समारोह में आकर्षण के साथ हल्के-फुल्के मज़ाक का भी सबब बनते रहते थे, बप्पी दा खुद भी इसे मज़ाक में लेते थे.

सैकड़ों फिल्मों की बड़ी सफलता पाने के बाद भी बप्पी दा अहंकार से सदा कोसों दूर रहे. सभी से वह प्रेम और सम्मान से मिलते थे, इसी से वह कई बरसों से टीवी के म्यूजिकल शो के जज के रूप में सभी के चहेते बने हुए थे.

वे अप्रैल 2021 में कोरोना संक्रमित हो गए थे, कोरोना से उबरे लेकिन उनकी आवाज़ कुछ खराब हो गई थी, फिर भी जऱा-सा ठीक होते ही वह संगीत कार्यक्रमों में चले आते थे, 'इंडियन आइडल' और 'सारेगामापा' जैसे टीवी शो में उनका निर्णय इतना सटीक होता था कि उन्हें न्यायमूर्ति कहा जाने लगा था.

नई फिल्मों में भी बप्पी के गानों की धूम
पिछले कुछ बरसों में भी बतौर गायक उन्हें जैसी सफलता मिली उसके लिए बड़े बड़े गायक तरसते हैं, जैसे 2011 में आई 'द डर्टी पिक्चर' में श्रेया घोषाल के साथ गाये उनके गीत 'ऊह ला ला' ने तो तहलका मचा दिया था.

सन 2013 की फिल्म 'गुंडे' के गीत 'तूने मारी एंट्रियां' में भी लाहिड़ी ने अपनी आवाज़ दी, फिर 2020 मे आई 'शुभ मंगल सावधान' और 'बागी -3' में भी उनके दो पुराने गीतों को रखा गया.

यहाँ तक 2017 की फिल्म 'बद्रीनाथ की दुलहनियां' में तो इनकी पुरानी फिल्म 'थानेदार' के गीत 'तम्मा तम्मा' को फिर से लेकर यह फिर साबित कर दिया कि बप्पी लाहिड़ी का जादू, उनका युग अभी तक बरकरार था.

साभार बीबीसी हिंदी

 

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