Slogans on JNU wall: देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलना बड़े सौभाग्य की बात मानी जाती है और यहां प्रवेश के बाद जो डिग्री हासिल होती है, वह नौकरी की गारंटी बन जाती है। हालांकि बौद्धिकों की दुनिया माने जाने वाले इस विश्वविद्यालय के साथ विडम्बनाएं भी जुड़ी हैं। रह-रह कर इसके साथ जुडऩे वाले विवाद इस शिक्षण संस्थान की छवि को धूमिल करते रहते हैं।
अब यह सवाल सभी के जेहन में है कि आखिर विश्वविद्यालय की दीवारों पर (who is writing anti social slogans on jnu walls) ब्राह्मण और वैश्य समाज के प्रति अपमानजनक और भड़काऊ नारे लिखने वाला वह कौन है। क्या उस शख्स का भारतीय समाज व्यवस्था से विश्वास उठ गया है। भारतीय वर्ण व्यवस्था में चार जातियां शुमार की गई हैं, इन चारों की भूमिका और इनके होने न होने पर गंभीर चिंतन हमेशा चलता रहता है।
आरक्षण दिए जाने या फिर उसके बंद करने की बहस भी इन्हीं चार वर्णों के ईद-गिर्द घूमती है, लेकिन फिर एकाएक ऐसा क्या हो गया कि किसी को यह सूझने लगा कि (Brahmin and anti Baniya slogans) ब्राह्मण और बनिया समाज को देश छोड़ कर चले जाना चाहिए।
विश्वविद्यालय की दीवारों पर ऐसे नारे लिखने वालों की पहचान करके उन्हें सजा दिलाई जानी चाहिए लेकिन यह सवाल अहम है कि आखिर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय समाज और देश में घृणा, विद्वेष और बंटवारा पैदा करने वाला क्यों हो गया है। यही वह विश्वविद्यालय है कि जहां कभी (Bharat tere tukde honge gang) भारत तेरे टुकड़े होंगे का नारा लगाया गया था।
वह नारे लगाने वाला शख्स अब एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल का सम्मानित नेता बन चुका है। क्या उसकी शिक्षा इतनी ही है कि वह देश विरोधी बातें करके खुद को चर्चा में ले आए और फिर राजनीति में आकर देशहित की बात करे। जाहिर है, जेएनयू का स्वरूप खुली सोच को विकसित करने के लिए था। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने देश में ऐसे शिक्षण संस्थान की कल्पना की थी जोकि देश को ऐसे बौद्धिक प्रदान करे जोकि इसकी तरक्की में योगदान दें।
जेएनयू (student politics in jnu) अपनी भूमिका को निभाता आया है, इसलिए प्रत्येक वर्ष उसकी कट आफ अचंभित करने वाली होती है। देशभर के विद्यार्थी जेएनयू में पढ़ने का सपना पालते हैं, बहुत से इसमें कामयाब हो जाते हैं, लेकिन बहुत से निराश होकर वापस लौट आते हैं। हालांकि सामान्य विद्यार्थियों की सोच को ग्रहण लगाने की कला इस संस्थान में कौन सिखाता है?
इन आरोपों में सच्चाई है कि जेएनयू में वाम पंथ का बोलबाला है और कैंपस में नक्सली मानसिकता रखने वाले इसके पीछे हैं। हालांकि राजनीतिक साजिश ऐसी है कि भारत तेरे टुकड़े होंगे समान नारे लगाने वालों को शह देने के बावजूद वाम दल इसे स्वीकार नहीं करते कि आखिर ऐसी मानसिकता वे कहां से लाते हैं। भारत के टुकड़े होने का मतलब क्या है। आजादी के समय दो टुकड़े हुए और उसके बाद बांग्लादेश का जन्म भारत ने कराया।
आखिर अब ऐसे नारे लगाकर वाम पंथी और उनके समर्थक किसका हित साध रहे हैं। पाकिस्तान और चीन की मंशा तो भारत में उपद्रव पैदा कर इसकी सीमाओं का उल्लंघन करने की है, लेकिन भारत के अंदर ही उसके शिक्षण संस्थानों में बैठे ऐसे लोग उसके समाज में ब्राह्मण और वैश्य समाज के प्रति नफरत के बीज बोना चाहते हैं।
दरअसल, जेएनयू का बीते समय का रिकॉर्ड रहा है, उसे किसी भी तरह से अच्छा नहीं कहा जा सकता है। यह राष्ट्र विरोधी और नफरत फैलाने वाली गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। आए दिन इस यूनिवर्सिटी में विवाद होते रहे हैं। मामला पुलिस तक पहुंच गया है। इसे लेकर शिकायत दर्ज कराई गई है।
जेएनयू के शिक्षक भी इस घटना से आहत हैं। इसे जेएनयू की विविधता की भावना और सभी विचारों को जगह देने के जेएनयू के मूल लोकाचार का उल्लंघन माना गया है। हरियाणा के (Home minister Anil vij statement on jnu anti slogans) गृहमंत्री अनिल विज का भी बयान आया है, जिसमें उन्होंने ऐसी सोच को कुचलने की बात कही है। जेएनयू में ऐसे नारों के बाद ब्राह्मण और वैश्य समाज की ओर से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। दरअसल, भारतीय समाज में किसी वर्ण को कमतर बताने या फिर किसी वर्ण को सर्वोत्तम बताने जैसी बात उचित नहीं है।
यह सामाजिक भेदभाव को ही जन्म देती है। ब्राह्मण और वैश्य समाज की अपनी भूमिका है, देश में आर्थिक गतिविधियों को जन्म देने, व्यापार को बढ़ावा देने में वैश्य समाज का कोई सानी नहीं है। इसी प्रकार ब्राह्मण समाज का भी अपना योगदान है, फिर उन्हें क्यों निशाने पर लिया गया है, संभव है यह भारतीय समाज में नफरत पैदा करने की साजिश है।
देश में जातिवाद का दानव शायद ही कभी मर पाए। पंच से लेकर लोकसभा और प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति के चुनाव तक जाति और धर्म के आधार पर ही राजनीति चलती है। नौकरियां हों या फिर विकास की योजनाएं, सभी जाति आधारित होती हैं। वर्ण व्यवस्था का जन्म इस सोच के साथ नहीं हुआ था कि आगे चलकर यह समाज में बंटवारे का काम करेगी, यह सिर्फ किसी काम और उससे जुड़े लोगों की पहचान का जरिया भर था।
बेशक, वर्ण व्यवस्था की वजह से देश बहुत भुगत चुका है और भुगत रहा है। लेकिन यह जाति की घेराबंदी बंद होनी चाहिए। सभी जातियों का उत्थान और उनका सम्मान कायम होना चाहिए।