सद् गुरु जग्गी वासुदेव
पेड़ हमारे निकट संबंधी हैं। वे जो वायु छोड़ते हैं, उसे हम सांस की तरह लेते हैं, इसी तरह हम जो वायु छोड़ते हैं, उसे वे अपने अंदर लेते हैं। पेड़ों का हमारे जीवन को चलाने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान है। वे हमारे लिए हमारे फेफड़ों के बाहरी हिस्सों की तरह काम करते हैं। अगर आप जीना चाहते हैं तो आप अपने शरीर को अनदेखा नहीं कर सकते, और यह ग्रह भी हमारे शरीर से अलग नहीं है। आप जिसे ‘मेरा शरीर’ कहते हैं, वह इस धरती का एक हिस्सा है। आध्यात्मिक प्रक्रिया का सारा सार बस यही है।
साध गुरु बता रहे हैं कि किस तरह पेड़ हमारे जीवन के लिए अनिवार्य हैं, वास्तव में वे हमारे फेफड़ों का एक हिस्सा हैं। अगर आप जीना चाहते हैं तो आप अपने शरीर को अनदेखा नहीं कर सकते, और यह ग्रह भी हमारे शरीर से अलग नहीं है।
जब हम ‘आध्यात्मिकता’ शब्द की बात करते हैं, तो हम ऊपर या नीचे नहीं देख रहे। हम अपने भीतर झाँकने और इसके स्वभाव को पहचानने की बात करते हैं। भीतर देखने का सबसे बुनियादी पहलू ये समझना है, कि आप स्वाभाविक रूप से अपने आसपास की हर चीज का एक हिस्सा हैं। इस एहसास के बिना, आध्यात्मिक प्रगति होना संभव नहीं है। यह आध्यात्मिकता का लक्ष्य नहीं है, यह तो बुनियादी बात है - कि आप कौन हैं, आप खुद को क्या समझते हैं, यह तो बाकी सबका एक हिस्सा भर है।
आजकल, आधुनिक भौतिकी का कहना है कि यह सारा अस्तित्व बस एक ऊर्जा ही है। वैज्ञानिक सबूतों का कहना है कि आपके शरीर का हर अणु, लगातार सारे ब्रह्माण्ड के साथ सपंर्क में है। आध्यात्मिक प्रक्रिया व्यक्ति के बोध को निखारते हुए, इसे व्यक्ति के अनुभव में लाती है। खैऱ, एक वैज्ञानिक तथ्य, किसी के जीवन में कल्पना को जगाने के सिवा, और कुछ नहीं कर सकता। अगर यह आपके जीवन के लिए एक जीता-जागता अनुभव हो जाए, तो आपके लिए अपने आसपास की चीजों और और अपना ध्यान रखना स्वाभाविक हो जाएगा।
एक वृक्ष आपके लिए कोई परियोजना नहीं; एक वृक्ष आपका जीवन है।
यह आपके अस्तित्व का बाहरी हिस्सा है। यह हर रोज आपके लिए श्वास लेता है। यह आपके फेफड़ों से कहीं ज़्यादा है; आपके फेफड़े पेड़ों के बिना कुछ नहीं कर सकते। हमने देहाती भाइयों को बहुत ही सादे शब्दो में यह बात समझायी, इसके बाद वे जिस उत्साह, लगन और धुन का परिचय देते हैं, वह वाकई उल्लेखनीय है। उन्हें इस रूप में देख कर आनंद आ जाता है।
जब मैं गाँवों में जा कर उन लोगों को देखता हूं, जिन्हें अपनी रोटी कमाने के लिए रोज कड़ी मेहनत करनी होती है, फिर मैं उन्हें समय निकाल कर यह काम करते देखता हूँ, तो मेरी आँखें नम हो जाती हैं, क्योंकि ये उन लोगों में से नहीं, जिन्हें जलवायु परिवर्तन के बारे में कुछ पता हो। ये उन लोगों में से नहीं, जो ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जानते हैं। ये वे लोग हैं, जिनके पास संसार में सबसे कम संपदा है, यदि इनकी ओर से कार्बन का प्रभाव है भी, तो नाम मात्र के लिए ही हैं। यहाँ तक कि एक चिड़िया भी इन लोगों के मुकाबले कहीं बड़ा कार्बन पदचिन्ह छोड़ती हैं, क्योंकि ये लोग बस धरती के सहारे जीते हैं। इनके घरों में बिजली नहीं है, ये कुछ नहीं जला रहे। ये लोग पर्यावरण के सबसे ज्यादा अनुकूल हैं, पर हम उन्हें ऐसा करने (पेड़ लगाने) को कह रहे हैं। और इनकी प्रतिक्रिया और उत्साह वाकई प्रशंसा के लायक है। मुझे उम्मीद है कि इन सरल स्वभाव के लोगों के हाथों, विशाल व लगभग असंभव मात्रा में पौधे लगाने की यह पहल, सभी को प्रेरणा देगी।
सद् गुरु को उनके पर्यावरण से जुड़े प्रयासों के लिए, भारत के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कारों में से एक, ‘इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। यह लेख, इस अवसर दिए गए उनके भाषण के कुछ अंशों से लिया गया है। यह पुरस्कार, 5 जून 2010 को, उनकी परियोजना ‘ग्रीन हैंड’ को दिया गया था।
ईशा फाउंडेशन की वेबसाइट से साभार