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#Justic for wrestlers: महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न की शिकायतों के मद्देनजर केंद्र सरकार के रवैये पर सवाल उठ रहे हैं तो यह स्वाभाविक है। पूरा उत्तर भारत इस मामले को लेकर उबल रहा है, लेकिन केंद्र सरकार का रवैया बेहद ढ़ीला और टालमटोल वाला नजर आ रहा है। सच्चाई क्या है, यह सामने नहीं आ रही। अगर कुश्ती महासंघ के पूर्व अध्यक्ष एवं सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप लगे हैं, तो क्यों नहीं कानून में नियमानुसार उनके खिलाफ कार्रवाई की गई। कानून सभी के लिए समान है, अगर आरोप भी लगे हैं तो उनकी जांच होने के बाद केस दर्ज कर संबंधित आरोपी की गिरफ्तारी होनी चाहिए। लेकिन यह मामला ऐसा है कि इसमें आरोपी को अपना प्रभाव दिखाने का भरपूर मौका दिया जा रहा है, वहीं केंद्र सरकार भी खुद को कठघरे में खड़ी कर चुकी है।
कुरुक्षेत्र में खाप महापंचायत सुना चुकी फैसला
कुुरुक्षेत्र में (khap mahapanchyat in kurukshetra) खाप महापंचायत में ऐलान किया गया है कि 9 जून तक अगर आरोपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार नहीं किया गया तो देशभर में आंदोलन शुरू किया जाएगा। क्या भाजपा को हर चुनाव से पहले इस प्रकार की चुनौतियां झेलने की आदत हो गई है? कृषि कानूनों को जितनी भी सूझबूझ से बनाया गया था और केंद्र सरकार के मंत्री उसकी खूबियों को गिनाने में पसीना बहा रहे थे, किसानों के साथ कितने दौर की बैठकें हुईं, लेकिन उनका परिणाम क्या निकला। आखिरकार प्रधानमंत्री को क्षमा प्रार्थना करते हुए उन कानूनों को वापस लेना पड़ा। निश्चित रूप से अगर केंद्र सरकार ने इसके लिए होमवर्क किया होता, किसानों और समाज की सोच बदलने का प्रयास किया होता तो यह स्वीकार्य भी हो सकता था।
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प्रधानमंत्री मोदी हैं बदलाव के वाहक, फिर कहां हो रही देर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में बदलाव के पुरोधा हैं, वे अनेक ऐसी योजनाएं और कार्यक्रम लेकर आए हैं, जिनके बारे में पहले सोचा तक नहीं गया था। वे ही हैं, जिन्होंने बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का अभियान हरियाणा से ही शुरू किया। हालांकि अब जब कुछ बेटियां संकट में हैं और आरोप लगाते हुए न्याय की मांग कर रही हैं तो वे इसकी अनदेखी कर रहे हैं। क्या वास्तव में सरकार को यह लगता है कि सांसद पर आरोप गलत हैं, अगर आरोप गलत हुए भी तो अदालत उन्हें इंसाफ देगी। लेकिन अगर आरोपों में सच्चाई है तो फिर पहलवान बेटियों को क्यों नहीं न्याय मिलना चाहिए। यह किसी एक परिवार, क्षेत्र और जाति का मामला नहीं रहा है, यह सर्वसमाज का मामला हो गया है।
इस मामले से समाज में जा रहा गलत संदेश
वास्तव में महिला पहलवानों के साथ घट रहे पूरे घटनाक्रम को इस प्रकार से देखा जाना चाहिए कि समाज में प्रबल और दबंग जुल्म करके भी खुले घूमते रहते हैं और पीडि़ता पुलिस के सामने गिड़गिड़ाने के और कुछ नहीं कर पाती। यह तो अंतर्राष्ट्रीय पहलवान हैं, जिन्होंने देश के लिए पदक जीते हैं, विदेश की धरती पर तिरंगे का मान बढ़ाया है, उनके नहीं अपितु देश के सम्मान में राष्ट्रगान बजा है, क्या दंगल में चुनौतियां झेल कर फिर उन्हें घर के मैदान में भी ऐसी चुनौतियों से जुझना होगा, जिसमें एक आरोपी पर केस दर्ज कराने के लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट की शरण लेनी पड़े।
अबला को थाने जाने से पहले पड़ता है सोचना
क्या इस देश में प्रत्येक पीड़ित और पीड़िता के पास इतना सामर्थ्य है कि वह सुप्रीम कोर्ट की दहलीज चढ़ सके। देशभर में न जाने कितने ऐसे उदाहरण होंगे कि कोई अबला पास के पुलिस थाने तक जाकर अपनी शिकायत दर्ज कराने की हिम्मत नहीं कर सकती, क्योंकि उस थाने में जो भी बैठेंगे होंगे, उनकी कर्तव्यनिष्ठा उस पीडि़ता से ज्यादा उस आरोपी के प्रति होगी, जिसने अपराध किया होगा। अगर जैसे-तैसे केस दर्ज हो भी गया तो फिर पुलिस प्रणाली की अकर्मण्यता और कानून की निष्ठुरता के नए अध्याय खुलते जाते हैं। जिसमें यह साबित करने की पुरजोर कोशिश होती है कि आरोप झूठे हैं।
आरोपी ही मांग रहा पीड़िता से सबूत
महिला पहलवानों के मामले में भी यही होता नजर आ रहा है। आरोपी नेशनल टीवी पर शर्मनाक शब्दावली का प्रयोग कर रहा है, जिसमें उसकी ओर से सबूत मांगे जा रहे हैं। एक पीडि़ता सबूत आखिर आरोपी को क्यों दे? दरअसल, इस मामले में केंद्र सरकार को अपने विवेक के पट खोलने होंगे, अगर महिला पहलवानों के आरोप झूठ निकले तो उन्हें इसकी सजा भुगतनी होगी। लेकिन अगर उनमें सच्चाई है तो फिर आरोपी पर कार्रवाई होनी चाहिए। सरकार को उसे बचाते हुए नजर नहीं आना चाहिए, यह मामला पूरी तरह से कानून का है। तिल का ताड़ बनने से पहले सरकार को चाहिए कि प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करे।