तेजस्वी सिंह आजाद/इसहफ्ते न्यूज
karnataka assembly election result: कर्नाटक विधानसभा चुनाव सामान्य चुनाव नहीं माना जाएगा। यह चुनाव राजनीति शास्त्र के अध्येयताओं के लिए ऐसा पाठ है, जिसकी बार-बार मीमांसा की जाएगी और जितनी बार भी ऐसा होगा, उसके नये अर्थ सामने आएंगे। इस चुनाव ने देश के सबसे प्राचीन राजनीतिक दल की बुढ़ी हो चुकी नसों में ऐसा उल्लास भर दिया है कि वह 17-18 साल के युवा की भांति सीधी-सपाट खड़ी होकर दौड़ने लगी है। अभी कुछ समय पहले जब राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा लेकर कन्याकुमारी से कश्मीर की यात्रा पर थे तो उनकी बातों को न देश गंभीरता से ले रहा था और न ही सत्ताधारी दल भाजपा।
राहुल गांधी की मुहब्बत की दुकान का संदेश यही था
लांकि राहुल गांधी बहुत बड़ी बातें नहीं कर रहे थे, वे रोटी-रोजगार और अमन-चैन की बात करते हुए मुहब्बत की दुकान खोलने की बात कर रहे थे। क्या कर्नाटक की जनता ने आज कांग्रेस को जो प्रचंड बहुमत दिया है, उसका संदेश यही नहीं है कि देश धर्म-जाति, राम मंदिर और बजरंग बली के बजाय रोटी-रोजगार और अमन-चैन की मांग कर रहा है? देश में बीते वर्षों की तुलना में महंगाई प्रचंड रूप ले चुकी है, कोरोना काल ने रोजगार छीने, काम-धंधे ठप हो गए। पेट्रोल-रसोई गैस के दाम दम निकाल रहे हैं। लेकिन देश का सत्ताधारी नेतृत्व अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों के बराबर आने का जश्न मना रहा है और इन सभी परेशानियों को भूल जाने को कह रहा है। बेशक, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जाे अलख भाजपा ने देश में जगाई है और वह आज अनेक लोगों को नफरत का दौर दिखती है, उस पर एकराय नहीं हो सकती। हर कोई देश का भला चाहता है और अपने-अपने तरीके से चाहता है फिर कांग्रेस को भाजपा के प्रयासों में नफरत क्यों दिख रही है। दरअसल, जरूरत इसकी है कि उन बुनियादी चीजों को पूरा करने पर जोर दिया जाए, जोकि आज आम और खास दोनों वर्गों के लोगों को परेशान कर रही है। कर्नाटक की जनता ने महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए वोट दिया है। कांग्रेस की सरकार इनकी कितनी प्रतिपूर्ति करती है, यह देखा जाएगा। अगर वह इसमे विफल रही तो जनता फिर उसे भी बदल देगी।
कांग्रेस मुक्त भारत का नारा अब खत्म हुआ
कर्नाटक दक्षिण भारत का वह पहला राज्य है, जिसने भगवाधारी भाजपा के लिए अपने दरवाजे खोले थे। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 64 सीटें जीती हैं, लेकिन 40 सीटें खो भी दी हैं। क्या यह भाजपा के उस तंज जिसमें वह कांग्रेस मुक्त भारत का नारा देती है, को मुंह नहीं चिढ़ा रहा है। बेशक, पार्टी की इस सोच की अब बहुत आलोचना हो रही है और उसने इससे किनारा कर लिया है। हालांकि एक जोशीली, गर्विली पार्टी जोकि डबल इंजन का फार्मूला लेकर जनता के बीच जाती है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद दर्जनों रैलियां और रोड शो करके राज्य की जनता से भाजपा को वोट देने का आह्वान करते हैं, अपनी पार्टी को जीत नहीं दिला सके। इसके लिए कौन जिम्मेदार है, यह पार्टी को समझना होगा।
जनता अब राममंदिर नहीं गैस सिलेंडर की कम कीमतों से खुश होगी
भाजपा की यह हार उसके न केवल दक्षिण विजय को बढ़ते कदमों का ठहराव है, अपितु अगले वर्ष लोकसभा एवं कई अन्य राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी सबक है। पार्टी को यह भी समझना चाहिए कि अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर आध्यात्मिक क्षुधा को शांत कर सकता है, लेकिन देशभर से उस मंदिर तक जाने के लिए जो पेट्रोल और डीजल वाहनों में भरा जाएगा, उसके लिए जेब बहुत ढीली करनी पड़ेगी, जिसे करते हुए पसीना आना तय है। इस चुनाव में जनता ने 40 फीसदी भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को प्रमुखता दी है। यानी हिजाब, हलाल, धर्मांतरण, हिंदुत्व और पीएम मोदी का चेहरा ही अब भाजपा की जीत का मंत्र नहीं रहा है। जनता को कुछ ज्यादा चाहिए और यह ज्यादा महज बातों का पुलाव नहीं है, अपितु वे दिन प्रति दिन की जरूरतें हैं, जिनके बगैर जीवन दुभर है।
जनता अब मुफ्त की रेवड़ी भी पसंद कर रही
बेशक, भाजपा सरकारों पर इसका आरोप उचित नहीं होगा कि उन्होंने कुछ नहीं किया है, यह जनता की उकताहट हो सकती है, जब बार-बार एक को ही प्रयोग करते वह थक जाती है। पंजाब में कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर आम आदमी पार्टी को जब जनता ने अपना विश्वास दिया तो यह एक नई विचारधारा को अपना कर अपनी समस्याओं के समाधान की कोशिश थी। इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश में भाजपा को पुन: सत्ता सौंपने की बजाय कांग्रेस को (क्योंकि और कोई विकल्प नहीं था) विश्वास मत प्रदान कर जनता ने नया करने की ठानी थी। यही कर्नाटक में हुआ है, सत्ताविरोधी लहर के साथ भाजपा सरकार की उन सभी खामियों को जनता ने वोट देते हुए याद रखा है, जिनकी वजह से हालात बदतर हो गए हैं। आखिर कांग्रेस ने जो बातें चुनाव से पहले या फिर चुनाव के दौरान जनता के सामने रखीं, उनसे कोई अपना सरोकार खत्म कर सकता है?
भाजपा को तलाशने हाेंगे नए मुद्दे, मोदी को करनी चाहिए पेट्रोल-डीजल की बात
देश में जनता की मानसिकता लुभावनी बातों को ज्यादा गंभीरता से लेने की हो गई है। अब उसे आतंकवाद पर चोट, विदेश नीति, मंदिर, बजरंग बली, समान नागरिक संहिता, अनुच्छेद 370 आदि के जरिये नहीं लुभाया जा सकता। पंजाब में आप ने फ्री बिजली, महिलाओं को पेंशन देने जैसे मुद्दे उछाले और जीत प्राप्त कर ली, हिमाचल और कर्नाटक में कांग्रेस ने भी ऐसे ही सब्जबाग जनता को दिखाए और जीत अपनी झोली में डाल ली। हालांकि देश का स्थाई और दीर्घकालीन भला करने का दावा करने वाली भाजपा अगर मुफ्त की रेवड़ी बांटने से परहेज कर रही है तो यह गलत तो नहीं है। लेकिन उसे इसका नुकसान पराजय के रूप में उठाना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर रैली में विपक्ष पर वार करते हैं, लेकिन वे न पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर बात करते हैं और न ही रसोई गैस के सिलेंडर पर। जनता चाहती है कि वे जनता की परेशानियों और उसकी समस्याओं पर बोले। यही वजह है कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की यह बात जनता के दिमाग में अटक गई कि मोदी ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जोकि जनता की समस्याएं नहीं सुनते केवल अपनी समस्याएं उन्हें सुनाते हैं।
कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस की बातों पर भरोसा किया है,की बातों पर भरोसा किया है, यानी जनता यह देखेगी कि जिस बदलाव के लिए उसने वोट किया, वह हुआ या नहीं। जनता के निर्णय पर सवाल नहीं उठाए जा सकते, वह जर्नादन होती है। उसने बड़ा संदेश दिया है, जिसका गुणन जरूरी है।