kangana Ranaut Controversy : राजनीति और समाज दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। राजनीति का जन्म समाज से ही होता है। भारत आगे बढ़ रहा है, उसी प्रकार उसका समाज भी आगे बढ़ रहा है, लेकिन क्या वास्तव में उसका तौर-तरीका सभ्यता के मापदंड पर खरा उतरता है? आजकल समाज में हिंसा, नफरत, आडम्बर और महत्वाकांक्षाओं का ऐसा चरम नजर आता है, जिसमें सहज मानवीय ऊसूल और चारित्रिक सोच रसातल में जाती दिख रही है।
इसका सीधा असर राजनीति पर भी पड़ रहा है, जब राजनेता ऐसी अधूरी और अपरिपक्व सोच का उदाहरण पेश कर रहे हैं, जोकि शर्मनाक से कम कुछ नहीं है। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट से अभिनेत्री कंगना रणौत को टिकट दी तो कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत के एक सोशल पोस्ट, जिससे उन्होंने इनकार किया है, पर भीषण विवाद हो गया।
श्रीनेत का कहना है कि उनका सोशल मीडिया हैंडल किसी ने हाईजैक कर लिया। हालांकि उनकी ओर से या किसी और की तरफ से जैसी बात सोशल मीडिया में अभिनेत्री एवं भाजपा उम्मीदवार कंगना रणौत के संबंध में कही गई है, वह घोर शर्मनाक और मर्यादाओं को तार-तार करने वाली है। इस पोस्ट में मंडी शब्द का इस्तेमाल करते हुए कुछ ऐसे शब्द प्रयोग किए गए हैं, जिनका निहितार्थ सामान्य भाषा में सभी समझते हैं। समाज में महिलाओं के एक वर्ग की मजबूरी शरीर के सौदे की हो जाती है, लेकिन विडम्बना यही है कि उनकी इस मजबूरी को समझने की बजाय कमतर सोच के लोग इसका भाव तय करते हैं।
इस प्रकरण में अनेक सवाल हैं, जिन्हें संभव है हिमाचल प्रदेश की जनता भी बखूबी समझेगी। सबसे पहले तो यह कि आखिर कांग्रेस नेता का खुद या फिर उनकी पार्टी के लोगों का यह कहने का मंतव्य क्या था कि क्या भाव चल रहा है मंडी में कोई बताएगा? यह बात कहकर कांग्रेस नेताओं ने आखिर क्या साबित करने की कोशिश की है। जब उनकी ओर से ऐसी ओच्छी टिप्पणी की गई है तो इसका अभिप्राय यह है कि वे एक उम्मीदवार के संबंध में ऐसी बात कहकर उसकी छवि को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं।
यह टिप्पणी महिला समाज का अपमान है और वह भी एक महिला के द्वारा। अभिनेत्री कंगना रणौत का यह कहना उचित ही है कि हमें अपनी बेटियों को पूर्वाग्रहों के बंधन से मुक्त करना चाहिए। हर महिला गरिमा और सम्मान की हकदार है। बेशक, कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने ऐसी पोस्ट के बाद खुद को घिरा हुआ पाकर उससे किनारा करने की कोशिश की है, लेकिन उन्हें बताना चाहिए कि आखिर चुनाव के दौरान जबकि वे कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग की प्रमुख हैं, अपने हैंडल को किस प्रकार मैनेज कर रही हैं, क्योंकि उसका इस्तेमाल कोई और कर जाता है।
दरअसल, अगर उन्होंने ऐसी टिप्पणी की है तो फिर इसका भी साहस दिखाएं कि जो उन्होंने कहा वह उनकी ओर से ही कहा गया।
इस मामले में अब तक कांग्रेस अध्यक्ष समेत किसी अन्य बड़े नेता की ओर से कुछ नहीं कहा गया है। निश्चित रूप से आज के समय अपनी गलत को मानने जैसी बात नहीं रह गई है। अब तो खुद गलत होकर भी कोई दूसरे की गलती ही निकालता है। अब ऐसा ही एक अन्य मामला पश्चिम बंगाल से सामने आ रहा है, जब भाजपा के वरिष्ठ नेता सांसद दिलीप घोष की ओर से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के संबंध में कहा गया है। यह अपने आप में बेहद लचर और किसी के मनोविज्ञान की छवि सामने वाली टिप्पणी है।
ममता बनर्जी जिस भी प्रदेश में जाती हैं, वे खुद को अगर वहां की बेटी बताती हैं तो यह किस प्रकार गलत हो गया। हालांकि भाजपा नेता इसका जवाब मांग रहे हैं कि मुख्यमंत्री बताएं कि उनका पिता कौन है। इस पर तृणमूल कांग्रेस की ओर से जहां मुख्यमंत्री का अपमान करार दिया गया है, वहीं चुनाव आयोग से भी इसकी शिकायत की गई है। इस टिप्पणी पर अब तृणमूल कांग्रेस की ओर से भी डीएनए टाइप टिप्पणी की गई है। वास्तव में इस प्रकार की बातें क्या सभ्य समाज में स्वीकार्य हो सकती हैं।
यह बेहद शर्मनाक है और यह बताता है कि आजकल नेताओं के पास कहने को ज्यादा कुछ नहीं रह गया है। न वे अपने भाषण तैयार करते हैं और न ही वैचारिक आंदोलन को जन्म देने की चाह रखते हैं। वे सिर्फ सोशल मीडिया टाइप लैंग्वेज की प्रयोग करते दिखते हैं और ऐसी बातें एवं बयान देकर इतिश्री कर लेते हैं जिनसे समाज में आग लगने का काम ज्यादा होता है। क्या इन हालात को हमें बदलना नहीं चाहिए। जनता को क्यों नहीं इस संबंध में भी राजनेताओं की जवाबदेही तय करनी चाहिए?