इसहफ्ते न्यूज /एजेंसी
पंजाब में ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक दलित नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई है। यह कांग्रेस की मजबूरी रही या फिर उसकी रणनीति, इस पर व्यापक चर्चा है। माना जा रहा है कि पार्टी ने एक दलित को कुर्सी सौंपकर डूबते को तिनके का सहारा लिया है। यह भी कहा जा रहा है कि पार्टी ने बहस का विषय अपनी आतंरिक फूट और कैप्टन अमरिंदर सिंह एवं नवजोत सिंह सिद्धू के बीच की खींचतान से सरकार में हुई उलट-पुलट पर पर्दा डालने के लिए भी एक दलित नेता को मुख्यमंत्री बनाया। हालांकि यह भी सच है कि मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को चुनने के पीछे उनके हलके चमकौर साहिब में दलित वोट का काफी तादाद में होना भी है। साल 2011 की जनगणना के अनुमानों के अनुसार, पंजाब की कुल आबादी में अनुसूचित जातियां 32 फीसदी हैं, इनमें एक तिहाई दलित सिख हैं।
भारतीय राजनीति में दलितों की स्थिति आज भी दोयम दर्जे की है, बेशक उन्हें राष्ट्रपति पद तक पहुंचा दिया गया है, लेकिन वे अपने तौर पर निर्णय लेने की स्थिति में आज भी नहीं हैं। ऐसे में कांग्रेस की ओर से पंजाब में किया गया प्रयोग देशभर में साहसी निर्णय समझा जा रहा है।
54 हलकों में दलित कुल मतदाताओं का 30 फीसदी
जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में दलित वोट के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य में 54 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां दलित कुल मतदाताओं का 30 फीसदी से अधिक हैं। बाकी 45 विधानसभा क्षेत्रों में 20 फीसदी से 30 फीसदी मतदाताओं के बीच दलित हैं। प्रदेश में कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल (शिअद), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच इस मुकाबले में एक तिहाई वोट (किसी एक समुदाय से) किसी भी राजनीतिक दल की जीत या हार में अहम भूमिका निभाने वाले हैं।
दलितों के प्रति दिख रहा मोह
पंजाब में बीते वर्षों में दलितों की महत्वपूर्ण संख्या को देखते हुए ही राजनीतिक दलों ने उन्हें अपने पक्ष में लामबंद करने का प्रयास किया है। किसी न किसी तरह हर पार्टी ने संकेत दिया कि अगर वह सत्ता में आती है, तो वह दलितों को सत्ता में एक अच्छा हिस्सा देगी, जबकि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप ने सत्ता में आने पर एक दलित को उप-मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करने का वादा किया था। शिअद ने तो दलितों को लुभाने के प्रयास में बसपा के साथ गठबंधन किया। पार्टी ने दलित उपमुख्यमंत्री बनाने की भी घोषणा की हुई है।
दलितों के संबंध में साहसी निर्णय
कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री रहते भी कांग्रेस ने दलितों की उपेक्षा नहीं की थी। हालांकि एक दलित को ही अब मुख्यमंत्री का पद सौंपकर कांग्रेस ने ऐसा प्रयोग कर दिखाया है, जोकि मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। भारतीय राजनीति में दलितों की स्थिति आज भी दोयम दर्जे की है, बेशक उन्हें राष्ट्रपति पद तक पहुंचा दिया गया है, लेकिन वे अपने तौर पर निर्णय लेने की स्थिति में आज भी नहीं हैं। ऐसे में कांग्रेस की ओर से पंजाब में किया गया प्रयोग देशभर में साहसी निर्णय समझा जा रहा है। पार्टी ने चन्नी को पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करके अपने प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ दिया है, हालांकि पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में दलितों का कितना समर्थन हासिल होगा, यह भविष्य के गर्भ में ही है।
दलितों का मतदान पैटर्न रहा है असामान्य
जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब के बीते कुछ चुनाव परिणाम बताते हैं कि गैर-दलित निर्वाचन क्षेत्रों की तुलना में किसी खास पार्टी ने अनुसूचित जाति-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन नहीं किया। 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने 34 एससी-आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में से 21 पर जीत हासिल की थी, पर इन क्षेत्रों में उसका वोट शेयर उसके औसत वोट शेयर से थोड़ा कम था। हालांकि, दूसरी ओर साल 2012 में एससी-आरक्षित और अनारक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस का वोट शेयर बराबर था, उसने कम आरक्षित सीटें जीतीं (34 में से केवल 10)। साफ है कि आरक्षित और अनारक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में पार्टी का समग्र प्रदर्शन हमें यह समझने में मदद नहीं करता है कि पंजाब में दलितों ने विभिन्न चुनावों में कैसे मतदान किया। वैसे, सीएसडीएस के सर्वे के सबूत बताते हैं कि अतीत में भी कांग्रेस ने हिंदू दलित और सिख दलित दोनों वोटों को सफलतापूर्वक जुटाया है। निष्कर्ष यह भी संकेत देते हैं कि पार्टी को दलितों पर अपनी पकड़ बनाए रखने की जरूरत है, अगर उसको वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव जीतने हैं तो।
कांग्रेस को ही पसंद करते आए हैं दलित
पूरे मामले में उन सबूतों पर भी ध्यान देना जरूरी है जो बताते हैं कि हिंदू दलितों में कांग्रेस शिअद से ज्यादा लोकप्रिय है। पंजाब के दलितों ने पिछले कुछ चुनावों में अकालियों की तुलना में अधिक संख्या में कांग्रेस को वोट दिया है। आम आदमी पार्टी की एंट्री और यह तथ्य कि भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ रही है, संभावित रूप से कांग्रेस के हिंदू वोटबैंक को एक हद तक प्रभावित कर सकती है, मगर एक दलित सीएम होने से पार्टी को इस प्रभाव को कम करने और अपने दलित वोट को बरकरार रखने में मदद मिल सकती है।
-इसहफ्ते रिसर्च एवं मीडिया रिपोर्ट पर आधारित