चीन की कुटिलता का यह नया उदाहरण है कि अरुणाचल प्रदेश पर अपना हक जमाते हुए उसने 30 जगहों के नाम अपनी मुताबिक रख दिए हैं। बीते साल के अंदर चीन 4 बार अरुणाचल प्रदेश में जगहों के नाम बदल चुका है। चीन अरुणाचल प्रदेश को दक्षिण तिब्बत कहता है और इसका नाम जांगनान करार देता है। हालांकि इस प्रकरण से चीन कुछ हासिल नहीं कर पाएगा लेकिन उसकी यह कुत्सित सोच यह बताती है कि अपनी विस्तारवादी नीति को चीन सरकार किस प्रकार आगे बढ़ा रही है। ऐसा पहली बार नहीं है कि चीन ने ऐसी हरकत को अंजाम दिया है, इससे पहले अनेक बार ऐसा हो चुका है। बीते वर्ष चीन के हांगझू में हुए एशियाई खेलों में चीन सरकार ने अरुणाचल प्रदेश के कुछ भारतीय खिलाड़ियों को वीजा देने से इनकार कर दिया था। चीन और भारत के संबंध कभी भी सौहार्दपूर्ण नहीं रहे हैं और चीन की ओर से लगातार ऐसी हरकत की जाती रही हैं, जिससे यह साबित होता है कि वह अपने पड़ोसी देशों से किस प्रकार चिढ़ा हुआ रहता है। भारत एशिया महाद्वीप में जहां चीन के समकक्ष स्थापित हो चुका है, वहीं वैश्विक स्तर पर भी भारत की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ी है, ऐसे में चीन बौखलाहट में भारत के प्रति ऐसे कृत्यों को अंजाम दे रहा है जोकि पूरी तरह अवैध हैं।
पीएम मोदी के दौरे पर उठा चुका सवाल
चीन अरुणाचल प्रदेश को लेकर किस प्रकार परेशान है, इसका नमूना इससे भी मिलता है कि भारत के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री अगर वहां का दौरा करते हैं तो चीन की ओर से इस पर आपत्ति जताई जाती है। दुनियाभर में अपनी वर्चस्ववादी सोच के लिए बदनाम हो चुके चीन की कुटिलता का प्रतिफल उसके पड़ोसी देश भुगत रहे हैं। भारत के साथ चीन सीमा विवाद को लेकर उलझा हुआ है, एलएसी पर अनेक बार दोनों तरफ के सैनिकों के बीच टकराव हो चुका है। गलवान में जो घटा, वह कौन भूल सकता है। इस दौरान भारत के वीर सैनिकों ने चीनी सैनिकों को ऐसी मात दी थी, जिसका जिक्र चीन कभी भी खुले रूप से नहीं कर पाता। गौरतलब है कि चीन की ओर से अरुणाचल प्रदेश में जगहों के नाम बदलने की पहली सूची साल 2017 में जारी की गई थी, इसके बाद साल 2021 में दूसरी सूची जारी की गई। वहीं साल 2023 में 11 स्थानों के नाम की एक और सूची जारी की गई। यानी नाम बदलने की कवायद के जरिये माहौल को खराब करने की यह चेष्टा लंबे समय से जारी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 9 मार्च को जब अरुणाचल प्रदेश में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी सेला सुरंग का उद्घाटन किया था। मोदी की इस यात्रा पर भी चीन ने आपत्ति जताई थी।
विदेश मंत्री का यह जवाब सही कि नाम बदलने से क्या बदलेगा
हालांकि भारत की ओर से चीन के दावे को खारिज करते हुए जो जवाब दिया गया है, वह पूरी तरह से उचित है। विदेश मंत्री एस जयशंकर का यह कहना सही है कि नाम बदलने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है, अगर मैं आपके घर का नाम बदल दूं तो क्या यह मेरा हो जाएगा। इस प्रकरण में यह बात समझने की है कि चीन की इन हरकतों को अमेरिका और दूसरे देश बखूबी समझ रहे हैं। बीते माह ही अमेरिका ने कहा था कि वह अरुणाचल प्रदेश को भारतीय क्षेत्र के रूप में मान्यता देता है। हालांकि चीन की ओर से इसका विरोध किया गया। उस समय चीन की ओर से कहा गया था कि यह मामला भारत और चीन के मध्य का है, वाशिंगटन का इससे कोई लेना-देना नहीं है। यानी चीन की हेकड़ी के खिलाफ अगर वैश्विक समाज भारत को समर्थन देता है तो यह चीन को नागवार गुजरता है।
सीमा विवाद को नहीं चाहता सुलझाना
वास्तव में चीन की विस्तारवादी नीति से आज पूरा विश्व प्रभावित हो रहा है। चीन भारत के साथ सीमा विवाद को सुलझाने को तैयार नहीं है, वहीं नेपाल को भड़का कर भारत के खिलाफ तैयार करने से बाज नहीं आ रहा है। श्रीलंका को कर्ज के चंगुल में फंसा कर उसके जरिये भारतीय हितों पर कुठाराघात करने की चेष्टा में है। उसने पाकिस्तान को अपना गुलाम बना लिया है और अब कनाडा को भारत के खिलाफ उकसा कर अपना मंतव्य साधने की तैयारी में है। जी-20 समेत दूसरी वैश्विक बैठकों के जरिये भारत ने जिस प्रकार खुद को मजबूत बनाया है, वह भी चीन को चुभ रहा है। हालांकि भारत ने दक्षिण चीन सागर में भी अपने हितों का जयघोष किया है, इससे भी चीन को दर्द हो रहा है। निकट भविष्य में संभव है, चीन एवं उसके मित्र देशों से भारत के लिए और चुनौतियां खड़ी हों। लेकिन इन चुनौतियों को पार करके ही भारत विश्व महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। जब कोई विकास की राह पर होता है तो विरोधियों को समस्या होती ही है। चीन और उसके मित्र देश भारत की विकास रफ्तार को बाधित करने की नीयत से ही ऐसे आरोप लगा रहे हैं, लेकिन इन देशों को भारतीय विदेश से मुंह की खानी पड़ रही है।